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Krishna Janmashtami 2022: श्री कृष्ण ने अपने आंसू से धोए थे मित्र सुदामा के पैर, ऐसे हुई थी दोनों की दोस्ती

लाइफस्टाइल डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: शिवानी अवस्थी Updated Thu, 18 Aug 2022 12:17 AM IST
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Krishna Janmashtami 2022 Who Was the Guru of Lord Krishna and Sudama Know about Their Friendship in Hindi
श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता की कहानी - फोटो : facebook

Krishna Janmashtami 2022: हाल ही में फ्रेंडशिप डे यानी मित्रता दिवस मनाया गया है। आज के युवा दोस्ती को बहुत अहमियत देते हैं। माता पिता और गुरु के अलावा दोस्ती का रिश्ता भी बहुत खास होता है। दोस्त सुख-दुख में आपका साथ देते हैं। अच्छे और बुरे के बारे में दोस्त बेहतर सलाह देते हैं। हालांकि दोस्ती भारतीय परंपरा में नई बात नहीं है। भारत में सच्ची मित्रता की कहानी सदियों पुरानी है, जिनका जिक्र पुराणों में मिलता है। दोस्ती का जिक्र आता है तो उदाहरण भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा का दिया जाता है। कृष्ण एक राजा थे और सुदामा एक गरीब ब्राह्मण। फिर भी कृष्ण और सुदामा की दोस्ती एक मिसाल है। कृष्ण और सुदामा की दोस्ती के कई किस्से आपने सुने होंगें। जैसे, गरीब सुदामा कृष्ण से मिलने उनके महल पहुंचे थे तो वह भगवान कृष्ण के लिए महज तीन मुट्ठी चावल लेकर गए थे। प्रभु श्रीकृष्ण ने दोस्त के लाए चावलों को खुशी खुशी ग्रहण किया और उन्हें पूरी सृष्टि देने को तैयार हो गए। एक राजा होते हुए भी कृष्ण सुदामा को अपने महल लाए, खुद उनके पैर धोए, सुदामा के पैरों में चुभे कांटों को देख रोने लगे। ये सारी कहानियां बचपन से बच्चों को दादी नानी सुनाती आ रही हैं। पुराणों में इन कहानियों को सच बताया गया है। लेकिन क्या आपको पता है कि नटखट नंद गोपाल की दोस्ती एक साधारण से ब्राह्मण बालक सुदामा से कैसे हो गई? कृष्ण और सुदामा की पहली बार कब और कहां मुलाकात हुई? कृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर जानिए कृष्ण और सुदामा की दोस्ती की कहानी।

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श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता की कहानी - फोटो : amar ujala

कैसे हुई कृष्ण सुदामा की पहली मुलाकात?

बालपन में कन्हैया को दीक्षा दिलाने के लिए माता यशोदा और बाबा नंद ऋषि के आश्रम में छोड़ आए थे। जब कान्हा शिक्षा ग्रहण करने के लिए आश्रम आए तो उनकी मुलाकात सुदामा से हुई। आश्रम में जात पात, अमीर गरीब का अंतर नहीं होता। राजपरिवार में जन्मे कन्हैया की दोस्ती ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए सुदामा से हो गई। वक्त के साथ ये मित्रता इतनी घनिष्ठ हो गई कि पूरी दुनिया में कृष्ण सुदामा की दोस्ती का गुणगान किया जाता है। शिक्षा दीक्षा पूरी होने के बाद भगवान कृष्ण राजा बन गए और सुदामा अधिक गरीब और बुरी आर्थिक स्थिति में आ गए।

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कृष्ण और सुदामा की मित्रता - फोटो : Facebook

