{"_id":"653b1b5d7ddc43a313027293","slug":"mp-election-2023-harda-political-history-the-biggest-and-maximum-victory-is-in-the-name-of-minister-kamal-2023-10-27","type":"story","status":"publish","title_hn":"MP Election 2023: दिलचस्प रहा है हरदा का राजनीतिक इतिहास, सबसे बड़ी और सबसे ज्यादा जीत मंत्री कमल पटेल के नाम","category":{"title":"City & states","title_hn":"शहर और राज्य","slug":"city-and-states"}}
MP Election 2023: दिलचस्प रहा है हरदा का राजनीतिक इतिहास, सबसे बड़ी और सबसे ज्यादा जीत मंत्री कमल पटेल के नाम
सार
MP Election 2023: हरदा विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के लिए बद्रीनारायण अग्रवाल नींव के पत्थर रहे और उन्होंने इस क्षेत्र में भाजपा का वर्चस्व कायम करवाया। 2013 के चुनाव में कांग्रेस के आर के दोगने ने भाजपा के मजबूत किले में सेंध मार दी और विजय का परचम फहराया था।
विज्ञापन
MP Election 2023
- फोटो : अमर उजाला,
विज्ञापन
विस्तार
मध्यप्रदेश के गठन के बाद 1957 में हुए पहले चुनाव में हरदा अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित था। तब यहां से दो उम्मीदवार खड़े हुए थे और अनुसूचित जाति की गुलाबबाई रामेश्वर विजयी हुई थी, जबकि सामान्य वर्ग से नायक लक्ष्मण राव भीकाजी विजयी हुए थे। तब आरक्षित सीट से दो विधायक हुआ करते थे। एक सामान्य व एक आरक्षित। 1957 के बाद 1998 में यानी 41 साल बाद शमीम मोदी महिला उम्मीदवार के रूप में चुनाव में खड़ी हुई थी। हरदा भाजपा का गढ़ माना जा सकता है, यहां से भाजपा नेता कमल पटेल पांच बार चुनाव जीत चुके हैं और इस बार फिर वे मैदान में हैं।
1957 से 1985 तक के चुनाव में सिर्फ एक बार जनता पार्टी 1977 में जनता लहर में विजयी हुई, उस वक्त हरदा के प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता बाबूलाल सिलारपुरिया, जो नाजरजी के नाम से प्रसिद्ध थे विजय रहे थे। 1967 में भी बाबूलाल सिलारपुरिया चुनाव में खड़े हुए थे, लेकिन तीसरे स्थान पर रहे थे, 1977 के बाद बाबूलाल सिलारपुरिया जनता पार्टी से 1980 के चुनाव में खड़े हुए और 379 मत ही प्राप्त कर पाए थे। साथ ही जमानत भी जब्त हो गई थी।
1972 में हरदा से नर्मदा प्रसाद उपाध्याय, जो हरदा के प्रसिद्ध ज्योतिषी थे, निर्दलीय खड़े हुए और उन्हें मात्र 561 मत प्राप्त हुए थे। वीरेंद्र कुमार आनंद दो बार भाजपा एवं दो बार निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अपना भाग्य आजमा चुके हैं। 1990 में कांग्रेस ने लक्ष्मन मोरया को टिकट दिया था, 1977 में कांग्रेस ने संतोष कुमार रामभरोसे को टिकट दिया। इसके बाद इन्हें कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया तो एक बार उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अपना भाग्य आजमाया था, पर निराशा ही हाथ लगी।
हरदा विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के लिए बद्रीनारायण अग्रवाल नींव के पत्थर रहे और उन्होंने इस क्षेत्र में भाजपा का वर्चस्व कायम करवाया। 2013 के चुनाव में कांग्रेस के आर के दोगने ने भाजपा के मजबूत किले में सेंध मार दी और विजय का परचम फहराया था। 2023 के चुनाव काफी रोचक होने की संभावना है। भाजपा में असंतोष है और सुरेंद्र जैन, जिन्हें इस बार टिकट की उम्मीद थी, लेकिन उन्हें टिकट नहीं दिया गया तो उन्होंने भाजपा से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने स्थानीय मीडिया के सामने रोते हुए अपने दुःख व्यक्त किया।
हरदा क्षेत्र में गुर्जर, राजपूत, जाट और ब्राह्मण वोटों की अधिकता है। इस बार फिर भाजपा ने कमल पटेल, जो शिवराज मंत्रिमंडल में कृषि मंत्री रहे हैं, मैदान में उतारा है। हरदा क्षेत्र कृषि प्रधान क्षेत्र है। जातिगत समीकरण किस करवट बैठता है, यह निर्णायक भूमिका में रहेगा। देखना है क्या इस बार पुनः कमल खिलने में कामयाब हो पाएगा?
