कालाष्टमी 2019 : जानिए काल भैरव जन्म कथा, क्यों कहे जाते हैं काशी के कोतवाल

कालाष्टमी का पर्व बैशाख माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस बार 26 अप्रैल को कालाष्टमी है। कालाष्टमी पर काल भैरव की विशेष रूप से पूजा-आराधना और व्रत का विधान है । काल भैरव को भगवान शंकर का रुद्रावतार माना जाता है। भैरव बाबा को काशी के कोतवाल है। कालाष्टमी के मौके पर आइए जानते है काल भैरव के जन्म की कथा और काशी से इनका कनेक्शन।

काशी में इनकी नियुक्ति स्वयं भगवान महादेव ने की थी। मान्यता है कि काशी में रहने के लिए हर व्यक्ति को यहां के कोतवाल यानी बाबा भैरव की आज्ञा लेनी पड़ती है। बनारस में मान्यता है कि बाबा विश्वनाथ काशी के राजा हैं और काल भैरव इन प्राचीन नगरी के कोतवाल। यही कारण है कि भगवान भैरव का दर्शन किये बगैर बाबा विश्वनाथ का दर्शन अधूरा माना जाता है।
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काल भैरव जन्म कथा
काल भैरव के जन्म को लेकर पुराणों में एक बड़ी ही रोचक कथा है। शिव पुराण के अनुसार एक बार ब्रह्मा जी और विष्णु जी में कौन सर्वश्रेष्ठ है इस बात को लेकर वाद-विवाद पैदा हो गया। तब दोनों ने अपने आपको श्रेष्ठ बताया और आपस में एक दूसरे से युद्ध करने लगे। इसके बाद सभी देवताओं ने वेद से पूछा तो उत्तर आया कि जिनके भीतर चराचर जगत, भूत, भविष्य और वर्तमान समाया हुआ है भगवान शिव ही सर्वश्रेष्ठ हैं।
ब्रह्माजी ने शिवजी को कहे अपशब्द
वेद के मुख से शिव के बारे में यह सब सुनकर ब्रह्माजी ने अपने पांचवें मुख से शिव के बारे में भला-बुरा कहा। इससे वेद दुखी हुए। उसी समय एक दिव्यज्योति के रूप में भगवान रूद्र प्रकट हुए। तब ब्रह्मा ने कहा कि हे रूद्र तुम मेरे ही सिर से पैदा हुए हो। अधिक रुदन करने के कारण मैंने ही तुम्हारा नाम रूद्र रखा है इसलिए तुम मेरी सेवा में आ जाओ।
काल भैरव ने नाखून से काटा ब्रह्माजी का सिर
ब्रह्माजी के इस आचरण पर शिवजी को भयानक क्रोध आ गया और उन्होंने भैरव को उत्पन्न करके कहा कि तुम ब्रह्मा पर शासन करो। दिव्य शक्ति संपन्न भैरव ने अपने बाएं हाथ की सबसे छोटी अंगुली के नाखून से शिव के प्रति अपमान जनक शब्द कहने वाले ब्रह्मा जी के पांचवें सिर को ही काट दिया।
काशी में मिला ब्रह्मा हत्या से मुक्ति
बाद में शिवजी के कहने पर भैरवजी काशी प्रस्थान किया जहां ब्रह्रा हत्या से मुक्ति मिली। रूद्र ने इन्हें काशी का कोतवाल नियुक्त किया। आज भी ये काशी के कोतवाल के रूप में पूजे जाते हैं। इनके दर्शन किए वगैर बाबा विश्वनाथ का दर्शन अधूरा रहता है।
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