कृष्ण और सुदामा के गुरु का नाम

भगवान श्रीकृष्ण के पहले गुरु ऋषि संदीपन (संदीपनी) थे। ऋषि संदीपनी का आश्रम मध्य प्रदेश के उज्जैन (अवंतिका) में था। श्रीकृष्ण के साथ ही उनके बड़े भाई बलराम और सुदामा ने भी ऋषि सांदीपनी के आश्रम में शिक्षा दीक्षा ली थी। आश्रम में श्रीकृष्ण ने वेद और योग की शिक्षा के साथ 64 कलाओं की शिक्षा ली थी। ऋषि संदीपनी के आश्रम में ही सुदामा से कृष्ण जी की दोस्ती हुई थी।

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कृष्ण-सुदामा की कहानी प्रस्तुत करते कलाकार - फोटो : अमर उजाला

कृष्ण-सुदामा की दोस्ती की कहानी

आश्रम से शिक्षा लेने के बाद श्रीकृष्ण मथुरा आ गए और बाद में द्वारका के राजा बनकर वहीं बस गए। सुदामा भी आश्रम से शिक्षा दीक्षा के बाद अपने ग्राम अस्मावतीपुर जो वर्तमान में पोरबंदर हैं, आ गए और भिक्षा मांग कर अपने परिवार का पालन पोषण करने लगे। कहा जाता है कि सुदामा एक दिन में सिर्फ पांच घरों से ही भिक्षा मांगते थे। अगर इन घरों से कुछ मिल जाता तो परिवार का पेट भर जाता, वरना भूखे ही सोना पड़ता। उनकी दरिद्रता बहुत अधिक बढ़ गई तो सुदामा की पत्नी सुशीला ने उन्हें द्वारका के राजा यानी सुदामा के मित्र श्रीकृष्ण से मदद मांगने को कहा। पहले तो सुदामा ने मना किया लेकिन बाद में पत्नी की बात मानकर वह द्वारका की ओर चल पड़े।

सुदामा इस बात को लेकर चिंतित थे कि जब सालों बाद वह अपने बालसखा से मिलेंगे तो कन्हैया को भेंट में देने के लिए उनके पास कुछ भी न होगा। सुदामा की पत्नी ने इस बात को समझते हुए पड़ोस के घर से कुछ मुट्ठी चावल मांगकर पोटली बनाकर सुदामा को दे दी। जब वह नंगे पग और तन ढकने के लिए फटी धोती पहन कृष्ण के महल के सामने आए और द्वारपाल से कहा कि वह केशव के मित्र हैं तो हर कोई उनपर हंसने लगा।

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कृष्ण सुदामा की झांकी - फोटो : amar ujala
कृष्ण के लिए सुदामा की भेंट 

लेकिन सुदामा ने द्वारपाल से श्रीकृष्ण के समक्ष उनका संदेश ले जाने की विनती की। जब द्वारपाल महाराज कृष्ण के पास पहुंचा और सारी बात बताई, तो भगवान एक पल में समझ गए कि उनके बचपन का मित्र उनसे मिलने आया है। बिना मुकुट लगाए, नंगे पैर सुदामा से मिलने पहुंचे और उन्हें देख कर गले लगा लिया। दो मित्र सालों बाद एक राजा और गरीब ब्राह्मण के रूप में एक दूसरे मिले लेकिन उनके दिल में एक दूसरे के लिए असीम स्नेह था।

कृष्ण सुदामा को अपने महल ले गए और उनके पैरों को खुद अपने हाथों से धोने लगे। नंगे पैर होने के कारण सुदामा के पैरों में कांटे चुभे थे। भगवान श्रीकृष्ण ये देख रोने लगे। फिर कन्हैया ने अपने बालसखा से पूछा कि मेरे लिए क्या भेंट लाए हो, तो पहले सुदामा ने संकोच किया कि एक राजा को कुछ मुट्ठी चावल किस मुंह से दें। लेकिन कृष्ण के हठ करने पर उन्होंने चावल की पोटली कान्हा को पकड़ा दी। यशोदानंदन ने भी उन कच्चे चावलों को बड़े स्वाद के साथ खाया, जैसे उससे बेहतर कुछ हो ही न। ऐसी थी कृष्ण और सुदामा की मित्रता।
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