हरदा क्षेत्र के बारे में रोचक जानकारी
Trending Videos
1957 से 1985 तक के चुनाव में सिर्फ एक बार जनता पार्टी 1977 में जनता लहर में विजयी हुई, उस वक्त हरदा के प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता बाबूलाल सिलारपुरिया, जो नाजरजी के नाम से प्रसिद्ध थे विजय रहे थे। 1967 में भी बाबूलाल सिलारपुरिया चुनाव में खड़े हुए थे, लेकिन तीसरे स्थान पर रहे थे, 1977 के बाद बाबूलाल सिलारपुरिया जनता पार्टी से 1980 के चुनाव में खड़े हुए और 379 मत ही प्राप्त कर पाए थे। साथ ही जमानत भी जब्त हो गई थी।
विज्ञापन
विज्ञापन
1972 में हरदा से नर्मदा प्रसाद उपाध्याय, जो हरदा के प्रसिद्ध ज्योतिषी थे, निर्दलीय खड़े हुए और उन्हें मात्र 561 मत प्राप्त हुए थे। वीरेंद्र कुमार आनंद दो बार भाजपा एवं दो बार निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अपना भाग्य आजमा चुके हैं। 1990 में कांग्रेस ने लक्ष्मन मोरया को टिकट दिया था, 1977 में कांग्रेस ने संतोष कुमार रामभरोसे को टिकट दिया। इसके बाद इन्हें कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया तो एक बार उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अपना भाग्य आजमाया था, पर निराशा ही हाथ लगी।
हरदा विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के लिए बद्रीनारायण अग्रवाल नींव के पत्थर रहे और उन्होंने इस क्षेत्र में भाजपा का वर्चस्व कायम करवाया। 2013 के चुनाव में कांग्रेस के आर के दोगने ने भाजपा के मजबूत किले में सेंध मार दी और विजय का परचम फहराया था। 2023 के चुनाव काफी रोचक होने की संभावना है। भाजपा में असंतोष है और सुरेंद्र जैन, जिन्हें इस बार टिकट की उम्मीद थी, लेकिन उन्हें टिकट नहीं दिया गया तो उन्होंने भाजपा से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने स्थानीय मीडिया के सामने रोते हुए अपने दुःख व्यक्त किया।
हरदा क्षेत्र में गुर्जर, राजपूत, जाट और ब्राह्मण वोटों की अधिकता है। इस बार फिर भाजपा ने कमल पटेल, जो शिवराज मंत्रिमंडल में कृषि मंत्री रहे हैं, मैदान में उतारा है। हरदा क्षेत्र कृषि प्रधान क्षेत्र है। जातिगत समीकरण किस करवट बैठता है, यह निर्णायक भूमिका में रहेगा। देखना है क्या इस बार पुनः कमल खिलने में कामयाब हो पाएगा?
हरदा क्षेत्र के बारे में रोचक जानकारी
- दो-दो बार नन्हे पटेल और विष्णु राजौरिया तथा सर्वाधिक पांच बार विजयी होने का रिकॉर्ड कमल पटेल के नाम दर्ज है।
- 1962 में न्यूनतम मतदान हुआ था, जो 41.23 प्रतिशत रहा था। सर्वाधिक मतदान वर्ष 2018 में 81.54 प्रतिशत हुआ था।
- सर्वाधिक 16 उम्मीदवार वर्ष 2016 में चुनाव मैदान में थे।
- सबसे बड़ी जीत कमल पटेल की 14,069 मतों से और छोटी विजय 1957 में कांग्रेस के नायक लक्षमण राव भीकाजी की 400 मतों से हुई थी।

कमेंट
कमेंट X