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'कश्मीर में अजीब सी शांति है, भगवान जानता आगे क्या होगा, पर वहां केंद्र के शासन की जरूरत'
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, चंडीगढ़
Published by: खुशबू गोयल
Updated Mon, 16 Dec 2019 03:11 PM IST
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मिलिट्री लिटरेचर फेस्टिवल
- फोटो : अमर उजाला
अनुच्छेद 370 हटने के बाद से जम्मू-कश्मीर में अजीब सी शांति है, आगे क्या होगा यह तो भगवान जानता है, पर वहां केंद्र सरकार के शासन की जरूरत है।
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मिलिट्री लिटरेचर फेस्ट के आखिरी दिन जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के मसले पर पैनल चर्चा के दौरान रक्षा विशेषज्ञ और नेता आमने-सामने हुए। रक्षा विशेषज्ञों ने केंद्र सरकार के इस कदम पर अपना नजरिया पेश किया तो राजनीतिक दलों के नेताओं ने इस पर अलग राय व्यक्त की। इस दौरान पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत के फॉर्मूले को ही कश्मीर का स्थायी समाधान बताया गया।
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पूर्व रॉ चीफ एएस दुल्लत ने कहा कि कश्मीर में वर्तमान स्थिति को एक विराम के रूप में देखा जा रहा है, जो फटने की प्रतीक्षा कर रहा है। अनुच्छेद 370 हटने के बाद से कश्मीर में अजीब सी शांति है, आगे क्या होगा यह तो भगवान जानता है। केंद्र ने अवांछनीय रूप से अनुच्छेद 370 को खत्म करके भारत से कश्मीर के संबंध को और कमजोर किया है। इस कदम के बाद कश्मीरियों में दिल्ली के प्रति निराशा की भावना बनी हुई है। स्थिति गंभीर थी। हम जो देख रहे हैं, वह शांत अवज्ञा है। कोई नहीं जानता कि भविष्य में इसका रुख क्या होगा।
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आरएसएस के विचारक और भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव राम माधव ने कहा कि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को खत्म करना वहां लोकतंत्र को और मजबूत करने जैसा है। पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला व अन्य नेताओं को जल्दी रिहा कर दिया जाएगा। मौजूदा परिस्थितियों में कश्मीर को कुछ समय के लिए केंद्र सरकार के अधीन होना जरूरी था। हम जम्मू-कश्मीर के राज्य का दर्जा बहाल करेंगे। माधव ने जोर देकर कहा कि कश्मीरियों को कभी भी शांत नहीं जाना जाता है। वे हमेशा उकसावे में आ जाते हैं। कश्मीरी 70 वर्षों से अनुच्छेद 370 के साथ रह रहे थे और अब वे इसके बिना जीवन का अनुभव कर रहे हैं।
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राम माधव ने कहा कि अनुच्छेद 370 हटाना केंद्र सरकार द्वारा उठाया गया एक साहसिक कदम है और मुझे विश्वास है कि नई स्थिति भारत के साथ क्षेत्र के विकास और पूर्ण एकीकरण को सुनिश्चित करेगी। माधव ने स्पष्ट किया कि पीडीपी के साथ भाजपा का गठबंधन विशुद्ध रूप से विकास और सुरक्षा एजेंडे की तर्ज पर परस्पर सहमति के साथ था। महबूबा मुफ्ती के साथ डेढ़ साल काम करने के बाद हमने कश्मीर में अपने सुरक्षा एजेंडे को आगे बढ़ाने में कुछ कठिनाइयां महसूस कीं और एक पार्टी के रूप में हमने पद छोड़ने व राष्ट्रपति शासन लागू होने का इंतजार किया।