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Amar Ujala Samwad: मुक्केबाजी में जैस्मिन लंबोरिया ने कैसे बनाया करियर? विश्व चैंपियनशिप फाइनल पर भी दिया जवाब
स्पोर्ट्स डेस्क, अमर उजाला, गुरुग्राम
Published by: शोभित चतुर्वेदी
Updated Wed, 17 Dec 2025 12:46 PM IST
सार
विश्व चैंपियनशिप की स्वर्ण पदक विजेता महिला मुक्केबाज जैस्मिन लंबोरिया ने अमर उजाला संवाद कार्यक्रम में शिरकत की। उन्होंने बताया कि किस तरह उन्होंने विश्व चैंपियनशिप के फाइनल में दबाव को खुद पर हावी नहीं होने दिया। आइए जानते हैं जैस्मिन के साथ बातचीत के मुख्य अंश...
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जैस्मिन लंबोरिया
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
भारतीय महिला मुक्केबाज जैस्मिन लंबोरिया गुरुग्राम में आयोजित अमर उजाला संवाद के मंच पर पहुंचीं और उन्होंने अपने करियर से लेकर विश्व चैंपियनशिप में पदक तक पर राय रखी। जैस्मिन ने बताया कि किस तरह अब लड़कियों को खेलों में आगे बढ़ने के लिए परिवार का भी समर्थन मिल रहा है। आइए जानते हैं जैस्मिन लंबोरिया के साथ विशेष बातचीत के मुख्य अंश...
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सवाल - जोश कैसा है?
जैस्मिन: अभी जो लड़कियां हैं वो बहुत अच्छा कर रही हैं। सिर्फ मुक्केबाजी ही नहीं, बहुत से खेल है, चाहे वो बैडमिंटन हो कुश्ती हो। हमें जो समर्थन मिल रहा परिवार का, क्योंकि हमारे सीनियर ने एक मंच तैयार किया है। हमें एक पहचान दिखाई है कि हरियाणा खेलों में कितना अच्छा है। मतलब भारत ने एक छाप छोड़ी है, वो हमारे लिए लाभदायक हो रहा है। परिवार वाले भी समझ रहे हैं, कि लड़कियां कर रही हैं और उन्हें भी समर्थन देना चाहिए। काफी अच्छा लगता है जब हम बाहर निकलते हैं और हरियाणा को अपनी संस्कृति का प्रतिनिधित्व करते हैं।
सवाल - जब आप चैंपियनशिप में मेडल जीतती हैं तो अपने ईर्द गिर्द बदलाव को किस तरह देखती हैं, जो लड़कियां आपसे मिलने आती हैं?
जैस्मिन: जो युवा लड़कियां हैं, वो भी हमसे ही सीख रही हैं। इसलिए हमारा दायित्व है कि हम अच्छा करें। हमारी वजह से अगर 10 लड़कियां और अच्छा करना चाह रही हैं तो हम और अच्छा करें ताकि आने वाली पीढ़ी इससे प्रेरणा ले। काफी अच्छा लगता है जब बच्चे हमसे पूछते हैं और सीखते हैं। आगे भी मेरा यही प्रयास रहेगा कि मैं देश के लिए कुछ कर पाऊं।
सवाल - जब विश्व चैंपियन में गोल्ड मेडल आया, तो क्या चल रहा था दिमाग में?
जैस्मिन: मैंने 2022 में विश्व चैंपियनशिप खेली वहां क्वार्टर फाइनल में हारी, 2023 में भी खेली, वहां भी मैं क्वार्टर फाइनल में हारी। तो मैं मेडल के पड़ाव पर ही कहीं न कहीं रुक जा रही थी। इस बार था कि करना है। मैंने हर फाइट को फाइनल की तरह लेकर चला। फाइनल फाइट भी काफी कठिन रही थी। मैंने दबाव नहीं लिया। वो भी खिलाड़ी है और मैं भी हूं। अपना सर्वश्रेष्ठ देना है रिजल्ट चाहे जो भी आए। मैंने अपना गेम खेला। काफी अच्छा लगता है जब हम भारत के लिए इतना करते हैं।
सवाल - हरियाणा की बेटियां इतने मुश्किल खेल कैसे चुन लेती हैं? कुश्ती मुक्केबाजी जैसे खेल?
जैस्मिन: मेरा तो ये था कि मैंने तो अपने घर में ही देखा है। भिवानी मुक्केबाजी का हब बोला जाता है। हमारे आसपास सभी खेलते थे। मैंने खुद अपने दोनों चाचा को खेलते हुए देखा। तो हम उनकी फाइट्स देखते थे, मेडल्स देखते थे। इक्विपमेंट्स देखते थे। तो वो सब हम चीजें देख रहे थे तो हमें प्रेरणा मिली कि हम भी खेलेंगे। तो मुझे तो वहीं से प्रेरणा मिली। हरियाणा के लोगों में अलग तरह का जोश रहता है कि नहीं ये तो करना है। हमें ये चीजें पहले से मिलीं। इसी वजह से हम फाइटिंग गेम्स चुन पा रहे हैं।
सवाल - बहुत सी बच्चियां आपको आइडल मानती हैं। तो जो बच्चियां तैयारी कर रही हैं, उन्हें बताइए कि क्या चैलेंजेज आते हैं?
जैस्मिन: कुछ भी हम करते हैं, उसमें संघर्ष रहता है अपने अपने लेवल का। किसी को फाइनेंसियल रहती हैं, या किसी का स्पोर्ट का रहता है। कभी अच्छे पार्टनर नहीं मिलते हैं। सपने बड़े हों और सपोर्ट मिल रहा हो तो ये सब कवर होता जाता है। संघर्ष रहता है तो लेकिन जब बात सपनों की आती है तो ट्रेनिंग सामने आता है कि नहीं बस करते जाओ जाओ।
सवाल - चोटों से रिकवर होने में काफी मेहनत लगती है, शरीर के साथ दिमाग का भी खेल है। आपने खुद फेस किया है। इस बारे में बताइए...
