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MP: 'मम्मी घंटे भर में लौट आऊंगा', कहकर निकले 3 छात्र हाथीनाला वॉटरफॉल डूबे, परिजनों की चीखों से दहल उठा गांव

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नरसिंहपुर Published by: अमर उजाला ब्यूरो Updated Sat, 02 Aug 2025 11:18 AM IST
सार

MP: तनमय की मां ने रोते हुए कहा कि सुबह मैंने टिफिन में पराठा रखकर दिया था। अब वही टिफिन उसके बैग में मिला, लेकिन वो नहीं...उन्होंने बताया कि उसने कहा था, मम्मी घंटेभर में लौट आऊंगा। मैंने मना किया था जाने से, लेकिन अब 10 घंटे बाद लौटा है, वो भी सफेद चादर में लिपटा हुआ।

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The joys of 3 houses were destroyed together He went to the waterfall after school to walk, drowned and died
मृतक छात्र - फोटो : अमर उजाला
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नरसिंहपुर जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर स्थित हाथीनाला-बिलधा वॉटरफॉल शुक्रवार को तीन परिवारों के लिए मातम बनकर टूटा। 12वीं कक्षा में पढ़ने वाले तीन दोस्त तनमय शर्मा, अक्षत सोनी और अश्विन जाट पिकनिक के लिए वॉटरफॉल गए थे, लेकिन वापस नहीं लौटे। देर शाम उनकी तलाश शुरू हुई और रात करीब 11 बजे तीनों के शव पानी में मिले।

शाम को निकले, रात में मिलीं लाशें
परिजनों ने बताया कि तीनों छात्र शुक्रवार शाम करीब 3 बजे बाइक से हाथीनाला गए थे। जब शाम 5 बजे तक वे नहीं लौटे तो चिंता होने लगी। परिवार के लोग तलाश करते हुए हाथीनाला पहुंचे, जहां बाइक और कपड़े पड़े थे। तुरंत पुलिस और एसडीआरएफ को सूचना दी गई। ग्रामीणों की मदद और टॉर्च की रोशनी में करीब 6 घंटे तक चले सर्च ऑपरेशन के बाद शव बरामद किए गए।

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मां की आंखों में सवाल, बस्ते में मिला अधखाया पराठा
तनमय की मां ने रोते हुए कहा कि सुबह मैंने टिफिन में पराठा रखकर दिया था। अब वही टिफिन उसके बैग में मिला, लेकिन वो नहीं...उन्होंने बताया कि उसने कहा था, मम्मी घंटेभर में लौट आऊंगा। मैंने मना किया था जाने से, लेकिन अब 10 घंटे बाद लौटा है, वो भी सफेद चादर में लिपटा हुआ। अक्षत के पिता ने कहा कि दो दिन पहले ही उसने कहा था कि पापा, 12वीं के बाद कोटा भेज देना, इंजीनियर बनना है। अब वो सपना भी चला गया।


पढ़ें: ब्यारमा नदी से पकड़ा गया चौथा मगरमच्छ, ग्रामीणों ने चंदा कर खरीदा चारा; कई लोगों की ले चुका था जान

बिना सुरक्षा इंतजाम के हर साल निगलता है जिंदगी
स्थानीय लोगों के मुताबिक हाथीनाला वॉटरफॉल पर हर साल सैकड़ों पर्यटक आते हैं, लेकिन आज तक वहां कोई सुरक्षा इंतजाम नहीं किए गए। न कोई गार्ड है, न ही वॉर्निंग बोर्ड या बैरिकेडिंग। एक ग्रामीण ने कहा कि हर मानसून में एक-दो हादसे होते हैं, लेकिन प्रशासन आंखें मूंदे रहता है। जब तक बड़ी जनहानि नहीं होती, तब तक कोई सुध नहीं लेता। घटनास्थल पर न तो किसी तरह का संकेतक लगा है और न ही खतरनाक इलाकों को चिह्नित किया गया है। मानसून में पानी का बहाव तेज होता है, जिससे दुर्घटनाओं की आशंका बनी रहती है। बावजूद इसके प्रशासन ने कोई स्थायी व्यवस्था नहीं की।

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