एस. भाग्यम शर्मा
Diwali 2024: तमिलनाडु में कैसे मनाते हैं दिवाली? तिथि और परंपरा दोनों ही हैं अलग
दीपावली के पर्व को सब मनाते हैं, लेकिन अलग-अलग जगहों पर इसको मनाने की भिन्न-भिन्न परंपराएं और रीति-रिवाज हैं। तमिलनाडु में दिवाली का त्योहार अमावस्या से एक दिन पहले ही शुरू हो जाता है।
परंपरा अलग है
उत्तर भारत में जहां दीपावली का पर्व 14 साल का वनवास काटकर लौटे राम-सीता के आगमन की खुशी के रूप में दीप जलाकर मनाया जाता है, वहीं तमिलनाडु में श्रीकृष्ण द्वारा नरकासुर के वध किए जाने की खुशी में यह त्योहार मनाया जाता है। यह पर्व उत्तर भारत में कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है, लेकिन दक्षिण भारत में कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को दीपावली उत्सव आरंभ हो जाता है। उस दिन लोग सूर्योदय के पहले सुबह-सुबह तेल और उबटन लगाकर स्नान कर लेते हैं, क्योंकि अगले दिन अमावस्या होती है और उस दिन सिर में तेल लगाकर स्नान नहीं किया जा सकता है। इस तरह तमिल लोगों के लिए दीपावली का जश्न सुबह-सुबह तेल लगाकर स्नान करने से शुरू होता है।
नए कपड़े जरूरी
भारत के अधिकतर राज्यों में वैसे तो दीपावली के दिन नए वस्त्र पहने जाते हैं, लेकिन तमिलनाडु में व्यक्ति चाहे गरीब हो या अमीर, अपनी हैसियत के अनुसार नए कपड़े जरूर खरीदता है। इस पर्व के लिए स्नान करने के बाद खरीदे गए पारंपरिक नए वस्त्र रात को ही भगवान के सामने रख दिए जाते हैं। अगली सुबह यानी पर्व वाले दिन घर का मुखिया सबको अपने हाथों से आशीर्वाद के रूप में यह वस्त्र देता है। परिवार के सभी सदस्य खुशी-खुशी इन वस्त्रों को धारण करते हैं और बड़ों को नमस्कार कर उनका आशीर्वाद लेते हैं। तमिलनाडु में अभी तक साष्टांग नमस्कार करने और यदि ब्राह्मण है तो गायत्री मंत्र बोलकर साष्टांग प्रणाम करने की परंपरा है, जिसको उन्होंने अभी तक कायम रखा है।
नवविवाहितों के लिए खास
जो नवविवाहित जोड़े होते हैं और जिनकी पहली दीपावली होती है, उन्हें थलै दीपावली (पहली दीपावली) कहते हैं। इसके लिए पति एक दिन पहले ही पत्नी के साथ ससुराल आ जाता है और दोनों दीपावली मनाते हैं। बहुत पहले तो लड़के का पूरा परिवार भी उसकी ससुराल में आकर इस जश्न में शरीक होता था। लड़के के घरवाले ही सबके लिए नए कपड़े लाते हैं। आमतौर पर वे पहली दिवाली पर बहू के लिए साड़ी खरीदते हैं। इसके अलावा लड़की को अपने पीहर से भी साड़ी मिलती है। इसके बाद रात में पटाखे फोड़े जाते हैं और मिट्टी के दीप जलाए जाते हैं।
खान-पान
नरक चतुर्थी की पूर्व संध्या पर महिलाएं एक खास दवा ‘मारूंदू’ बनाती हैं। इसमें काली मिर्च, सोंठ, काला जीरा, पिपली, मुलेठी और कई अन्य औषधियों को शामिल करके सबको कूटने और छानने के बाद गुड़ की चाशनी में डालकर पकाया जाता है। इसमें ढेर सारा घी, तिल्ली का तेल आदि डाले जाते हैं।
माना जाता है कि त्योहार में अलग-अलग पकवान खाने के बाद तबीयत खराब न हो, इसलिए पहले ही यह दवा खिला दी जाती है, जो कि पाचक होती है। इसके बाद पहले से ही बनाकर रखीं मिठाइयां और व्यंजन भगवान के सामने रखे जाते हैं। इस दिन सभी लोग आस-पड़ोस में जाकर ‘गंगा स्नान हो गया क्या?’ पूछते हैं। सुबह-सुबह रिश्तेदारों के घर आते-जाते हैं और दोपहर को विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन, जैसे कि चावल, सांभर, रसम, पायसम, तीन-चार तरह की सब्जियां, रायता, मेदु वड़ा आदि बनाए जाते हैं और पापड़ तले जाते हैं। इस तरह बिल्कुल पारंपरिक भोजन तैयार किया जाता है, जिसका आदान-प्रदान कई दिनों तक चलता रहता है।