Bhagat Singh Jayanti 2022: गुलाम भारत को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराने के लिए कई भारतीय क्रांतिकारी शहीद हो गए। इनमें भगत सिंह का नाम प्रमुख है। भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 में हुआ था। देश को आजादी दिलाने के लिए भगत सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। अंग्रेज अधिकारियों से टक्कर लेने वाले भगत सिंह को सेंट्रल असेंबली में बम फेंकने के लिए गिरफ्तार कर लिया गया था। जेल में अंग्रेजी हुकूमत की प्रताड़ना झेलने के बाद भी भगत सिंह ने आजादी का मांग को जारी रखा। कोर्ट में केस के दौरान उन्हें मौका मिला कि वह देशभर में आजादी की आवाज को पहुंचा सकें। उन्हें अंग्रेजों ने फांसी की सजा सुनाई थी और तय तारीख से एक दिन पहले यानी 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी थी। आज शहीद क्रांतिकारी भगत सिंह की जयंती है। भगत सिंह की जयंती के मौके पर जानें उनके जीवन से जुड़ी ऐसी पांच रोचक बातें, जो हर देश प्रेमी को पता होनी चाहिए।
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Bhagat Singh Jayanti 2022: भगत सिंह के जीवन से जुड़ी पांच रोचक बातें, आप में भर देंगी जोश
लाइफस्टाइल डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: शिवानी अवस्थी
Updated Wed, 28 Sep 2022 07:03 AM IST
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भगत सिंह की जयंती
- फोटो : amar ujala

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भगत सिंह जयंती
- फोटो : Twitter/IndiaHistorypic
सेंट्रल असेंबली में बम धमाका
भगत सिंह आजादी की लड़ाई तो लड़ रहे थे लेकिन उन दिनों सोशल मीडिया जैसे माध्यम नहीं थे, जो उनकी आवाज को देशभर में फैला सकें। अंग्रेजों को अपनी मांगों के बारे में बताने के लिए और पूरे देश में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ अपनी आवाज पहुंचाने के लिए भगत सिंह ने एक धमाका किया। यह धमाका 8 अप्रैल को सेंट्रल असेंबली में हुआ। इसमें कोई घायल नहीं हुआ लेकिन देशभर के समाचार पत्रों में इस धमाके की गूंज जरूर सुनाई दी। इसके बाद भगत सिंह और उनके साथ बटुकेश्वर दत्त को बम फेंकने के लिए गिरफ्तार करके दो साल की जेल की सजा सुनाई गई।
Bhagat Singh Jayanti 2022: शहीद भगत सिंह के क्रांतिकारी विचार, जो बढ़ा देंगे देश के लिए प्रेम
भगत सिंह आजादी की लड़ाई तो लड़ रहे थे लेकिन उन दिनों सोशल मीडिया जैसे माध्यम नहीं थे, जो उनकी आवाज को देशभर में फैला सकें। अंग्रेजों को अपनी मांगों के बारे में बताने के लिए और पूरे देश में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ अपनी आवाज पहुंचाने के लिए भगत सिंह ने एक धमाका किया। यह धमाका 8 अप्रैल को सेंट्रल असेंबली में हुआ। इसमें कोई घायल नहीं हुआ लेकिन देशभर के समाचार पत्रों में इस धमाके की गूंज जरूर सुनाई दी। इसके बाद भगत सिंह और उनके साथ बटुकेश्वर दत्त को बम फेंकने के लिए गिरफ्तार करके दो साल की जेल की सजा सुनाई गई।
Bhagat Singh Jayanti 2022: शहीद भगत सिंह के क्रांतिकारी विचार, जो बढ़ा देंगे देश के लिए प्रेम
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भगत सिंह जयंती
- फोटो : facebook
सजा के दौरान आंदोलन
