Vitamin-D Deficiency: शरीर को स्वस्थ और फिट रखना चाहते हैं तो इसका सबसे आसान फार्मूला है स्वस्थ आहार और नियमित व्यायाम। स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, चिंताजनक बात ये है कि भारतीय आबादी में इन दोनों की कमी देखी जा रही है। यही कारण है कि कम उम्र में ही लोग कई प्रकार की बीमारियों के चपेट में आ रहे हैं। हमारे शरीर को अच्छे तरीके से काम करते रहने के लिए आहार के माध्यम से कई प्रकार के विटामिन्स, प्रोटीन और अन्य पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। विटामिन-डी भी उनमें से एक है।
Alert: 50% से ज्यादा भारतीय महिलाओं में विटामिन-डी की कमी, इन गंभीर रोगों का बढ़ सकता है खतरा
- शोध बताते हैं कि भारत में 50% से ज्यादा महिलाएं विटामिन-डी की कमी से पीड़ित हैं और यही वजह है कि 40 साल के बाद उनमें फ्रैक्चर का खतरा पुरुषों से दोगुना हो जाता है।
विटामिन-डी क्यों जरूरी है?
विटामिन-डी को सनशाइन विटामिन भी कहा जाता है, क्योंकि यह धूप से शरीर में निर्मित होता है। ये विटामिन शरीर में कैल्शियम और फॉस्फोरस को अवशोषित करने में भी मददगार है, जिससे हड्डियां और दांत मजबूत रहते हैं। साथ ही यह इम्यून सिस्टम को बेहतर बनाता है और कई हार्मोनल प्रक्रियाओं को नियंत्रित करता है।
अध्ययनों के मुताबिक, जिन लोगों में विटामिन-डी का स्तर संतुलित होता है, उनमें डायबिटीज, हृदय रोग और कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा भी कम हो जाता है। महिलाओं के लिए यह और भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि हार्मोनल बदलाव और गर्भावस्था के दौरान शरीर को ज्यादा विटामिन-डी की जरूरत होती है।
महिलाओं में विटामिन-डी की कमी
स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, महिलाओं में विटामिन-डी की कमी से हड्डियों का दर्द, मांसपेशियों की कमजोरी और मानसिक तनाव तेजी से बढ़ रहा है। नोएडा के जिला अस्पताल से प्राप्त जानकारियों के मुताबिक यहां प्रतिदिन 100 के करीब विटामिन डी के टेस्ट हो रहे हैं। उनमें से लगभग 70 प्रतिशत महिलाएं हैं। विटामिन डी कमी गर्भवती के स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर रही है।
डॉक्टर बताती हैं, विटामिन-डी की कमी से महिलाओं में कई शारीरिक और मानसिक परेशानियां हो सकती हैं। इसके लक्षणों में पीठ और घुटनों में दर्द, मांसपेशियों में कमजोरी, थकान, अवसाद और बाल झड़ना शामिल हैं। विटामिन-डी का सामान्य स्तर 20 से 50 नैनोग्राम प्रति मिलीलीटर होना चाहिए। इससे कम होने पर डॉक्टर सप्लीमेंट्स लेने की सलाह देते हैं।
हड्डियों में कमजोरी की दिक्कत
महिलाओं में 40 साल की उम्र के बाद हड्डियों का घनत्व धीरे-धीरे कम होने लगता है। अगर इस समय शरीर को पर्याप्त विटामिन-डी न मिले तो हड्डियां कमजोर होकर आसानी से टूट सकती हैं, इसे ऑस्टियोपोरोसिस कहते हैं। शोध बताते हैं कि भारत में 50% से ज्यादा महिलाएं विटामिन-डी की कमी से पीड़ित हैं और यही वजह है कि 40 साल के बाद उनमें फ्रैक्चर का खतरा पुरुषों से दोगुना हो जाता है।
विटामिन-डी कैल्शियम को हड्डियों तक पहुंचाता है, अगर यह न हो तो कैल्शियम का शरीर में सही से उपयोग भी नहीं हो पाता है। इसलिए महिलाओं के लिए नियमित धूप और संतुलित आहार लेना बहुत आवश्यक हो जाता है।
गर्भावस्था की बढ़ सकती है दिक्कतें
स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, गर्भावस्था में विटामिन डी की कमी कई तरह की जटिलताएं बढ़ा सकती है। इससे प्रीक्लेम्पसिया (हाई ब्लड प्रेशर), गर्भकालीन मधुमेह और सिजेरियन डिलीवरी की आशंका बढ़ जाती है। शहरी क्षेत्रों में धूप की कमी, व्यस्त जीवनशैली और पोषण की कमी इसके मुख्य कारण हैं।
विटामिन-डी मुख्यत सूरज की किरणों से प्राप्त होता है। लोगों का अक्सर ऑफिस और घरों में बंद रहना, आहार में विटामिन्स की कमी इस खतरे को बढ़ाती जा रही है।
कैसे करें इस विटामिन की पूर्ति?
डॉक्टर कहते हैं, विटामिन-डी केवल हड्डियों के लिए नहीं बल्कि पूरे शरीर के संतुलित स्वास्थ्य के लिए जरूरी है। महिलाओं को खासतौर पर इस पर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि उनकी जीवनशैली, हार्मोनल बदलाव और गर्भावस्था के कारण इसकी कमी जल्दी हो सकती है।
- विटामिन-डी की पूर्ति के लिए रोजाना सुबह 7 से 9 बजे के बीच 15–20 मिनट धूप में रहना सबसे अच्छा तरीका है।
- इसके अलावा विटामिन-डी वाले कुछ खाद्य पदार्थों जैसे अंडे की जर्दी, फैटी फिश, दूध और डेयरी उत्पाद, मशरूम को आहार में जरूर शामिल करें।
- जिन लोगों को धूप और आहार से इस विटामिन की पर्याप्त मात्रा नहीं मिल पाती, डॉक्टर अक्सर उन्हें विटामिन-डी टैबलेट लेने की सलाह देते हैं।
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नोट: यह लेख मेडिकल रिपोर्टस से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है।
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