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Health Tips: क्या होता है लाइसोसोमल स्टोरेज डिसऑर्डर, क्यों दर्जनों बच्चों की जान को है खतरा?

हेल्थ डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: शिखर बरनवाल Updated Thu, 11 Dec 2025 06:00 PM IST
सार

Enzyme Replacement Therapy ERT India: लाइसोसोमल स्टोरेज डिसऑर्डर इलाज एक गंभीर और जानलेवा बीमारी है। यह बीमारी आमतौर पर छोटे बच्चों में देखने को मिलती है। इस दुर्लभ बीमारी की इलाज के लिए 50 लाख की सीमा को बढ़ाने के लिए IMPF ने सरकार को पत्र लिखा है।

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What is lysosomal storage disorder, why are the lives of dozens of children in danger
लाइसोसोमल स्टोरेज डिसऑर्डर - फोटो : Adobe Stock

Lysosomal Storage Disorder Treatment: भारत में 'लाइसोसोमल स्टोरेज डिसऑर्डर' से जूझ रहे दर्जनों बच्चों के जीवन को सुरक्षित करने के लिए 'इंडियन मेडिकल पार्लियामेंटेरियंस फोरम' ने गंभीर चिंता जताई है। 'लाइसोसोमल स्टोरेज डिसऑर्डर' एक गंभीर बीमारी है, जो तब उत्पन्न होती है जब शरीर की कोशिकाओं के अंदर मौजूद 'लाइसोसोम' ठीक से काम नहीं कर पाते। लाइसोसोम कोशिका का वह हिस्सा होता है जो अनावश्यक या हानिकारक पदार्थों को तोड़ने और रीसायकल करने का कार्य करता है।



इस बीमारी में किसी विशेष एंजाइम की कमी हो जाती है, जिससे ये पदार्थ कोशिकाओं में जमा होने लगते हैं। इस जमाव के कारण कोशिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती हैं और धीरे-धीरे शरीर के महत्त्वपूर्ण अंग जैसे मस्तिष्क, हृदय, लिवर और हड्डियां काम करना बंद कर देते हैं।

इस जानलेवा स्थिति पर 'इंडियन मेडिकल पार्लियामेंटेरियंस फोरम', ने सरकार को गंभीर चेतावनी दी है। इस फोरम में 45 डॉक्टर-सांसद शामिल हैं। फोरम ने कहा है कि 'राष्ट्रीय दुर्लभ रोग नीति NPRD 2021' के तहत इलाज के लिए मिलने वाली आर्थिक सहायता में आ रही रुकावटों के कारण ये बच्चे मृत्यु के कगार पर हैं।

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लाइसोसोमल स्टोरेज डिसऑर्डर - फोटो : Adobe Stock

LSD क्या है? 
लाइसोसोमल स्टोरेज डिसऑर्डर एक आनुवंशिक बीमारी है। शरीर में हर कोशिका के भीतर लाइसोसोम होते हैं, जो छोटे 'कूड़ा निस्तारण केंद्र' की तरह काम करते हैं। ये जटिल फैट, प्रोटीन या कार्बोहाइड्रेट जैसे बड़े अणुओं को तोड़ने के लिए एंजाइम का उपयोग करते हैं।

LSD से पीड़ित बच्चों में, इन एंजाइमों में से कोई एक अनुपस्थित होता है। एंजाइम की कमी के कारण ये अपशिष्ट पदार्थ टूट नहीं पाते और कोशिकाओं में जहर की तरह जमा होने लगते हैं। इसी जमाव के कारण अंग काम करना बंद कर देते हैं, जिससे ये बीमारियां जानलेवा बन जाती हैं।

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लाइसोसोमल स्टोरेज डिसऑर्डर - फोटो : Adobe Stock

क्या है पूरा मामला?
इंडियन मेडिकल पार्लियामेंटेरियंस फोरम के अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद डॉ. अनिल बोंडे ने प्रधानमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा को पत्र लिखकर तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है। उनकी प्रमुख चिंता NPRD नीति के तहत 50 लाख रुपये की अधिकतम वित्तीय सहायता सीमा है।

फोरम ने बताया कि लगभग 60 मरीज का इलाज खर्च इस सीमा को पार कर चुका है, जिससे उनका एकमात्र जीवनरक्षक इलाज, 'एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी' (इआरटी), बंद होने के कगार पर है। इआरटी इन बच्चों के लिए अत्यंत आवश्यक है, जो कि बेहद महंगा होता है।


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लाइसोसोमल स्टोरेज डिसऑर्डर - फोटो : Adobe Stock

मौत का आंकड़ा और तत्काल मांग
फंड की कमी या इलाज में अनावश्यक देरी के कारण अब तक LSD से जूझ रहे 60 से अधिक बच्चों और युवाओं की जान जा चुकी है। वहीं लगभग 100 अन्य मरीज ऐसे हैं जिनका फंड समाप्त होने वाला है और उनका जीवन रक्षक इलाज कभी भी रुक सकता है।

फोरम ने कड़ी चेतावनी दी है कि इआरटी में थोड़ी सी भी रुकावट शरीर के अंगों को तुरंत और अपरिवर्तनीय रूप से खराब कर सकती है, जो सीधे तौर पर जानलेवा साबित होती है।


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सांकेतिक तस्वीर (Doctor) - फोटो : freepik
फोरम का आग्रह
फोरम ने सरकार से विनम्र आग्रह किया है कि इन बच्चों की जान बचाने के लिए 50 लाख रुपये की वित्तीय सीमा को तुरंत हटाया जाए। साथ ही उन्होंने एक ऐसा स्थायी और सतत फंडिंग सिस्टम बनाने की मांग की है, जिसके माध्यम से LSD के इलाज के लिए नामित 'सेंटर्स ऑफ एक्सीलेंस' के जरिए बिना किसी देरी के लगातार फंड मिलता रहे। उनका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि किसी भी बच्चे का इलाज केवल पैसे की कमी के कारण न रुके।

नोट: यह लेख मेडिकल रिपोर्टस से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है।

अस्वीकरण: अमर उजाला की हेल्थ एवं फिटनेस कैटेगरी में प्रकाशित सभी लेख डॉक्टर, विशेषज्ञों व अकादमिक संस्थानों से बातचीत के आधार पर तैयार किए जाते हैं। लेख में उल्लेखित तथ्यों व सूचनाओं को अमर उजाला के पेशेवर पत्रकारों द्वारा जांचा व परखा गया है। इस लेख को तैयार करते समय सभी तरह के निर्देशों का पालन किया गया है। संबंधित लेख पाठक की जानकारी व जागरूकता बढ़ाने के लिए तैयार किया गया है। अमर उजाला लेख में प्रदत्त जानकारी व सूचना को लेकर किसी तरह का दावा नहीं करता है और न ही जिम्मेदारी लेता है। उपरोक्त लेख में उल्लेखित संबंधित बीमारी के बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श लें।
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