Pitru Stuti Stotra: हर संकट से मुक्ति दिलाएगा पितृ स्तोत्र, श्राद्ध पक्ष में अवश्य करें पाठ
Pitru Stuti Stotram Lyrics: पितृ स्तोत्र का नियमित पाठ करने वाले व्यक्ति को सुख-समृद्धि, मानसिक शांति और पितरों का आशीर्वाद मिलता है। कहा जाता है कि यह स्तोत्र न केवल धर्म और आध्यात्मिक लाभ देता है, बल्कि नौकरी और व्यापार में तरक्की के मार्ग भी खोलता है।

विस्तार
Pitru Stuti Stotra Lyrics in Hindi: हिंदू धर्म में पितरों का स्मरण और उनकी कृपा प्राप्त करना बहुत शुभ माना जाता है। इसी भाव से जुड़ा है पितृ स्तोत्र, जो मार्कण्डेय पुराण में वर्णित है। यह स्तोत्र न केवल पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए किया जाता है बल्कि साधक के जीवन से कष्टों को भी दूर करता है। श्राद्ध पक्ष, अमावस्या और चतुर्दशी जैसे पावन अवसरों पर इसका पाठ करने से पितृ दोष का निवारण होता है और घर-परिवार में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

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पितृ स्तोत्र का नियमित पाठ करने वाले व्यक्ति को सुख-समृद्धि, मानसिक शांति और पितरों का आशीर्वाद मिलता है। कहा जाता है कि यह स्तोत्र न केवल धर्म और आध्यात्मिक लाभ देता है, बल्कि नौकरी और व्यापार में तरक्की के मार्ग भी खोलता है। यही कारण है कि श्राद्ध पक्ष में पितृ स्तोत्र का पाठ विशेष रूप से अनुशंसित माना गया है।
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पितृ स्तोत्रं पाठ
अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम् ।
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम् ॥
इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा ।
सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान् ॥
मन्वादीनां मुनीन्द्राणां सूर्याचन्द्रमसोस्तथा ।
तान् नमस्याम्यहं सर्वान् पितृनप्सूदधावपि ॥
नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा।
द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलि: ॥
देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान् ।
अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येsहं कृताञ्जलि: ॥
प्रजापते: कश्यपाय सोमाय वरुणाय च ।
योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलि: ॥
नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु ।
स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे ॥
सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा ।
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम् ॥
अग्रिरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम् ।
अग्नीषोममयं विश्वं यत एतदशेषत: ॥
ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्निमूर्तय:।
जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिण: ॥
तेभ्योsखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतमानस:।
नमो नमो नमस्ते मे प्रसीदन्तु स्वधाभुज: ॥
॥ इति पितृ स्त्रोत समाप्त ॥
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