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Shukrawar Upay: शुक्रवार के दिन करें ये तीन उपाय, धन से जुड़ी सभी दिक्कतें होंगी दूर

धर्म डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: मेघा कुमारी Updated Fri, 13 Jun 2025 06:01 AM IST
सार

Shukrawar Upay: यदि शुकवार के दिन मां लक्ष्मी को कमल का फूल और खीर का भोग लगाया जाए, तो कुंडली में शुक्र की स्थिति मजबूत होती हैं। इसके अलावा व्यक्ति की कला कौशल में भी निखार आता है। 

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Shukrawar Upay Astro Remedies On Friday to Remove Financial Problems
Shukrawar Upay - फोटो : अमर उजाला

Shukrawar Upay: हिंदू धर्म में माता लक्ष्मी को धन की देवी के रूप में पूजा जाता है। उनकी कृपा से व्यक्ति को आर्थिक लाभ और सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती हैं। यदि शुकवार के दिन मां लक्ष्मी को कमल का फूल और खीर का भोग लगाया जाए, तो कुंडली में शुक्र की स्थिति मजबूत होती हैं। इसके अलावा व्यक्ति की कला कौशल में भी निखार आता है। बता दें, शुक्रवार देवी लक्ष्मी का प्रिय दिन है। इसलिए इस दिन की गई आराधना व दान-दक्षिणा का फल साधक को अवश्य मिलता है। हालांकि शुक्रवार को कुछ खास उपाय करने से कर्ज से मुक्ति भी मिलती है। मान्यता है कि इन उपायों के प्रभाव से घर में माता का आगमन और जीवन में खुशियां वास करती हैं। ऐसे में आइए शुक्रवार के इन सरल उपायों को जान लेते हैं।

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Shukrawar Upay - फोटो : Adobe Stock
शंख चढ़ाएं
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शुक्रवार के दिन मां लक्ष्मी की पूजा करें। पूजा के दौरान देवी को शंख चढ़ाएं। इसके बाद शुद्ध देसी घी का दीप जलाकर उनकी आरती करें। ऐसा करने पर कर्ज, रोग और तनाव से मुक्ति प्राप्त होती हैं।
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Shukrawar Upay - फोटो : freepik.com

दान करें
शुक्रवार के दिन आप मिट्टी के कलश में चावल भर दें। फिर इसमें एक सिक्का और एक हल्दी की गांठ डाल दें। इसके बाद देवी की पूजा करें और इस कलश का दान कर दें। मान्यता है कि इस उपाय ये घर में लक्ष्मी का आगमन होता है और आर्थिक लाभ के योग बनते हैं।

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Shukrawar Upay - फोटो : अमर उजाला

लक्ष्मी चालीसा का पाठ
शुक्रवार के दिन लक्ष्मी चालीसा का पाठ करें। इसके प्रभाव से साधक की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। आइए इस चालीसा को जानते हैं

श्री लक्ष्मी चालीसा

॥ दोहा ॥
मातु लक्ष्मी करि कृपा करो हृदय में वास।
मनोकामना सिद्ध कर पुरवहु मेरी आस॥
सिंधु सुता विष्णुप्रिये नत शिर बारंबार।
ऋद्धि सिद्धि मंगलप्रदे नत शिर बारंबार॥

श्री लक्ष्मी चालीसा
तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरवहु आस हमारी॥
जय जय जगत जननि जगदंबा सबकी तुम ही हो अवलंबा॥1॥

तुम ही हो सब घट घट वासी। विनती यही हमारी खासी॥
जगजननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी॥2॥

विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी॥
केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी॥3॥

कृपा दृष्टि चितववो मम ओरी। जगजननी विनती सुन मोरी॥
ज्ञान बुद्घि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता॥4॥

क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिन्धु में पायो॥
चौदह रत्न में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभु बनि दासी॥5॥

जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रुप बदल तहं सेवा कीन्हा॥
स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा॥6॥

तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकाहीं॥
अपनाया तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥7॥

तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी। कहं लौ महिमा कहौं बखानी॥
मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन इच्छित वांछित फल पाई॥8॥

तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भांति मनलाई॥
और हाल मैं कहौं बुझाई। जो यह पाठ करै मन लाई॥9॥

ताको कोई कष्ट नोई। मन इच्छित पावै फल सोई॥
त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणि। त्रिविध ताप भव बंधन हारिणी॥10॥

जो चालीसा पढ़ै पढ़ावै। ध्यान लगाकर सुनै सुनावै॥
ताकौ कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै॥11॥

पुत्रहीन अरु संपति हीना। अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना॥
विप्र बोलाय कै पाठ करावै। शंका दिल में कभी न लावै॥12॥

पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करैं गौरीसा॥
सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै॥13॥

बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥
प्रतिदिन पाठ करै मन माही। उन सम कोइ जग में कहुं नाहीं॥14॥

बहुविधि क्या मैं करौं बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान लगाई॥
करि विश्वास करै व्रत नेमा। होय सिद्घ उपजै उर प्रेमा॥15॥

जय जय जय लक्ष्मी भवानी। सब में व्यापित हो गुण खानी॥
तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहिं॥16॥

मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट काटि भक्ति मोहि दीजै॥
भूल चूक करि क्षमा हमारी। दर्शन दजै दशा निहारी॥17॥

बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी। तुमहि अछत दुःख सहते भारी॥
नहिं मोहिं ज्ञान बुद्घि है तन में। सब जानत हो अपने मन में॥18॥

रुप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु निवारण॥
केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्घि मोहि नहिं अधिकाई॥19॥

॥ दोहा॥
त्राहि त्राहि दुख हारिणी, हरो वेगि सब त्रास। जयति जयति जय लक्ष्मी, करो शत्रु को नाश॥
रामदास धरि ध्यान नित, विनय करत कर जोर। मातु लक्ष्मी दास पर, करहु दया की कोर॥

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 डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेख लोक मान्यताओं पर आधारित है। यहां दी गई सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है।

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