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VIP नंबर घोटाला: जांच के घेरे में सवाई माधोपुर से जारी 257 नंबर,दलालों ने इतने में बेचे
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, दौसा
Published by: प्रिया वर्मा
Updated Sat, 29 Nov 2025 08:17 PM IST
सार
गाड़ियों के वीआईपी नंबर घोटाले से जुड़ी जांच में बीते तीन साल में 257 वीआईपी नंबर गलत तरीके से जारी किए जाने की बात सामने आई है। दलालों ने इन नंबरों को हजारों में खरीदकर लाखों में इनकी डील की थी।
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वीआईपी नंबर घोटाला, जांच में सामने आए नए तथ्य
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
राजस्थान में गाड़ियों के वीआईपी नंबर आवंटन से जुड़ा एक बड़ा घोटाला सामने आया है। इस मामले में दौसा आरटीओ जगदीश अमरावत को 24 नवंबर को निलंबित किया गया था। मामले की जांच में अब कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं, जिनमें सवाई माधोपुर आरटीओ कार्यालय से तीन साल में 257 वीआईपी नंबरों के गलत तरीके से जारी होने की बात सामने आई है।
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हजारों में खरीदकर, लाखों में बेचे
जांच में सामने आया है कि दलालों ने इन नंबरों को सिर्फ 21-21 हजार रुपये में खरीदा, जबकि इन्हें जयपुर और अन्य जिलों में 4 से 5 लाख रुपये तक में बेचा गया। यह भी पाया गया कि जिन वाहनों को ये नंबर आवंटित किए गए, वे वाहन कभी अस्तित्व में थे ही नहीं। पिछले साल मामले के उजागर होने के बाद दौसा आरटीओ जगदीश अमरावत से जांच रिपोर्ट मांगी गई थी लेकिन वे समय पर रिपोर्ट नहीं दे पाए, जिसके चलते उन्हें सस्पेंड कर दिया गया।
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उपमुख्यमंत्री ने दिए सख्त निर्देश
मामले की गंभीरता को देखते हुए डिप्टी सीएम और परिवहन मंत्री प्रेमचंद बैरवा ने कहा कि किसी भी दोषी अधिकारी या कर्मचारी को बख्शा नहीं जाएगा। विभागीय स्तर पर जांच के निर्देश जारी कर दिए गए हैं। किसी भी स्तर पर गड़बड़ी पाई जाने पर कठोर कार्रवाई की जाएगी।
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जयपुर में होती थी नंबरों की डील
सवाई माधोपुर डीटीओ ऑफिस से जारी नंबरों की डील जयपुर में होती थी, जिसमें कई दलाल शामिल थे। कार्यवाहक डीटीओ हनुमानप्रसाद मीणा ने बताया कि विभाग को शिकायतें मिली थीं कि 1980 दशक के पुराने वीआईपी नंबर (RSS, RNX, RJX सीरीज) को फर्जी तरीके से जारी कर जयपुर में बेचा जा रहा था। जांच में पाया गया कि दलाल इन नंबरों को सवाई माधोपुर से 21 हजार रुपये बेस प्राइस पर लेकर जयपुर के आरटीओ ऑफिसों में ऊंची कीमत पर बेच रहे थे।
छह महीने में जांच पूरी, 400 कर्मचारी जांच के घेरे में
विभाग ने साल 2024 में जांच शुरू की, जो छह महीने में पूरी की गई। रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि प्रदेशभर के करीब 400 परिवहन विभाग के बाबू से लेकर अधिकारी तक इस घोटाले की मिलीभगत में शामिल थे।
नियमों की धज्जियां उड़ीं
नियमों के अनुसार किसी वीआईपी नंबर को दोबारा जारी करने से पहले वाहन को फिटनेस सेंटर में ले जाकर स्क्रैप किया जाना जरूरी होता है। इसके बाद ‘रिटेंशन पंजीयन’ प्रक्रिया पूरी कर नया वाहन नंबर आवंटित किया जाता है लेकिन जांच में सामने आया कि इन नंबरों को बिना स्क्रैप सर्टिफिकेट और बिना किसी प्रक्रिया के सीधे जारी कर दिया गया। जयपुर में जांच के दौरान यह भी पाया गया कि बिना किसी डर के इन नंबरों की खुलकर डील हो रही थी।
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पुराने रिकॉर्ड आग में जलने का दावा
जब जांच टीम ने पुराने रिकॉर्ड मांगे तो सवाई माधोपुर डीटीओ कार्यालय ने बताया कि छह महीने पहले शॉर्ट सर्किट से ऑफिस में आग लग गई थी, जिसमें इन नंबरों से जुड़ी सभी फाइलें जल गईं। इस संबंध में एफआईआर भी दर्ज करवाई गई थी।
257 नंबर जांच के घेरे में
अपर परिवहन आयुक्त रेणु खंडेलवाल की रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि पुराने तीन अंकों वाले (RSS, RSY, RSM सीरीज) के 257 नंबरों की आवंटन प्रक्रिया में भारी अनियमितताएं हुईं। इनमें से सिर्फ दो वाहनों का रिकॉर्ड विभाग के पास उपलब्ध है, जबकि बाकी वाहनों का कोई रिकॉर्ड नहीं मिला है।
आरटीओ दफ्तरों में मची खलबली
घोटाले के उजागर होने के बाद सवाई माधोपुर जिला परिवहन कार्यालय में हड़कंप मचा हुआ है। विभाग अब पूरे नेटवर्क की गहराई से जांच कर रहा है और संभावना है कि आने वाले दिनों में कई और अधिकारियों पर कार्रवाई हो सकती है।
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