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Sirohi News: रॉयल फैमिली स्प्रीचुअल रिट्रीट का दूसरा दिन, माउंटआबू की यात्रा पर गए शाही परिवार के सदस्य
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, सिरोही
Published by: सिरोही ब्यूरो
Updated Fri, 29 Aug 2025 09:51 PM IST
सार
ब्रह्माकुमारीज मुख्यालय माउंटआबू में आयोजित राजयोग ध्यान सत्र में देशभर के शाही परिवारों के सदस्य शामिल हुए। ध्यान सत्र, प्रवचन और मेडिटेशन में भाग लेने के बाद उन्होंने ज्ञान सरोवर, पांडव भवन और देलवाड़ा मंदिर का भ्रमण किया।
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सिरोही। ब्रह्माकुमारी संस्थान में रॉयल फैमिली स्प्रीचुअल रिट्रीट के दूसरे दिन विभिन्न कार्यक्र
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विस्तार
देशभर से ब्रह्माकुमारीज के मुख्यालय पहुंचे शाही परिवार के सदस्य, राजा-महाराजा ध्यान में मग्न नजर आए। सुबह 7:30 से 8:30 बजे तक मनमोहिनीवन के ग्लोबल ऑडिटोरियम में आयोजित राजयोग सत्र में सभी ने उत्साह के साथ भाग लिया। इसके बाद सुबह 9:30 बजे माउंट आबू के भ्रमण पर निकले। वहां संस्थान के ज्ञान सरोवर परिसर, पांडव भवन एवं देलवाड़ा मंदिर के दर्शन किए। शाही परिवार के सदस्यों ने कहा कि माउंट आबू की प्राकृतिक सुंदरता अद्भुत है। पांडव भवन में बहुत ही शांति की अनुभूति हुई। ज्ञान सरोवर में सभी शाही परिवारों का स्नेह मिलन हुआ, जिसमें सभी ने अपने-अपने अनुभव साझा किए। समापन पर अतिरिक्त महासचिव बीके डॉ. मृत्युंजय भाई, ज्ञान सरोवर की निदेशिका बीके प्रभा दीदी ने मोमेंटो प्रदान कर सम्मानित किया।
राजयोग ध्यान सत्र में अतिरिक्त मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी बीके जयंती दीदी ने कहा कि हर आत्मा जीवन में खुशी चाहती है। सभी को खुशी से रहना पसंद होता है, क्योंकि खुशी हमारा प्राकृतिक स्वभाव है। हमारे कर्म ऐसे होने चाहिए, जिनसे दूसरों को खुशी मिले। हर आत्मा अपने आप में अनोखी और अलग है। आत्मा को भूलने के कारण हम आत्मा के गुणों को भी भूल गए हैं। इस दौरान बीके डेविड भाई ने संगीत की मनमोहक धुन प्रस्तुत की। बीच में बीके जयंती दीदी ने सभी को राजयोग मेडिटेशन के माध्यम से गहन शांति की अनुभूति कराई।
सुबह के राजयोग ध्यान सत्र में अंतरराष्ट्रीय मोटिवेशनल स्पीकर राजयोगिनी बीके ऊषा दीदी ने कहा कि जीवन में तीन मुख्य क्रियाएं हैं — सोचना, बोलना और कर्म करना। लेकिन आज यह तीनों अलग-अलग दिशा में हैं, इसलिए जीवन में शांति नहीं है। जब हम अपने भीतर यह जागरूकता पैदा करते हैं कि हमारे विचार, वाणी और कर्म में सामंजस्य हो, तभी शांति का अनुभव होता है। अंदर सामंजस्य न होने के कारण जीवन में आनंद नहीं रहता। कई लोग इसलिए तनाव में रहते हैं कि जो सोचते हैं, वह कर नहीं पाते, और जो बोलते हैं, वह करते नहीं हैं। राजयोग मेडिटेशन के अभ्यास से आत्म-जागृति आती है, जिससे विचार, वाणी और कर्मों में एकरूपता व सामंजस्य आता है। इसमें आत्म-विश्लेषण होता है, जिससे हमें अपनी कमजोरियों का पता चलता है।
आत्मा के सात मूलभूत संस्कार
