Pitru Paksha 2025: श्राद्ध पक्ष को कनागत क्यों कहा जाता है? जानें यहां
Kanagat Meaning: आश्विन मास में आने वाला पितृ पक्ष श्राद्ध के लिए विशेष महत्व रखता है। इसमें पितरों को तर्पण, पिंडदान और भोजन अर्पित कर उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की जाती है।

विस्तार
पं. मकरंद मिश्र
What Is The Meaning Of Kanagat: श्राद्ध के पांच भेदों में ‘पार्वण श्राद्ध’ एक प्रमुख प्रकार है। पितरों के लिए जैसे दैनिक भोजन होता है, वैसे ही आश्विन मास का पितृ पक्ष एक सामूहिक महापर्व माना जाता है। इस विशेष काल में पितरों का सामूहिक आह्वान और तर्पण किया जाता है, जिसे ‘पार्वण श्राद्ध’ कहा जाता है। यह श्राद्ध ठीक उसी प्रकार होता है, जैसे हम सामान्य दिनों में नियमित समय पर भोजन करते हैं, जबकि त्योहारों या विवाह जैसे विशेष अवसरों पर दिन या रात किसी भी समय भोजन करते हैं।
Shardiya Navratri 2025: शारदीय नवरात्रि की पूजा में शामिल करें ये खास चीजें, बरसेगी मां दुर्गा की विशेष कृपा
जन्माष्टमी आदि विशिष्ट त्योहारों पर अर्धरात्रि में भी व्रत पारण होता है। ठीक इसी प्रकार आश्विन कालीन पितृ पक्ष पितरों का सामूहिक मेला है। इस समय सभी पितर अपने पृथ्वी लोकस्थ सगे-संबंधियों के यहां बिना निमंत्रण के भी पहुंचते हैं और उनके द्वारा प्रदान किए 'कव्य' से परितृप्त होकर उन्हें अपने शुभाशीर्वादों से परिपूर्ण करते हैं।
Ashwin Pradosh Vrat 2025: 18 या 19 सितंबर कब रखा जाएगा प्रदोष व्रत ? यहां जानें तिथि, मुहूर्त और पूजा विधि

ज्योतिर्गणना के अनुसार, मेष राशि के दश अंश पर वर्तमान सूर्य परमोच्च का होता है और तुला के दश अंश पर स्थिर नीच का होता है, अर्थात मेष का सूर्य पृथ्वी कक्षा से सर्वथा दूर होता है और तुला का सूर्य पृथ्वी कक्षा के सर्वथा निकट। पृथ्वी लोक पर किए गए यज्ञ आदि सब अनुष्ठान पहले सूर्यमंडल में पहुंचते हैं और फिर वहां से नियत स्थानों को जाते हैं।

देवताओं के निमित्त भौतिक अग्नि में विधिवत डाला हुआ ‘हवन’ सूर्य द्वारा द्युलोकस्य देवताओं की तृप्ति का कारण बन जाता है, क्योंकि देव लोक सूर्य कक्षा में ही विद्यमान है, परंतु पितृगणों के निमित्त उभयविध अग्नि में हुत ‘कव्य’ पहले सूर्यमंडल में पहुंचता है और फिर सूर्यमंडल से चंद्रमंडल में जाता है।

विज्ञानवेत्ता जानते हैं कि चंद्रमा स्वयं प्रकाशमान नहीं है, किंतु सूर्य की ही रश्मियां चंद्रमंडल को प्रकाशित करती हैं। जैसे अमावस्या को उक्त दोनों मंडलों के सान्निध्य के कारण पितरों को हमारी प्रदत्त वस्तु प्राप्त होती है, उसी प्रकार कन्या के दश अंश से तुला के दश अंश सूर्य की नीच कक्षा में विद्यमान होने के कारण अर्थात पृथ्वी, चंद्रमंडल और सूर्यमंडल के सान्निध्य के कारण ‘कन्यागत’ सूर्य में श्राद्ध करना विज्ञान सम्मत है। चूंकि आश्विन मास में सूर्य कन्यागत अर्थात कन्या राशि में होता है, इसलिए पितृ पक्ष को कनागत भी कहते हैं।
यदि आप अपनी विस्तृत कुंडली के बारे में जानने के लिए उत्सुक हैं, तो myjyotish एप डाउनलोड करें और ज्योतिषी से बात करें
कमेंट
कमेंट X