गोरखपुर के रामगढ़ताल से उठने वाली बदबू की समस्या उसके तल में जमी गाद में छिपी है। इस समस्या के समाधान के लिए विशेषज्ञ ने गाद को निकलवाने का सुझाव दिया है। दरअसल, संरक्षण और सुंदरीकरण योजना के तहत ताल से 11 लाख घन मीटर गाद निकाली गई, लेकिन 82 लाख घन मीटर गाद (सिल्ट) छोड़ दी गई। गाद की वजह से न केवल ताल से दुर्गंध उठने लगी है, बल्कि पानी भी हरा दिखाई देता है।
जानकारी के अनुसार, राष्ट्रीय झील संरक्षण परियोजना के तहत रामगढ़ताल के संरक्षण और सुंदरीकरण का काम कुछ हद तक पूरा किया जा चुका है। इसे गोरखपुर विकास प्राधिकरण (जीडीए) को हैंडओवर भी किया जा चुका है, लेकिन ताल में अब भी 82 लाख घन मीटर गाद जमी हुई है।
विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक ताल से गाद की सफाई नहीं हो जाएगी तब तक गोरखपुर की इस धरोहर को संरक्षित नहीं कहा जा सकता है। हाल ही में ताल से दुर्गंध उठने के बाद मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ कैलाश पांडेय ने ताल से गाद निकालने की आवश्यकता जताई है। उन्होंने पिछले दिनों ताल का निरीक्षण करके इससे उठ रही दुर्गंध का कारण समझा था। इसके बाद ही उन्होंने ताल से गाद निकालने का सुझाव दिया है।
आईआईटी रुड़की ने किया था सर्वे
आईआईटी रुड़की ने सेटेलाइट से सर्वे करके रामगढ़ताल की तलहटी में करीब 93 लाख घन मीटर गाद का आकलन किया था। इसके बाद ताल के संरक्षण के लिए स्वीकृत योजना में करीब 11.25 लाख घन मीटर गाद की सफाई की जा चुकी है, लेकिन इसमें अब भी 82 लाख घन मीटर गाद जमी हुई है।
रामगढ़ताल के परियोजना प्रबंधक रतनसेन सिंह ने बताया कि आईआईटी रुड़की की ओर से ताल में गाद का आकलन किया गया था। करीब 11.25 लाख मीटर गाद की सफाई के बाद भी 82 लाख घन मीटर गाद बच गई है। गाद को निकालने के लिए प्रदेश सरकार के माध्यम से केंद्र सरकार को 348 करोड़ रुपये का प्रस्ताव भेजा गया है। प्रस्ताव की स्वीकृति का इंतजार है।
शहर से निकलने वाली गंदगी ताल में गाद के रूप में जमी
करीब 14 किलोमीटर की परिधि में फैले रामगढ़ताल में शहर का करीब एक तिहाई गंदा पानी सीधे गिरता है। इस वजह से ताल में गाद जमती चली गई और पानी खराब होने लगा। पानी की ऑक्सीजन की मात्रा भी कम होती चली गई। दो सीवरेज प्लांट बनने के बाद ताल में कुछ हद तक गंदा पानी गिरना बंद हुआ है, लेकिन पिछले दिनों दोनों सीवरेज प्लांट भी चलते नहीं पाए गए। गंदा पानी सीधे ताल में गिरता पाया गया। यही नहीं जब आईआईटी रुड़की ने ताल में गाद का आकलन किया था उसके बाद से काफी समय गुजर चुका है। इतने समय में गाद की मात्रा और बढ़ गई होगी।