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Samwad Live: योगेश्वर ने कोच के योगदान का किया जिक्र, जैस्मिन बोलीं- लड़कियों को परिवार का मिल रहा समर्थन
स्पोर्ट्स डेस्क, अमर उजाला, गुरुग्राम
Published by: स्वप्निल शशांक
Updated Wed, 17 Dec 2025 11:56 AM IST
सार
अमर उजाला संवाद के मंच पर ओलंपिक पदक विजेता पहलवान योगेश्वर दत्त और विश्व चैंपियन मुक्केबाज महिला जैस्मिन लंबोरिया भी नजर आए। इन दोनों ने 'खेलों पर बात' सत्र में हिस्सा लिया।
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योगेश्वर दत्त
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
हरियाणा इस बार खेल, संस्कृति और संवाद का बड़ा मंच बना है। अमर उजाला संवाद 2025 का आयोजन 17 दिसंबर यानी आज गुरुग्राम में जारी है, जहां खेल, मनोरंजन और राजनीति जगत की दिग्गज हस्तियां शिरकत कर रही हैं। खास बात यह है कि इस मंच पर ओलंपिक पदक विजेता पहलवान योगेश्वर दत्त और विश्व चैंपियन मुक्केबाज महिला जैस्मिन लंबोरिया भी नजर आए। ये दोनों ने खेलों पर बात सत्र में हिस्सा लिया। योगेश्वर और जैस्मिन संवाद के मंच पर पहुंच गए हैं। योगेश्वर और जैस्मिन के साथ सवाल-जवाब का दौर...
सवाल - आखिर कैसे हरियाणा खिलाड़ियों के अंदर जोश की वजह क्या है?
योगेश्वर: सभी को राम राम पहले तो मैं धन्यवाद देता हूं अमर उजाला को, कि आपने खेल सेशन को रखा। जब बात हरियाणा की आती है तो सबसे पहले हमारे ग्रामीण खेल हैं, कुश्ती है, कबड्डी है, बॉक्सिंग है, हॉकी है, इसकी आती है। हरियाणा के लोगों में जुनून है। ये आती है हमारी संस्कृति से। हमें पुरखों से मिली है संस्कृति। वो चाहे खेल में हो, किसानी हो, समाज सेवा में हो, सेना में हो। आगे बढ़ना का जज्बा विरासत में मिला है। बड़ों से सीखा है। हमने ओलंपिक में अगर छह पदक जीते तो तीन हरियाणा से हैं। एशियन गेम्स में भी आधे पदक हरियाणा लाता है। जो खिलाड़ी के कोच का बड़ा योगदान रहता है। सरकार का भी रोल रहता है। हरियाणा की मिट्टी में जो जोश है और संघर्ष है, उससे हमें पदक मिलते हैं।
सवाल - कैसा है ये जोश?
जैस्मिन: अभी जो लड़कियां हैं वो बहुत अच्छा कर रही हैं। सिर्फ बॉक्सिंग नहीं, बहुत से खेल है, चाहे वो बैडमिंटन हो रेसलिंग हो। हम जो समर्थन मिल रहा परिवार का, क्योंकि हमारे सीनियर ने एक मंच तैयार किया है। हमें एक पहचान दिखाई है कि हरियाणा खेलों में कितना अच्छा है। मतलब भारत का एक छाप छोड़ा है, वो हमारे लिए लाभदायक हो रहा है। परिवार वाले भी समझ रहे हैं, कि लड़कियां कर रही हैं और उन्हें भी समर्थन देना चाहिए। काफी अच्छा लगता है जब हम बाहर निकलते हैं और हरियाणा को अपनी संस्कृति का प्रतिनिधित्व करते हैं।
सवाल - जब आप चैंपियनशिप या मेडल जीतती हैं तो अपने ईर्द गिर्द बदलाव देखती हैं, जो लड़कियां आपसे मिलने आती हैं?
जैस्मिन: जो यूथ लड़कियां हैं, वो भी हमसे ही सीख रही हैं। इसलिए हमारा दायित्व है कि हम अच्छा करें। हमारी वजह से अगर 10 लड़कियां और अच्छा करना चाह रही हैं तो हम और अच्छा करें ताकि आने वाला जनरेशन मोटिवेशन ले। काफी अच्छा लगता है जब बच्चे हमसे पूछते हैं और सीखते हैं। आगे भी मेरा यही प्रयास रहेगा कि मैं देश के लिए कुछ कर पाऊं।
सवाल - कुश्ती में जो भारत ने धाक जमाई, उनमें से आप एक चेहरा हैं। आपके लिए काफी मुश्किलें भी आई होंगी। जो बच्चा अब कोशिश करना चाहता है उसे क्या करना चाहिए? क्या रास्ता है?
