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वागड़ का अनूठा श्रावण: डेढ़ माह तक शिवभक्ति में लीन रहेंगे श्रद्धालु, हरियाली अमावस्या से शुरू होती है पूजा

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, बांसवाड़ा Published by: हिमांशु प्रियदर्शी Updated Mon, 14 Jul 2025 07:00 AM IST
सार

Vagad's unique Shravan: देश में सामान्यतः हिंदी महीने पूर्णिमा से पूर्णिमा तक माने जाते हैं, लेकिन वागड़ अंचल में अमावस्या से अमावस्या तक माह की गणना की जाती है। यही कारण है कि जब देश के अन्य भागों में श्रावण मास के मध्य में हरियाली अमावस्या मनाई जाती है, वागड़ क्षेत्र में उसी दिन से श्रावण की शुरुआत मानी जाती है।
 

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Vagad's unique Shravan: Devotees will be immersed in Shiva devotion for one and a half month Hariyali Amavasya
साढ़े बारह ज्योतिर्लिंगों की भूमि है बांसवाड़ा - फोटो : अमर उजाला

राजस्थान का वागड़ अंचल, विशेषकर बांसवाड़ा और डूंगरपुर जिले, श्रावण मास को लेकर देशभर से अलग परंपरा निभाते हैं। जहां भारत के अधिकांश हिस्सों में श्रावण मास आषाढ़ पूर्णिमा के बाद शुरू हो जाता है, वहीं वागड़ क्षेत्र में यह माह हरियाली अमावस्या के बाद से आरंभ होता है। यही वजह है कि वागड़ में श्रावण माह पूरे डेढ़ महीने तक श्रद्धा, अनुष्ठान और भक्ति में डूबा रहता है।


 
मालवी परंपरा का बढ़ता प्रभाव, अब दो रीति से मनता है श्रावण
हालांकि परंपरागत रूप से वागड़ में श्रावण अमावस्या से शुरू होता है, लेकिन अब स्थानीय लोग मालवा की परंपरा भी अपना रहे हैं। ऐसे में कुछ भक्त आषाढ़ पूर्णिमा के बाद से ही व्रत, पूजन और जलाभिषेक शुरू कर देते हैं, जबकि कई लोग अमावस्या के बाद शुरू करते हैं। इससे श्रावण की अवधि डेढ़ माह तक खिंचती है।

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Vagad's unique Shravan: Devotees will be immersed in Shiva devotion for one and a half month Hariyali Amavasya
साढ़े बारह ज्योतिर्लिंगों की भूमि है बांसवाड़ा - फोटो : अमर उजाला

अमावस्या से अमावस्या तक की गणना बनाती है वागड़ को अलग
देश में सामान्यतः हिंदी महीने पूर्णिमा से पूर्णिमा तक माने जाते हैं, लेकिन वागड़ अंचल में अमावस्या से अमावस्या तक माह की गणना की जाती है। यही कारण है कि जब देश के अन्य भागों में श्रावण मास के मध्य में हरियाली अमावस्या मनाई जाती है, वागड़ क्षेत्र में उसी दिन से श्रावण की शुरुआत मानी जाती है।
 
सूर्य की गति और कर्क रेखा से भी जुड़ा है गणना का आधार
ज्योतिषियों का कहना है कि वागड़ में श्रावण के आरंभ का एक वैज्ञानिक और खगोलीय कारण भी है। गुरु पूर्णिमा से सूर्य कर्क रेखा में प्रवेश करता है, जिससे इस क्षेत्र में आषाढ़ माह की विदाई और श्रावण का स्वागत माना जाता है। यही तिथि इस इलाके में माह की गिनती की आधारशिला बनती है।
 

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साढ़े बारह ज्योतिर्लिंगों की भूमि है बांसवाड़ा - फोटो : अमर उजाला

वागड़ की गुजरात से सांस्कृतिक समानता
वागड़ अंचल न केवल भौगोलिक रूप से गुजरात से जुड़ा हुआ है, बल्कि यहां की भाषा (वागड़ी) और संस्कृति भी गुजराती समाज से मेल खाती है। गुजरात में भी अमावस्या से अमावस्या तक माह की गणना की जाती है, जो वागड़ की इस परंपरा को और पुष्ट करती है।

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साढ़े बारह ज्योतिर्लिंगों की भूमि है बांसवाड़ा - फोटो : अमर उजाला

बांसवाड़ा की पहचान: साढ़े बारह ज्योतिर्लिंगों की भूमि
वागड़ क्षेत्र को शिव उपासना के लिहाज से ‘लोढ़ी काशी’ भी कहा जाता है, क्योंकि यहां साढ़े बारह स्वयंभू ज्योतिर्लिंग स्थित हैं। इनमें वनेश्वर महादेव, नीलकंठ, धनेश्वर, अंकलेश्वर, त्र्यंबकेश्वर, रामेश्वर, धूलेश्वर, बिलेश्वर, गुप्तेश्वर, सिद्धनाथ, घंटालेश्वर और भगोरेश्वर महादेव शामिल हैं। भगोरेश्वर का शिवलिंग अर्धलिंग है, जिसका आधा भाग जमीन से ऊपर है।

तीर्थ और यात्रा का केंद्र बनी कावड़ यात्रा
हर वर्ष मंदारेश्वर शिवालय से बेणेश्वर तक 45 किलोमीटर लंबी कावड़ यात्रा निकाली जाती है, जो इस बार तीन और चार अगस्त को होगी। यह यात्रा न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक एकता का प्रतीक भी है।

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साढ़े बारह ज्योतिर्लिंगों की भूमि है बांसवाड़ा - फोटो : अमर उजाला
स्थानीय ज्योतिष और कर्मकांड विशेषज्ञ जैसे पंडित अवध बिहारी, हरीश शर्मा और जयनारायण पंड्या का मानना है कि वागड़ में माह की गणना चंद्र कलाओं से नहीं बल्कि सूर्य के कर्क रेखा में प्रवेश की गति से होती है। पंडित रामेश्वर जोशी के अनुसार अब श्रद्धालु भी मालवी रीत को अपनाने लगे हैं, जिससे वागड़ में डेढ़ माह तक सावन का माहौल बना रहता है।

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