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Bhopal News: छींक-नाक बहने से मिलेगी राहत, एम्स भोपाल का अध्ययन, एलर्जिक राइनाइटिस में होम्योपैथी असरदार
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, भोपाल
Published by: संदीप तिवारी
Updated Sat, 20 Dec 2025 02:36 PM IST
सार
एम्स भोपाल के एक वैज्ञानिक अध्ययन में पाया गया कि एलर्जिक राइनाइटिस के मरीजों को मानक इलाज के साथ होम्योपैथी देने पर लक्षणों में ज्यादा और लंबे समय तक राहत मिलती है। अध्ययन के नतीजे एक अंतरराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित हुए हैं।
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एम्स भोपाल
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
एलर्जिक राइनाइटिस से जूझ रहे मरीजों के लिए एक अच्छी खबर सामने आई है। एम्स भोपाल में किए गए वैज्ञानिक अध्ययन में यह पाया गया है कि यदि मानक उपचार के साथ होम्योपैथी को सहायक इलाज के रूप में अपनाया जाए, तो मरीजों को ज्यादा बेहतर और लंबे समय तक राहत मिल सकती है। इस अध्ययन में एलर्जिक राइनाइटिस से पीड़ित 210 वयस्क मरीजों को शामिल किया गया। मरीजों को दो समूहों में बांटा गया। एक समूह को केवल सामान्य (मानक) उपचार दिया गया, जबकि दूसरे समूह को मानक उपचार के साथ व्यक्तिगत होम्योपैथिक दवाएं भी दी गईं।
18 सप्ताह बाद दिखा बड़ा अंतर
अध्ययन के अनुसार शुरुआती 4 और 12 सप्ताह में दोनों समूहों में सुधार देखा गया, लेकिन 18 सप्ताह के अंत में होम्योपैथी लेने वाले समूह में स्पष्ट और स्थायी लाभ सामने आया। टोटल नजल सिम्पटम स्कोर (TNSS) में होम्योपैथी समूह में औसतन 78 प्रतिशत अधिक कमी दर्ज की गई। वहीं केवल मानक उपचार लेने वाले मरीजों में यह कमी काफी कम रही।
जीवन गुणवत्ता में भी सुधार
शोध में यह भी पाया गया कि होम्योपैथी समूह में मरीजों की जीवन गुणवत्ता स्कोर में लगभग 61 प्रतिशत तक अधिक सुधार हुआ। नाक बंद होना, बहना, छींक आना और आंखों में जलन जैसे लक्षणों पर बेहतर नियंत्रण देखा गया।
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अंतरराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित
यह अध्ययन एक प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित हुआ है, जो इसके वैज्ञानिक महत्व को और मजबूत करता है। अध्ययन का नेतृत्व एम्स भोपाल के आयुष (होम्योपैथी) विभाग और ईएनटी विभाग के विशेषज्ञों ने संयुक्त रूप से किया।
यह भी पढ़ें-2009 में देखा था सपना, 16 साल बाद साकार हुआ, राजधानी को फास्ट और स्मार्ट परिवहन की सौगात
क्या कहते हैं शोधकर्ता
शोधकर्ताओं का कहना है कि एलर्जिक राइनाइटिस एक दीर्घकालिक बीमारी है, जो मरीजों की दिनचर्या और जीवन गुणवत्ता को प्रभावित करती है। इस अध्ययन से यह प्रमाण मिलता है कि मानक उपचार के साथ होम्योपैथी को जोड़ने से लक्षणों की पुनरावृत्ति कम की जा सकती है और मरीजों को लंबे समय तक राहत मिल सकती है। एम्स भोपाल का यह अध्ययन एलर्जिक राइनाइटिस के दीर्घकालिक प्रबंधन में होम्योपैथी की भूमिका को लेकर नई दिशा देता है और भविष्य में इंटीग्रेटेड चिकित्सा पद्धति को बढ़ावा देने का आधार बन सकता है।
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18 सप्ताह बाद दिखा बड़ा अंतर
अध्ययन के अनुसार शुरुआती 4 और 12 सप्ताह में दोनों समूहों में सुधार देखा गया, लेकिन 18 सप्ताह के अंत में होम्योपैथी लेने वाले समूह में स्पष्ट और स्थायी लाभ सामने आया। टोटल नजल सिम्पटम स्कोर (TNSS) में होम्योपैथी समूह में औसतन 78 प्रतिशत अधिक कमी दर्ज की गई। वहीं केवल मानक उपचार लेने वाले मरीजों में यह कमी काफी कम रही।
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जीवन गुणवत्ता में भी सुधार
शोध में यह भी पाया गया कि होम्योपैथी समूह में मरीजों की जीवन गुणवत्ता स्कोर में लगभग 61 प्रतिशत तक अधिक सुधार हुआ। नाक बंद होना, बहना, छींक आना और आंखों में जलन जैसे लक्षणों पर बेहतर नियंत्रण देखा गया।
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अंतरराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित
यह अध्ययन एक प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित हुआ है, जो इसके वैज्ञानिक महत्व को और मजबूत करता है। अध्ययन का नेतृत्व एम्स भोपाल के आयुष (होम्योपैथी) विभाग और ईएनटी विभाग के विशेषज्ञों ने संयुक्त रूप से किया।
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क्या कहते हैं शोधकर्ता
शोधकर्ताओं का कहना है कि एलर्जिक राइनाइटिस एक दीर्घकालिक बीमारी है, जो मरीजों की दिनचर्या और जीवन गुणवत्ता को प्रभावित करती है। इस अध्ययन से यह प्रमाण मिलता है कि मानक उपचार के साथ होम्योपैथी को जोड़ने से लक्षणों की पुनरावृत्ति कम की जा सकती है और मरीजों को लंबे समय तक राहत मिल सकती है। एम्स भोपाल का यह अध्ययन एलर्जिक राइनाइटिस के दीर्घकालिक प्रबंधन में होम्योपैथी की भूमिका को लेकर नई दिशा देता है और भविष्य में इंटीग्रेटेड चिकित्सा पद्धति को बढ़ावा देने का आधार बन सकता है।

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