फिल्म ‘टार्जन गोज टू इंडिया’ में अभिनय कर लोगों की नज़रों में आए अभिनेता फिरोज खान ने निर्माता निर्देशक बनने तक हिंदी सिनेमा में खूब पापड़ बेले। फिल्म ‘आदमी और इंसान’ में उन्हें फिल्मफेयर का बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का अवार्ड मिला। लेकिन, हीरो बनने के लिए फिरोज खान को खुद ही फिल्में बननी पड़ीं। बतौर डायरेक्टर पहली ही फिल्म ‘अपराध’ में फिरोज खान ने एक ऐसा बेंचमार्क हिंदी सिनेमा में सेट किया कि लोग बस देखते रह गए। फॉर्मूला कार रेसिंग की जर्मनी में हुई शूटिंग दिखाने के बाद फिरोज खान ने अगली फिल्म ‘धर्मात्मा’ की शूटिंग अफगानिस्तान जाकर की। और, बतौर निर्देशक अपनी तीसरी ही फिल्म ‘कुर्बानी’ में अपने सिनेमा के एक अलग स्टाइल का संसार रच दिया। फिरोज खान देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी के काफी करीब थे। फिल्म ‘कुर्बानी’ फिरोज ने उनको ही समर्पित की थी।
अमिताभ बच्चन थे फिरोज की पहली पसंद
साल 1980 में रिलीज हुई हिंदी फिल्मों में सबसे ज्यादा कमाई का रिकॉर्ड बनाने वाली फिल्म ‘कुर्बानी’ सबसे पहले अमिताभ बच्चन को ऑफर हुई थी। फिरोज खान की मंशा थी कि वह फिल्म ‘कुर्बानी’ में अमर का रोल करें लेकिन अमिताभ बच्चन के पास तब छह महीनों तक तारीखें ही नहीं थी। वह ये फिल्म करना चाहते थे और ये भी चाहते थे कि फिरोज खान उनका इंतजार करें। लेकिन, फिरोज खान के तेवर हमेशा अलग रहे। उनका अंदाज ही निराला था। वह जब जो चाहते वही करते। अमिताभ बच्चन वाला रोल उन्होंने बाद में अपने करीबी दोस्त विनोद खन्ना से कराया। फिरोज खान की स्टाइल की एक झलक फिल्म ‘कुर्बानी’ के उस सीन में भी मिलती है जिसमें उन्होंने एक असली मर्सिडीज कार तहस नहस कर दी थी, ये वो समय था जब हिंदुस्तान में महंगी से महंगी गाड़ियां रखने वालों ने भी भारत की सड़कों पर मर्सिडीज नहीं देखी थी।
कहानी दोस्ती और गलतफहमी की
फिल्म ‘कुर्बानी’ राजेश और अमर की कहानी है, दोनों शीला को प्यार करते हैं। दोनों की दोस्ती और गलतफहमियों की भी ये कहानी है। दोनों अलग अलग धाराओं से आते हैं। राजेश जब जेल में होता है तो उसकी गर्लफ्रेंड शीला को अमर मिलता है। अमर की पत्नी मर चुकी है और वह अपनी बेटी की देखभाल में ज्यादतर वक्त बिताता है। जेल से छूटने के बाद जब राजेश की अमर से मुलाकात होती है, तब शीला असली बात नहीं बताती है। दोनों एक आखिरी अपराध की प्लानिंग करते हैं, जिसमें राजेश फंस जाता है और अमर अपनी बेटी और शीला को लेकर लंदन पहुंच जाता है। राजेश को लगता है कि उसके साथ धोखा हुआ है। वह बदला लेने लंदन पहुंचता है तो उसे असल बात पता चलती है। लेकिन, तब तक दोनों का खतरनाक दुश्मन विक्रम वहां पहुंचता है, वह राजेश को मारना चाहता है लेकिन अमर अपनी जान देकर राजेश, शीला और अपनी बेटी को बचा लेता है।
फार्महाउस में लगी थी नोट गिनने की मशीनें