जैस्मिन: मुझे कभी इंजरी हुई नहीं। हम देखते हैं कि हमारे आसपास के बहुत से खिलाड़ी चोटिल हुए। इससे उनके छह सात महीने निकल जाते हैं। हमने तो देखा है। उस टाइम पर निगेटिव विचार भी आते हैं। वो अकेले अकेले सोच के खुद भी परेशान होते हैं। लेकिन वो फिर भी कहते रहते हैं कि मैं ठीक होऊंगा।
जैस्मिन: अभी जो लड़कियां हैं वो बहुत अच्छा कर रही हैं। सिर्फ मुक्केबाजी ही नहीं, बहुत से खेल है, चाहे वो बैडमिंटन हो कुश्ती हो। हमें जो समर्थन मिल रहा परिवार का, क्योंकि हमारे सीनियर ने एक मंच तैयार किया है। हमें एक पहचान दिखाई है कि हरियाणा खेलों में कितना अच्छा है। मतलब भारत ने एक छाप छोड़ी है, वो हमारे लिए लाभदायक हो रहा है। परिवार वाले भी समझ रहे हैं, कि लड़कियां कर रही हैं और उन्हें भी समर्थन देना चाहिए। काफी अच्छा लगता है जब हम बाहर निकलते हैं और हरियाणा को अपनी संस्कृति का प्रतिनिधित्व करते हैं।
सवाल - जब आप चैंपियनशिप में मेडल जीतती हैं तो अपने ईर्द गिर्द बदलाव को किस तरह देखती हैं, जो लड़कियां आपसे मिलने आती हैं?
जैस्मिन: जो युवा लड़कियां हैं, वो भी हमसे ही सीख रही हैं। इसलिए हमारा दायित्व है कि हम अच्छा करें। हमारी वजह से अगर 10 लड़कियां और अच्छा करना चाह रही हैं तो हम और अच्छा करें ताकि आने वाली पीढ़ी इससे प्रेरणा ले। काफी अच्छा लगता है जब बच्चे हमसे पूछते हैं और सीखते हैं। आगे भी मेरा यही प्रयास रहेगा कि मैं देश के लिए कुछ कर पाऊं।
सवाल - जब विश्व चैंपियन में गोल्ड मेडल आया, तो क्या चल रहा था दिमाग में?
जैस्मिन: मैंने 2022 में विश्व चैंपियनशिप खेली वहां क्वार्टर फाइनल में हारी, 2023 में भी खेली, वहां भी मैं क्वार्टर फाइनल में हारी। तो मैं मेडल के पड़ाव पर ही कहीं न कहीं रुक जा रही थी। इस बार था कि करना है। मैंने हर फाइट को फाइनल की तरह लेकर चला। फाइनल फाइट भी काफी कठिन रही थी। मैंने दबाव नहीं लिया। वो भी खिलाड़ी है और मैं भी हूं। अपना सर्वश्रेष्ठ देना है रिजल्ट चाहे जो भी आए। मैंने अपना गेम खेला। काफी अच्छा लगता है जब हम भारत के लिए इतना करते हैं।
सवाल - हरियाणा की बेटियां इतने मुश्किल खेल कैसे चुन लेती हैं? कुश्ती मुक्केबाजी जैसे खेल?
जैस्मिन: मेरा तो ये था कि मैंने तो अपने घर में ही देखा है। भिवानी मुक्केबाजी का हब बोला जाता है। हमारे आसपास सभी खेलते थे। मैंने खुद अपने दोनों चाचा को खेलते हुए देखा। तो हम उनकी फाइट्स देखते थे, मेडल्स देखते थे। इक्विपमेंट्स देखते थे। तो वो सब हम चीजें देख रहे थे तो हमें प्रेरणा मिली कि हम भी खेलेंगे। तो मुझे तो वहीं से प्रेरणा मिली। हरियाणा के लोगों में अलग तरह का जोश रहता है कि नहीं ये तो करना है। हमें ये चीजें पहले से मिलीं। इसी वजह से हम फाइटिंग गेम्स चुन पा रहे हैं।
सवाल - बहुत सी बच्चियां आपको आइडल मानती हैं। तो जो बच्चियां तैयारी कर रही हैं, उन्हें बताइए कि क्या चैलेंजेज आते हैं?
जैस्मिन: कुछ भी हम करते हैं, उसमें संघर्ष रहता है अपने अपने लेवल का। किसी को फाइनेंसियल रहती हैं, या किसी का स्पोर्ट का रहता है। कभी अच्छे पार्टनर नहीं मिलते हैं। सपने बड़े हों और सपोर्ट मिल रहा हो तो ये सब कवर होता जाता है। संघर्ष रहता है तो लेकिन जब बात सपनों की आती है तो ट्रेनिंग सामने आता है कि नहीं बस करते जाओ जाओ।
सवाल - चोटों से रिकवर होने में काफी मेहनत लगती है, शरीर के साथ दिमाग का भी खेल है। आपने खुद फेस किया है। इस बारे में बताइए...
जैस्मिन: मुझे कभी इंजरी हुई नहीं। हम देखते हैं कि हमारे आसपास के बहुत से खिलाड़ी चोटिल हुए। इससे उनके छह सात महीने निकल जाते हैं। हमने तो देखा है। उस टाइम पर निगेटिव विचार भी आते हैं। वो अकेले अकेले सोच के खुद भी परेशान होते हैं। लेकिन वो फिर भी कहते रहते हैं कि मैं ठीक होऊंगा।