योगेश्वर: सुधार की गुंजाइश हमेशा रहती है। मैंने 1988-89 में कुश्ती शुरू किया था। तब मेरी उम्र सात साल थी। उस समय में गर्मियों में या बरसात में दिक्कत का सामना करना पड़ता था। हमारे पास गांव में मैट नहीं होता था, किट नहीं होती थी। पर उस टाइम और अब बहुत सुविधाएं हैं, लेकिन ग्रास रूट पर बहुत काम करने की जरूरत है। हमें हमेशा सुधार करते रहना चाहिए। हम अगर चाहते हैं कि 2036 ओलंपिक भारत में हो तो उसमें हर खेल पर फोकस करना होगा। सभी खिलाड़ियों का इतिहास गांव से और मध्य वर्ग परिवार से हैं। हमें ग्रासरूट पर तैयारी करनी चाहिए। जो बच्चा अभी 10 साल का है वो 2036 में हमें कितने पदक दिला सकता है। वो चीजें हमें सोचनी हैं। और हर खेल की अलग कैटेगरी बनानी होगी। तो हम ज्यादा अच्छा प्रदर्शन कर पाएंगे। हमारे खिलाड़ियों में पूरा जोश है। मेहनत के मामले में हमसे ज्यादा कोई नहीं है पूरी दुनिया में। खेलों में हम तभी आगे बढ़ेंगे जब एक साथ आगे बढ़ेंगे।
सवाल - जो मां बाप की सोच है खेल को लेकर,उसमें अभी हम पीछे हैं क्या?
योगेश्वर: नहीं नहीं उससे हम आगे निकल चुके हैं। लड़के हो या लड़कियां हों। अब एक सोच तो हट चुकी है कि हमें लड़कों को ही खेल में डालना है, लड़कियों को नहीं डालना है। अब दोनों एक जैसे हैं। माता पिता चाहते हैं कि उनका बच्चा कोई न कोई खेले। माइंडसेट अब मजबूत है। माता पिता का माइंडसेट बदला है। वो चाहते हैं कि बच्चा खेल में आगे बढ़े। वो खुद मैदान में ले जाते हैं। हम कुश्ती अकेले करते थे। अब बच्चों के माता पिता अखाड़े भी जाते हैं।
योगेश्वर दत्त: मिट्टी के अखाड़े से ओलंपिक पोडियम तक
हरियाणा के भैंसवाल कलां गांव से निकले योगेश्वर दत्त ने भारतीय कुश्ती को नई पहचान दी। 14 साल की उम्र में घर छोड़कर छत्रसाल स्टेडियम पहुंचे योगेश्वर ने संघर्ष, चोट और निजी दुखों के बावजूद हार नहीं मानी। 2012 लंदन ओलंपिक में कांस्य पदक जीतकर उन्होंने इतिहास रचा और देशभर में प्रेरणा बने। एशियाई खेलों और राष्ट्रमंडल खेलों में भी पदक जीतने वाले योगेश्वर के लिए कुश्ती जीवन का आधार रही। संन्यास के बाद भी वे मेंटर के रूप में भारतीय कुश्ती की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।
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जैस्मिन लंबोरिया: विरासत से विश्व स्वर्ण तक
हरियाणा की जैस्मिन लंबोरिया ने भारतीय महिला मुक्केबाजी को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया है। महान बॉक्सर हवा सिंह की परंपरा से निकली जैस्मिन ने पेरिस 2024 ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया और इसके बाद 2025 में वर्ल्ड बॉक्सिंग कप और विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रचा। सीमित संसाधनों के बावजूद मेहनत और अनुशासन के दम पर उन्होंने खुद को विश्व चैंपियन बनाया। जैस्मिन आज देश की युवा खिलाड़ियों के लिए यह संदेश हैं कि संघर्ष से ही स्वर्णिम सफलता निकलती है।
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योगेश्वर: सभी को राम राम पहले तो मैं धन्यवाद देता हूं अमर उजाला को, कि आपने खेल सेशन को रखा। जब बात हरियाणा की आती है तो सबसे पहले हमारे ग्रामीण खेल हैं, कुश्ती है, कबड्डी है, बॉक्सिंग है, हॉकी है, इसकी आती है। हरियाणा के लोगों में जुनून है। ये आती है हमारी संस्कृति से। हमें पुरखों से मिली है संस्कृति। वो चाहे खेल में हो, किसानी हो, समाज सेवा में हो, सेना में हो। आगे बढ़ना का जज्बा विरासत में मिला है। बड़ों से सीखा है। हमने ओलंपिक में अगर छह पदक जीते तो तीन हरियाणा से हैं। एशियन गेम्स में भी आधे पदक हरियाणा लाता है। जो खिलाड़ी के कोच का बड़ा योगदान रहता है। सरकार का भी रोल रहता है। हरियाणा की मिट्टी में जो जोश है और संघर्ष है, उससे हमें पदक मिलते हैं।
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सवाल - कैसा है ये जोश?
