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Samwad 2025: प्रोफेशनल कुश्ती और पारंपरिक अखाड़ा सिस्टम में सबसे बड़ा फर्क क्या? योगेश्वर ने अंतर समझाया

स्पोर्ट्स डेस्क, अमर उजाला, गुरुग्राम Published by: स्वप्निल शशांक Updated Wed, 17 Dec 2025 02:47 PM IST
सार

योगेश्वर ने बताया कि प्रोफेशनल कुश्ती और पारंपरिक अखाड़ा सिस्टम में सबसे बड़ा फर्क क्या है। उन्होंने चोट से युवा कैसे उबरें इस पर भी बात की। आइए जानते हैं...

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Samwad 2025: Yogeshwar Dutt Explains the Biggest Difference Between Professional Wrestling and the Traditional
योगेश्वर दत्त - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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हरियाणा इस बार खेल, संस्कृति और संवाद का बड़ा मंच बना है। अमर उजाला संवाद 2025 का आयोजन गुरुग्राम में हुआ, जहां खेल, मनोरंजन और राजनीति जगत की दिग्गज हस्तियां ने शिरकत किया। खास बात यह है कि इस मंच पर ओलंपिक पदक विजेता पहलवान योगेश्वर दत्त और विश्व चैंपियन महिला मुक्केबाज जैस्मिन लंबोरिया भी नजर आए। इन दोनों ने खेलों पर बात सत्र में हिस्सा लिया। इस दौरान योगेश्वर ने बताया कि प्रोफेशनल कुश्ती और पारंपरिक अखाड़ा सिस्टम में सबसे बड़ा फर्क क्या है। उन्होंने चोट से युवा कैसे उबरें इस पर भी बात की।
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मिट्टी की कुश्ती और मैट की कुश्ती में फर्क
योगेश्वर ने कहा, 'मिट्टी की कुश्ती और मैट की कुश्ती में बड़ा फर्क होता है। अगर हमें ओलंपिक मेडल जीतना है तो मैट पर ही कुश्ती करनी होगी। मिट्टी और मैट में जब बच्चा दोनों पर ट्रेनिंग करता है तो उसका फायदा होता है। मिट्टी की कुश्ती में जोर आजमाइश ज्यादा लगती है। सारे बच्चे मिट्टी में ही खेलकर आगे बढ़े हैं। बिना मिट्टी में प्रैक्टिस किए आपको अपनी मिट्टी अपने देश से प्यार नहीं हो सकता।'
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चोट से कैसे रिकवरी करें? योगेश्वर ने बताया
जब योगेश्वर से पूछा गया कि चोटों से रिकवर होने में काफी मेहनत लगती है, शरीर के साथ दिमाग का भी खेल है। आपने खुद फेस किया है। इस बारे में बताइए...? तो उन्होंने कहा, 'खिलाड़ी के लिए सबसे बुरी चीज इंजरी होती है। किसी प्रतियोगिता के समय लग जाए तो प्रतियोगिता से दूर कर देती है। मेरे पांच ऑपरेशन हुए पैरों के। डिश स्लिप भी हुई थी। इंजरी खिलाड़ी के लिए सबसे बड़ी मुसीबत होती है। आपको नहीं पता कि कल आपको ओलंपिक में हिस्सा लेना है और आज इंजरी हो जाए तो आप उससे दूर हो जाते हैं। एक ऑपरेशन ठीक होने में लगभग एक साल लेता है। तो मेरे इतने लंबे करियर में कई ऑपरेशन हुए। चार ओलंपिक मैं खेला। खिलाड़ी का गहना है इंजरी, लेकिन यह गहना सबसे ज्यादा तकलीफ देता है। परेशानी रुकावटें आपको रोक नहीं सकतीं।'

योगेश्वर को किन किन मुश्किलों का सामना करना पड़ा?
जब योगेश्वर से पूछा गया कि 'कुश्ती में जो भारत ने धाक जमाई, उनमें से आप एक चेहरा हैं। आपके लिए काफी मुश्किलें भी आई होंगी। जो बच्चा अब कोशिश करना चाहता है उसे क्या करना चाहिए? क्या रास्ता है?' इस पर ओलंपिक पदक विजेता पहलवान ने कहा, 'सुधार की गुंजाइश हमेशा रहती है। मैंने 1988-89 में कुश्ती शुरू किया था। तब मेरी उम्र सात साल थी। उस समय में गर्मियों में या बरसात में दिक्कत का सामना करना पड़ता था। हमारे पास गांव में मैट नहीं होता था, किट नहीं होती थी। पर उस टाइम और अब बहुत सुविधाएं हैं, लेकिन ग्रास रूट पर बहुत काम करने की जरूरत है। हमें हमेशा सुधार करते रहना चाहिए।'

2036 ओलंपिक में भारत कैसे बेहतर कर सकता है?
योगेश्वर ने कहा, 'हम अगर चाहते हैं कि 2036 ओलंपिक भारत में हो तो उसमें हर खेल पर फोकस करना होगा। सभी खिलाड़ियों का इतिहास गांव से और मध्य वर्ग परिवार से हैं। हमें ग्रासरूट पर तैयारी करनी चाहिए। जो बच्चा अभी 10 साल का है वो 2036 में हमें कितने पदक दिला सकता है। वो चीजें हमें सोचनी हैं। और हर खेल की अलग कैटेगरी बनानी होगी। तो हम ज्यादा अच्छा प्रदर्शन कर पाएंगे। हमारे खिलाड़ियों में पूरा जोश है। मेहनत के मामले में हमसे ज्यादा कोई नहीं है पूरी दुनिया में। खेलों में हम तभी आगे बढ़ेंगे जब एक साथ आगे बढ़ेंगे।'

योगेश्वर दत्त: मिट्टी के अखाड़े से ओलंपिक पोडियम तक
हरियाणा के गांव से निकले योगेश्वर दत्त ने भारतीय कुश्ती को नई पहचान दी। 14 साल की उम्र में घर छोड़कर छत्रसाल स्टेडियम पहुंचे योगेश्वर ने संघर्ष, चोट और निजी दुखों के बावजूद हार नहीं मानी। 2012 लंदन ओलंपिक में कांस्य पदक जीतकर उन्होंने इतिहास रचा और देशभर में प्रेरणा बने। एशियाई खेलों और राष्ट्रमंडल खेलों में भी पदक जीतने वाले योगेश्वर के लिए कुश्ती जीवन का आधार रही। संन्यास के बाद भी वे मेंटर के रूप में भारतीय कुश्ती की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। 

Amar Ujala Samwad: योगेश्वर दत्त की संघर्ष, साहस और सपनों से भरी कहानी; हार, चोट और दर्द से लड़कर रचा इतिहास
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