विनोद खन्ना ने फिल्म ‘कुर्बानी’ में अमर का रोल एक ही शर्त पर किया था और वह था फिल्म के मुंबई वितरण क्षेत्र में होने वाला सारा मुनाफा अपने नाम लिखवा लेना। फिरोज खान की दरियादिली ऐसी कि उन्होंने इन कागजात पर दस्तखत भी कर दिए लेकिन जब फिल्म ‘कुर्बानी’ रिलीज हुई और बॉक्स ऑफिस पर ताबड़तोड़ दौलत बरसी तो विनोद खन्ना ओशो के हो चुके थे। अकेले मुंबई में ये फिल्म तीन महीने तक हाउसफुल चली थी। पूरे देश और बाहर भी फिल्म ने बंपर कमाई की और इतनी कमाई की कि फिरोज खान के बैंगलोर स्थित फार्महाउस में नोट गिनने के लिए पूरा एक दस्ता अलग से तैनात किया गया था। फिल्म ‘कुर्बानी’ में अमजद खान पहली बार एक दमदार कैरेक्टर रोल मे दिखे। उनका रोल एक पुलिस इंस्पेक्टर का था और इस रोल में भी लोगों ने उन्हें खूब पसंद किया। ‘लैला ओ लैला’ गाने में वह ड्रम बजाते भी दिखते हैं।
ऊगू, उन्नाव निवासी के के शुक्ला ने लिखी फिल्म
फिल्म ‘कुर्बानी’ में वैसे तो मेन विलेन अमरीश पुरी ही हैं लेकिन इस फिल्म से जिस अभिनेता को सबसे ज्यादा फायदा हुआ, वह हैं शक्ति कपूर। फिल्म में उनका किरदार विक्रम का है जो अपनी बहन ज्वाला (अरूणा ईरानी) के साथ नफरत का खेल रचता है। भाई बहन की ये जोड़ी परदे पर इतनी क्रूर दिखती है कि एक बार तो फिल्म देखते समय भी सिहरन हो जाती है। शक्ति कपूर को ये रोल मिलने की भी एक दिलचस्प कहानी है। जावेद अख्तर को अपने घर में पनाह देने वाली राइटर हनी ईरानी की बहन डेजी ईरानी की शादी भी एक मशहूर लेखक से हुई। फिल्म ‘कुर्बानी’ लिखने वाले ये राइटर थे के के शुक्ला, इनका नाम आप 70 और 80 के दशक में रिलीज हुई तमाम सुपरहिट फिल्मों के क्रेडिट्स में देख सकते हैं। के के शुक्ला उत्तर प्रदेश में उन्नाव जिले के ऊगू के बाशिंदे थे और उनके घर में मुंबई जाने के बाद भी एक इंसान के खाने भर का भोजन हर समय बना रखा रहता था। ये अवध के गांवों का बरसों से चला आ रहा नियम है। और, डेजी ईरानी के घर रखा ये खाना खाने अक्सर शक्ति कपूर पहुंच जाते थे।
जिसने कार ठोंकी उसी को बना दिया विलेन
शक्ति कपूर के पास उन दिनों एक फिएट कार हुआ करती थी और रहते वे पूरे स्वैग में थे। एक दिन उनकी कार बांद्रा में एक ब्रांड न्यू मर्सिडीज कार से टकरा गई। शक्ति कपूर पूरे तैश में कार वाले को मारने उतरे तो देखा कि सामने फिरोज खान खड़े हैं। शक्ति कपूर का गुस्सा काफूर और वह उन्हें अपना परिचय देने लगे। फिरोज खान दफ्तर लौटे तो के के शुक्ला को बुलाकर बोले कि मेरी कार को टक्कर मारने वाले लड़के को तलाश करो, वही फिल्म ‘कुर्बानी’ का विक्रम बनेगा। घर पर के के शुक्ला ने ये किस्सा सुनाते हुए शक्ति कपूर से कहा, सॉरी, मैं तुम्हारी मदद नहीं कर पाऊंगा क्योंकि जो रोल मैंने तुम्हें देने के लिए फिरोज खान से बात करने की प्लानिंग की थी, वह रोल अब वो किसी और को दे रहे हैं जिसने उनकी कार में आज टक्कर मार दी। शक्ति कपूर के तो आंखों से आंसू निकल आए ये सुनकर। वह बोले, ‘वह लड़का मैं ही हूं। आज मेरी ही कार से फिरोज खान की कार टकरा गई थी।’ फिरोज खान हिंदी सिनेमा के ऐसे फलदार वृक्ष रहे जिसने पत्थर मारने वालों को भी फल ही दिए।