भगत सिंह जेल की सलाखों के पीछे जरूर बंद थे लेकिन यहां से भी उनका आंदोलन जारी रहा। वह लेख लिखकर अपने विचार व्यक्त करते थे। हिंदी, पंजाबी, उर्दू, बंग्ला और अंग्रेजी के तो वह जानकार थे ही। इसी का लाभ उठाकर उन्होंने देशभर में अपना संदेश पहुंचाने का प्रयास जारी रखा। अदालत की कार्यवाही के दौरान पत्रकार जब कोर्ट में होते, तो भगत सिंह आजादी की मांग को लेकर ऐसी जोशीली बाते कहते, जो अगले दिन अखबारों के पहले पन्ने पर नजर आतीं और हर नागरिक का खून आजादी के लिए खौल उठता।
भगत सिंह जेल की सलाखों के पीछे जरूर बंद थे लेकिन यहां से भी उनका आंदोलन जारी रहा। वह लेख लिखकर अपने विचार व्यक्त करते थे। हिंदी, पंजाबी, उर्दू, बंग्ला और अंग्रेजी के तो वह जानकार थे ही। इसी का लाभ उठाकर उन्होंने देशभर में अपना संदेश पहुंचाने का प्रयास जारी रखा। अदालत की कार्यवाही के दौरान पत्रकार जब कोर्ट में होते, तो भगत सिंह आजादी की मांग को लेकर ऐसी जोशीली बाते कहते, जो अगले दिन अखबारों के पहले पन्ने पर नजर आतीं और हर नागरिक का खून आजादी के लिए खौल उठता।

भगत सिंह जयंती
- फोटो : twitter/Singhfarmer1313
फांसी की सजा
दो साल की कैद में भगत सिंह के साथ ही राजगुरु और सुखदेव को भी अदालत ने फांसी की सजा सुनाई। तीनों क्रांतिकारियों को 24 मार्च 1931 को फांसी दी जानी थी लेकिन इस खबर के बाद से देशवासी भड़के हुए थे। लोग तीनों सपूतों की फांसी की विरोध कर रहे थे। भारतीयों में आक्रोश था और अंग्रेजों के खिलाफ जिस विरोध को भगत सिंह भारतीयों की नजरों में देखना चाहते थे, वह अब अंग्रेजों को डराने लगा था।
दो साल की कैद में भगत सिंह के साथ ही राजगुरु और सुखदेव को भी अदालत ने फांसी की सजा सुनाई। तीनों क्रांतिकारियों को 24 मार्च 1931 को फांसी दी जानी थी लेकिन इस खबर के बाद से देशवासी भड़के हुए थे। लोग तीनों सपूतों की फांसी की विरोध कर रहे थे। भारतीयों में आक्रोश था और अंग्रेजों के खिलाफ जिस विरोध को भगत सिंह भारतीयों की नजरों में देखना चाहते थे, वह अब अंग्रेजों को डराने लगा था।
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भगत सिंह जयंती
- फोटो : amar ujala
भगत सिंह से डरी अंग्रेजी हुकूमत
अंग्रेजी हुकूमत भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की फांसी को लेकर हो रहे विरोध से डर गई थी। वह भारतीयों के आक्रोश का सामना नहीं कर पा रही थी। ऐसे में माहौल बिगड़ने के डर से अंग्रेजों ने भगत सिंह की फांसी का समय और दिन ही बदल दिया। गुपचुप तरीके से तय समय से एक दिन पहले भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गई। 23 मार्च 1931 को शाम साढ़े सात बजे तीनों वीर सपूतों को फांसी की सजा हुई। इस दौरान कोई भी मजिस्ट्रेट निगरानी करने को तैयार नहीं था। शहादत से पहले तक भगत सिंह अंग्रेजों के खिलाफ नारे लगाते रहे।
अंग्रेजी हुकूमत भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की फांसी को लेकर हो रहे विरोध से डर गई थी। वह भारतीयों के आक्रोश का सामना नहीं कर पा रही थी। ऐसे में माहौल बिगड़ने के डर से अंग्रेजों ने भगत सिंह की फांसी का समय और दिन ही बदल दिया। गुपचुप तरीके से तय समय से एक दिन पहले भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गई। 23 मार्च 1931 को शाम साढ़े सात बजे तीनों वीर सपूतों को फांसी की सजा हुई। इस दौरान कोई भी मजिस्ट्रेट निगरानी करने को तैयार नहीं था। शहादत से पहले तक भगत सिंह अंग्रेजों के खिलाफ नारे लगाते रहे।