अकेलापन मानसिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर समस्या मानी जाती रही है, दुनिया की बड़ी आबादी इसकी शिकार है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते है, लंबे समय तक बनी रहने वाली अकेलेपन की समस्या न सिर्फ मानसिक स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है, इसके शारीरिक स्वास्थ्य पर भी असर देखे जाते रहे हैं। दीर्घकालिक अकेलापन अवसाद, चिंता और आत्महत्या जैसी गंभीर समस्याओं का कारण भी बन सकती है। लोनलीनेस के कारण होने वाले स्वास्थ्य जोखिमों को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने अकेलेपन को एक गंभीर 'वैश्विक स्वास्थ्य खतरे' के तौर पर वर्गीकृत किया है।
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अकेलापन उतना ही खतरनाक जितना धूम्रपान
डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट में कहा गया है कि अकेलेपन की स्थिति हमारे संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए उसी प्रकार से हानिकारक है, जैसे एक दिन में 15 सिगरेट पीना। इतना ही नहीं, इसके दुष्प्रभाव मोटापे और शारीरिक निष्क्रियता के कारण होने वाली समस्याओं से भी अधिक हो सकते हैं।
द गार्डियन की रिपोर्ट के अनुसार, विश्व स्वास्थ्य संगठन सामाजिक संबंधों में सुधार के लिए जापान में एक आयोग शुरू किया है, जो अकेलेपन से निपटने के लिए अपनी तरह की पहली वैश्विक पहल है जिसके माध्यम से इस जोखिम को कम करने में लाभ मिलने की उम्मीद जताई गई है।
भारतीय युवाओं में इसकी समस्या अधिक
मई 2022 में इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एनवायर्नमेंटल रिसर्च एंड पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित एक अध्ययन में भारतीय युवाओं में बढ़ती लोनलीनेस की समस्या को लेकर चिंता जाहिर की गई थी। इस डेटा में पाया गया कि 45 वर्ष की आयु के लगभग 20.5% वयस्क अकेलेपन की समस्या के शिकार हैं, जो उनमें कई प्रकार की शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के खतरे को बढ़ा रही है।
क्या कहते हैं मनोचिकित्सक?
मनोचिकित्सक डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं भारत में, खासकर शहरी इलाकों में अकेलापन पिछले कुछ वर्षों में एक बड़ा स्वास्थ्य जोखिम बनकर उभरा है। कोरोना महामारी के दौरान सोशल आइसोलेशन ने इसे और भी ट्रिगर कर दिया है। हैरत की बात ये है कि इनमें से अधिकतर लोग इस समस्या से अनजान हैं कि उन्हें अकेलेपन की दिक्कत है, क्योंकि इसके कारण होने वाली मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का निदान नहीं हो पाता है और शारीरिक लक्षणों को कोई और बीमारी मानकर लंबे समय तक उपचार किया जाता रहा है।
मौजूदा समय में अवसाद के ज्यादातर मामलों के लिए अकेलेपन को प्रमुख कारण के तौर पर देखा जा रहा है।
अकेलेपन की समस्या पर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत
डॉक्टर सत्यकांत कहते हैं, डब्ल्यूएचओ का ये पहल सराहनीय है। देर से ही सही इस गंभीर मानसिक स्वास्थ्य जोखिम कारक पर स्वास्थ्य संगठनों में चर्चा हो रही है। यह समस्या हृदय रोग, डिमेंशिया से लेकर स्ट्रोक, अवसाद, चिंता और समय से पहले मौत के जोखिम को भी बढ़ाने वाली हो सकती है। व्यक्तिगत तौर पर भी सभी लोगों को इस स्थिति पर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है। अगर आप भी अकेलेपन की समस्या से जूझ रहे हैं तो इसे गंभीरता से लेते हुए मनोरोग विशेषज्ञों की सलाह जरूर लें।
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स्रोत और संदर्भ
WHO Commission on Social Connection
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