जैस्मिन: अभी जो लड़कियां हैं वो बहुत अच्छा कर रही हैं। सिर्फ बॉक्सिंग नहीं, बहुत से खेल है, चाहे वो बैडमिंटन हो रेसलिंग हो। हम जो समर्थन मिल रहा परिवार का, क्योंकि हमारे सीनियर ने एक मंच तैयार किया है। हमें एक पहचान दिखाई है कि हरियाणा खेलों में कितना अच्छा है। मतलब भारत का एक छाप छोड़ा है, वो हमारे लिए लाभदायक हो रहा है। परिवार वाले भी समझ रहे हैं, कि लड़कियां कर रही हैं और उन्हें भी समर्थन देना चाहिए। काफी अच्छा लगता है जब हम बाहर निकलते हैं और हरियाणा को अपनी संस्कृति का प्रतिनिधित्व करते हैं।
सवाल - जब आप चैंपियनशिप या मेडल जीतती हैं तो अपने ईर्द गिर्द बदलाव देखती हैं, जो लड़कियां आपसे मिलने आती हैं?
जैस्मिन: जो यूथ लड़कियां हैं, वो भी हमसे ही सीख रही हैं। इसलिए हमारा दायित्व है कि हम अच्छा करें। हमारी वजह से अगर 10 लड़कियां और अच्छा करना चाह रही हैं तो हम और अच्छा करें ताकि आने वाला जनरेशन मोटिवेशन ले। काफी अच्छा लगता है जब बच्चे हमसे पूछते हैं और सीखते हैं। आगे भी मेरा यही प्रयास रहेगा कि मैं देश के लिए कुछ कर पाऊं।
सवाल - कुश्ती में जो भारत ने धाक जमाई, उनमें से आप एक चेहरा हैं। आपके लिए काफी मुश्किलें भी आई होंगी। जो बच्चा अब कोशिश करना चाहता है उसे क्या करना चाहिए? क्या रास्ता है?
योगेश्वर: सुधार की गुंजाइश हमेशा रहती है। मैंने 1988-89 में कुश्ती शुरू किया था। तब मेरी उम्र सात साल थी। उस समय में गर्मियों में या बरसात में दिक्कत का सामना करना पड़ता था। हमारे पास गांव में मैट नहीं होता था, किट नहीं होती थी। पर उस टाइम और अब बहुत सुविधाएं हैं, लेकिन ग्रास रूट पर बहुत काम करने की जरूरत है। हमें हमेशा सुधार करते रहना चाहिए। हम अगर चाहते हैं कि 2036 ओलंपिक भारत में हो तो उसमें हर खेल पर फोकस करना होगा। सभी खिलाड़ियों का इतिहास गांव से और मध्य वर्ग परिवार से हैं। हमें ग्रासरूट पर तैयारी करनी चाहिए। जो बच्चा अभी 10 साल का है वो 2036 में हमें कितने पदक दिला सकता है। वो चीजें हमें सोचनी हैं। और हर खेल की अलग कैटेगरी बनानी होगी। तो हम ज्यादा अच्छा प्रदर्शन कर पाएंगे। हमारे खिलाड़ियों में पूरा जोश है। मेहनत के मामले में हमसे ज्यादा कोई नहीं है पूरी दुनिया में। खेलों में हम तभी आगे बढ़ेंगे जब एक साथ आगे बढ़ेंगे।
सवाल - जो मां बाप की सोच है खेल को लेकर,उसमें अभी हम पीछे हैं क्या?
योगेश्वर: नहीं नहीं उससे हम आगे निकल चुके हैं। लड़के हो या लड़कियां हों। अब एक सोच तो हट चुकी है कि हमें लड़कों को ही खेल में डालना है, लड़कियों को नहीं डालना है। अब दोनों एक जैसे हैं। माता पिता चाहते हैं कि उनका बच्चा कोई न कोई खेले। माइंडसेट अब मजबूत है। माता पिता का माइंडसेट बदला है। वो चाहते हैं कि बच्चा खेल में आगे बढ़े। वो खुद मैदान में ले जाते हैं। हम कुश्ती अकेले करते थे। अब बच्चों के माता पिता अखाड़े भी जाते हैं।
योगेश्वर दत्त: मिट्टी के अखाड़े से ओलंपिक पोडियम तक
हरियाणा के भैंसवाल कलां गांव से निकले योगेश्वर दत्त ने भारतीय कुश्ती को नई पहचान दी। 14 साल की उम्र में घर छोड़कर छत्रसाल स्टेडियम पहुंचे योगेश्वर ने संघर्ष, चोट और निजी दुखों के बावजूद हार नहीं मानी। 2012 लंदन ओलंपिक में कांस्य पदक जीतकर उन्होंने इतिहास रचा और देशभर में प्रेरणा बने। एशियाई खेलों और राष्ट्रमंडल खेलों में भी पदक जीतने वाले योगेश्वर के लिए कुश्ती जीवन का आधार रही। संन्यास के बाद भी वे मेंटर के रूप में भारतीय कुश्ती की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।
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जैस्मिन लंबोरिया: विरासत से विश्व स्वर्ण तक
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