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Dausa: 'राहुल गांधी के संगठन सृजन अभियान का दौसा में क्या हुआ', जिलाध्यक्ष चयन पर विधायक बैरवा की खुली नाराजगी
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, दौसा
Published by: दौसा ब्यूरो
Updated Mon, 24 Nov 2025 09:44 AM IST
सार
Duasa: बैरवा का दावा है कि भाजपा का जिलाध्यक्ष वैश्य वर्ग से है, इसलिए कांग्रेस को सामाजिक संतुलन साधते हुए सामान्य या ओबीसी वर्ग के किसी नए चेहरों को मौका दिया जाना चाहिए था।
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दौसा विधायक
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
दौसा कांग्रेस में जिलाध्यक्षों की नई सूची सामने आते ही जिले की राजनीति में हलचल मच गई है। जिले के एकमात्र कांग्रेस विधायक दीनदयाल बैरवा ने सोशल मीडिया पर लगातार दो पोस्ट शेयर कर अपनी नाराजगी को अब खुले तौर पर सार्वजनिक कर दिया है। आश्चर्य यह कि यह वही कांग्रेस है, जो अक्सर “घर की बात घर में” रखने पर जोर देती रही है।
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पहली पोस्ट में बैरवा ने तंज भरे अंदाज में लिखा कि राहुल गांधी के संगठन सृजन अभियान का दौसा में क्या हुआ? वहीं दूसरी पोस्ट में उन्होंने और साफ संदेश देते हुए लिखा कि दौसा में राजेश पायलट व सचिन पायलट का नाम था और रहेगा। इन दोनों पोस्टों ने जिला कांग्रेस की राजनीति का तापमान अचानक बढ़ा दिया। बैरवा का मूल सवाल यह है कि राहुल गांधी के संगठन सृजन अभियान के तहत नई ऊर्जा, नई सोच और नए चेहरों को आगे लाने की बात कही गई थी, लेकिन दौसा में परिणाम उलट दिखाई देते हैं। उनका कहना है किदावेदारों की सूची लंबी थी...पर निष्कर्ष वही जैसा था, वैसा ही है।
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संतुलन की राजनीति का सवाल
बैरवा का दावा है कि भाजपा का जिलाध्यक्ष वैश्य वर्ग से है, इसलिए कांग्रेस को सामाजिक संतुलन साधते हुए सामान्य या ओबीसी वर्ग के किसी नए चेहरों को मौका दिया जाना चाहिए था। दावेदारी में वरिष्ठ नेताओं, महिला संगठन पदाधिकारियों और कई युवा कार्यकर्ताओं के नाम थे, मगर जिला नेतृत्व फिर उसी व्यक्ति के हाथ में रहा, जो पिछले दो कार्यकालों से पद पर है।
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ओढ़ की संयमित प्रतिक्रिया
इधर, जिलाध्यक्ष रामजीलाल ओढ़ ने बेहद संयमित अंदाज़ में प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि पार्टी ने भरोसा जताया है, जिम्मेदारी पर खरा उतरने की पूरी कोशिश करूंगा। सभी अपनी बात रखने के लिए स्वतंत्र हैं। विधायक बैरवा भी परिवार का हिस्सा हैं, बात होगी। उनके लिए यह तीसरा कार्यकाल है और यही बात सियासत में जारी गर्माहट को और बढ़ा रही है।
सवाल बड़ा है नया कौन?
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि दौसा का विवाद केवल व्यक्तिगत असंतोष नहीं, बल्कि उस बड़े सवाल की झलक है। क्या कांग्रेस वाकई नए लोगों को आगे लाना चाहती है या फिर पुराने चेहरों पर ही भरोसा जारी रहेगा? विधायक बैरवा की नाराजगी ने संकेत साफ कर दिया है कि दौसा में संगठनात्मक फैसले अब चर्चा के केंद्र में रहेंगे। भाजपा के लगातार मजबूत होते “किले” के सामने कांग्रेस की यह अंदरूनी खींचतान अब मंच पर आ चुकी है।