उन्होंने कहा कि आत्मा के सात मूलभूत गुण व संस्कार हैं — शांति, पवित्रता, प्रेम, शक्ति, ज्ञान, आनंद और सुख। हर आत्मा इन सात गुणों की ओर आकर्षित होती है। हर व्यक्ति जीवन में शांति, खुशी और प्रेम चाहता है, लेकिन आज आत्मशक्ति खत्म होने से आत्मा कमजोर हो गई है। राजयोग के अभ्यास से आत्मा में इन सातों गुणों का विकास होता है और आत्मा अपने मूल स्वभाव और संस्कारों की ओर लौटती है। इस सृष्टि चक्र में भारत में कभी स्वर्णिम युग था, जब आत्माएं सतोप्रधान और दैवी गुणों से संपन्न थीं। लेकिन जन्म-मरण के चक्र में आते-आते आत्माओं की शक्तियां क्षीण हो गईं। आज कलियुग में परमपिता शिव परमात्मा हमें पुनः राजयोग की शिक्षा देकर सतोप्रधान बनने की कला सिखा रहे हैं।
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ये भी रहे मौजूद
इस मौके पर राजस्थान के मारवाड़ राजघराने के महाराजा गज सिंह जोधपुर, महारानी हेमलता राजे, उदयपुर के महाराजा विश्वराज सिंह बहादुर, छत्तीसगढ़ सरगुजा-अंबिकापुर के महाराज और छत्तीसगढ़ के पूर्व उपमुख्यमंत्री त्रिभुनानेश्वर शरण सिंह देव, महाराष्ट्र सरकार के कैबिनेट मंत्री व डोंडाइचा के शाही परिवार के जयकुमार रावल ने अपने विचार साझा किए। इसके अलावा बूंदी के महाराव राजा वंशवर्धन सिंह, राजस्थान के भरतपुर की महारानी दिव्या सिंह और युवराज अनिरुद्ध सिंह, भरतपुर हेरिटेज होटल व लक्ष्मी विलास पैलेस के निदेशक राव राजा रघुराज सिंह, राजस्थान सिरोही के शाही परिवार के महाराज देवव्रत सिंह बहादुर, राजस्थान किशनगढ़ की महारानी मीनाक्षी देवी, राजस्थान झालावाड़ के राजा राजेंद्र सिंह राजावत और कुवरानी मरुधर कंवर, जालिम-विलास परिवार जोधपुर की कुंवर रानी मीरा देवी, अभिजीत सिंह राठौड़ सहित अन्य राजघरानों के शाही सदस्य मौजूद रहे।
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सुबह के राजयोग ध्यान सत्र में अंतरराष्ट्रीय मोटिवेशनल स्पीकर राजयोगिनी बीके ऊषा दीदी ने कहा कि जीवन में तीन मुख्य क्रियाएं हैं — सोचना, बोलना और कर्म करना। लेकिन आज यह तीनों अलग-अलग दिशा में हैं, इसलिए जीवन में शांति नहीं है। जब हम अपने भीतर यह जागरूकता पैदा करते हैं कि हमारे विचार, वाणी और कर्म में सामंजस्य हो, तभी शांति का अनुभव होता है। अंदर सामंजस्य न होने के कारण जीवन में आनंद नहीं रहता। कई लोग इसलिए तनाव में रहते हैं कि जो सोचते हैं, वह कर नहीं पाते, और जो बोलते हैं, वह करते नहीं हैं। राजयोग मेडिटेशन के अभ्यास से आत्म-जागृति आती है, जिससे विचार, वाणी और कर्मों में एकरूपता व सामंजस्य आता है। इसमें आत्म-विश्लेषण होता है, जिससे हमें अपनी कमजोरियों का पता चलता है।
आत्मा के सात मूलभूत संस्कार
उन्होंने कहा कि आत्मा के सात मूलभूत गुण व संस्कार हैं — शांति, पवित्रता, प्रेम, शक्ति, ज्ञान, आनंद और सुख। हर आत्मा इन सात गुणों की ओर आकर्षित होती है। हर व्यक्ति जीवन में शांति, खुशी और प्रेम चाहता है, लेकिन आज आत्मशक्ति खत्म होने से आत्मा कमजोर हो गई है। राजयोग के अभ्यास से आत्मा में इन सातों गुणों का विकास होता है और आत्मा अपने मूल स्वभाव और संस्कारों की ओर लौटती है। इस सृष्टि चक्र में भारत में कभी स्वर्णिम युग था, जब आत्माएं सतोप्रधान और दैवी गुणों से संपन्न थीं। लेकिन जन्म-मरण के चक्र में आते-आते आत्माओं की शक्तियां क्षीण हो गईं। आज कलियुग में परमपिता शिव परमात्मा हमें पुनः राजयोग की शिक्षा देकर सतोप्रधान बनने की कला सिखा रहे हैं।
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