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Health Tips: सर्दियों में क्यों अधिक आते हैं खर्राटे? कहीं ये किसी गंभीर बीमारी का संकेत तो नहीं

हेल्थ डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: शिखर बरनवाल Updated Wed, 24 Dec 2025 02:59 PM IST
सार

Causes of Poor Sleep in Winter: ठंड के दिनों में खर्राटे की समस्या बढ़ जाती है, इसके पीछे कई कारण हैं जिसके बारे में आपको भी जानना चाहिए। इसके साथ ही ये भी जानना जरूरी है खर्राटे आना कई बार गंभीर बीमारियों का संकेत भी होते हैं। इसलिए आइए इस लेख में इसी के बारे में जानते हैं।

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ठंड में क्यों बढ़ जाते हैं खर्राटे की समस्या? - फोटो : Amar Ujala

Causes of Snoring In Winter: अक्सर ये देखने को मिलता है कि सर्दियों में खर्राटों की समस्या बढ़ जाती है। एक स्टडी के मुताबिक भीषण ठंड में लोग इंटरनेट पर खर्राटे के बारे खूब सर्च करते हैं। सर्दियों की रातों में खर्राटों की आवाज बढ़ना महज एक इत्तेफाक नहीं, बल्कि इसके पीछे कुछ पर्यावरणीय कारण हैं। जैसे ही तापमान गिरता है, हवा शुष्क हो जाती है, जो हमारे श्वसन मार्ग की संवेदनशील झिल्ली को प्रभावित करती है। 



शुष्क हवा के कारण नाक के मार्ग में सूजन आ जाती है और कफ गाढ़ा होने लगता है, जिससे सांस लेने का रास्ता संकरा हो जाता है। जब हवा इस संकरे रास्ते से जोर लगाती है, तो गले के ऊतकों में कंपन होता है, जिसे हम 'खर्राटे' कहते हैं। इसके अलावा, ठंड में हम अक्सर बंद कमरों में सोते हैं जहां वेंटिलेशन कम होता है, और रजाई या भारी कंबलों के दबाव से छाती का विस्तार कम हो पाता है। 

स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार सर्दियों में बढ़ते खर्राटे 'ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया' का शुरुआती संकेत हो सकते हैं। अगर खर्राटों के साथ आपकी नींद बार-बार खुलती है या सुबह उठने पर सिर में भारीपन महसूस होता है, तो इसे नजरअंदाज करना हृदय और ब्लड प्रेशर के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।

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नाक से खून, साइनस - फोटो : freepik.com

नाक का बंद होना
सर्दियों में जुकाम और साइनस की समस्या आम है। जब नाक बंद होती है, तो व्यक्ति मजबूरी में मुंह से सांस लेने लगता है। मुंह से सांस लेने पर गले का पिछला हिस्सा अधिक कंपन करता है, जिससे खर्राटों की तीव्रता बढ़ जाती है। अगर आपको साइनस है, तो रात को सोने से पहले भाप लेना और 'नेजल स्प्रे' का उपयोग करना इस समस्या को काफी हद तक कम कर सकता है।


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खर्राटे लेना - फोटो : Adobe Stock

शुष्क हवा और हीटर का प्रभाव
ठंड से बचने के लिए कमरे में चलाया गया 'रूम हीटर' हवा की प्राकृतिक नमी को सोख लेता है। शुष्क हवा गले और नाक के ऊतकों को सुखा देती है, जिससे घर्षण बढ़ता है और खर्राटे तेज हो जाते हैं। इससे बचने के लिए कमरे में 'ह्यूमिडिफायर' का प्रयोग करें या कमरे के एक कोने में पानी से भरा कटोरा रखें, ताकि हवा में नमी बनी रहे और श्वसन मार्ग गीला रहे।


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स्लीप एप्निया खर्राटे लेना - फोटो : Adobe Stock

स्लीप एपनिया
अगर खर्राटों के बीच अचानक सांस रुकने जैसी स्थिति महसूस हो, तो यह स्लीप एपनिया हो सकता है। सर्दियों में शारीरिक गतिविधि कम होने से वजन बढ़ता है, जो गले के आसपास अतिरिक्त चर्बी जमा कर देता है। यह चर्बी सोते समय सांस की नली पर दबाव डालती है। स्लीप एपनिया से पीड़ित व्यक्ति को दिनभर थकान रहती है और लंबे समय में यह टाइप-2 डायबिटीज और स्ट्रोक के जोखिम को बढ़ा देता है।

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नींद में सोना - फोटो : Adobe Stock
बचाव के उपाय
खर्राटों को कम करने के लिए सबसे पहले अपनी 'स्लीपिंग पोजीशन' बदलें, पीठ के बल सोने के बजाय करवट लेकर सोएं। रात को सोने से कम से कम 2 घंटे पहले हल्का भोजन करें और शराब का सेवन बिल्कुल न करें, क्योंकि यह गले की मांसपेशियों को अत्यधिक ढीला कर देती है। अगर समस्या बनी रहती है, तो तुरंत किसी डॉक्टर से अपने सभी लक्षणों को बताकर परामर्श लें।

नोट: यह लेख मेडिकल रिपोर्टस से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है।

अस्वीकरण: अमर उजाला की हेल्थ एवं फिटनेस कैटेगरी में प्रकाशित सभी लेख डॉक्टर, विशेषज्ञों व अकादमिक संस्थानों से बातचीत के आधार पर तैयार किए जाते हैं। लेख में उल्लेखित तथ्यों व सूचनाओं को अमर उजाला के पेशेवर पत्रकारों द्वारा जांचा व परखा गया है। इस लेख को तैयार करते समय सभी तरह के निर्देशों का पालन किया गया है। संबंधित लेख पाठक की जानकारी व जागरूकता बढ़ाने के लिए तैयार किया गया है। अमर उजाला लेख में प्रदत्त जानकारी व सूचना को लेकर किसी तरह का दावा नहीं करता है और न ही जिम्मेदारी लेता है। उपरोक्त लेख में उल्लेखित संबंधित बीमारी के बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श लें।
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