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Indore News: पीपल बाबा ने कहा-जब आपका काम जमीन पर बोलता है, तो सरकारें भी सुनने को मजबूर होती है

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, इंदौर Published by: अभिषेक चेंडके Updated Mon, 29 Dec 2025 10:01 AM IST
सार

प्रसिद्ध पर्यावरणविद पीपल बाबा ने पर्यावरण संरक्षण के लिए चर्चा नहीं, बल्कि ठोस एक्शन पर जोर दिया। उनका मानना है कि असली बदलाव सरकारी फाइलों से नहीं, बल्कि उन जमीनी रोल मॉडल्स और सामुदायिक भागीदारी से आएगा जो फावड़ा उठाकर मिट्टी से जुड़ना जानते हैं।

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Indore News: Peepal Baba said- When your work speaks on the ground, then even the governments are forced to li
पीपल बाबा। - फोटो : अमर उजाला
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देश के विभिन्न राज्यों में दो करोड़ से अधिक पेड़ लगाकर मिसाल पेश करने वाले प्रसिद्ध पर्यावरणविद प्रेम परिवर्तन, जो 'पीपल बाबा' के नाम से भी जाने जाते है। वे इंदौर आए थे और पर्यावरण संरक्षण को लेकर कई बातें साझा की। उनका मानना है कि पर्यावरण को बचाने के लिए केवल चर्चाओं और बजट से काम नहीं चलेगा, बल्कि धरातल पर उतरकर काम करने वाले असल लोगों को आगे लाने की आवश्यकता है।

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धरातल पर काम करने वालों को मिले पहचान

पीपल बाबा का कहना है कि हिमाचल प्रदेश, केरल, छत्तीसगढ़,उत्तराखंड जैसे राज्यों में कई ऐसे लोग हैं जो गुमनामी में रहकर पर्यावरण के लिए अभूतपूर्व कार्य कर रहे हैं। सरकार को ऐसे जमीनी कार्यकर्ताओं को खोजना चाहिए और उन्हें सशक्त बनाना चाहिए। उनके अनुसार असली बदलाव वे लोग ला रहे हैं जो जमीन पर पसीना बहा रहे हैं। सरकार को उन्हें संसाधन देकर मजबूत करना चाहिए ताकि वे एक उदाहरण बन सकें।

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अधिकारियों के पास निर्देश, समुदाय के पास शक्ति

पर्यावरण संरक्षण में सरकारी तंत्र की सीमाओं पर बात करते हुए पीपल बाबा ने कहा कि सरकारी अफसर और मंत्री निर्देश दे सकते हैं, बजट आवंटित कर सकते हैं या अनुमति दे सकते हैं, लेकिन वे खुद जमीन पर जाकर फावड़ा नहीं चला सकते। वे पांच साल तक पौधों को पानी देकर उनका संरक्षण नहीं कर सकते। यह जिम्मेदारी केवल स्थानीय समुदाय, ग्रामीण, किसान और पंचायतें ही निभा सकती हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि सरकार को खुद काम करने के बजाय विशेषज्ञों और स्थानीय लोगों का एक 'एक्सपर्ट ग्रुप' बनाना चाहिए और उन्हें एक निश्चित समयसीमा के भीतर काम करने की स्वायत्तता देनी चाहिए।

विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन

देश की प्रगति के लिए हाईवे और ब्रिज जैसे बुनियादी ढांचे को जरूरी बताते हुए उन्होंने कहा कि विकास की कीमत पर पर्यावरण की अनदेखी नहीं की जा सकती। यदि विकास कार्यों के लिए कहीं ग्रीन बेल्ट प्रभावित होती है, तो अनिवार्य रूप से उतनी ही हरियाली दूसरी जगह विकसित की जानी चाहिए। इसके लिए युवाओं की सोच में बदलाव लाना और उन्हें इस मुहिम का हिस्सा बनाना अनिवार्य है।

एक से ही बनता है कारवां

बदलाव की प्रक्रिया पर प्रकाश डालते हुए पीपल बाबा ने महापुरुषों का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि चाहे गुरु नानक देव हों, महात्मा गांधी या भगवान बुद्ध। सब अकेले ही चले थे और धीरे-धीरे कारवां बनता गया। यह एक 'मानवीय एल्गोरिदम' है। जब आप खुद को बदलते हैं, तो समाज भी बदलने लगता है। जब आपका काम जमीन पर बोलता है, तो सरकारें भी सुनने को मजबूर हो जाती हैं।

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