{"_id":"693ef42172b50e601901cfab","slug":"urban-areas-gave-gonda-a-chance-to-smile-gonda-news-c-100-1-slko1026-148783-2025-12-14","type":"story","status":"publish","title_hn":"Gonda News: शहरी इलाकों ने गोंडा को मुस्कुराने का दिया मौका","category":{"title":"City & states","title_hn":"शहर और राज्य","slug":"city-and-states"}}
Gonda News: शहरी इलाकों ने गोंडा को मुस्कुराने का दिया मौका
संवाद न्यूज एजेंसी, गोंडा
Updated Sun, 14 Dec 2025 11:00 PM IST
विज्ञापन
विज्ञापन
गोंडा।
गोंडा के शहरी इलाकों में रहने वाले लोग कमा रहे हैं, तो खुलकर खर्च भी कर रहे हैं। दिल्ली, लखनऊ नहीं...अपने गोंडा में ही उनकी जरूरतें पूरी हो रही हैं। इससे अपना पैसा अपने ही बाजार में खप और खर्च हो रहा है। ऐसे में शहरी क्षेत्रों ने मंडल मुख्यालय को मुस्कुराने का मौका दिया है।
सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय की घरेलू उपभोग व्यय रिपोर्ट के अनुसार अपने शहरी क्षेत्र में मासिक प्रति व्यक्ति भोजन, कपड़े, आवास, परिवहन व स्वास्थ्य पर औसतन 8,133 रुपये खर्च किए जा रहे हैं। शहरी इलाकों की बात करें तो हाल के दिनों में निकायों की संख्या बढ़ी है। पहले मात्र छह नगर निकाय थे, अब यह बढ़कर दस हो गए हैं। शहरीकरण की दिशा में विस्तार हो रहा है। नई-नई कॉलोनियां विकसित हो रही हैं। शहर से सटे गांव भी सिर्फ नाम के गांव हैं। वह सुविधाओं और खर्च के मामले में शहर को भी मात दे रहे हैं।
अब रिपोर्ट का दूसरा पहलू। शहरी क्षेत्र में हम भले बेहतर हुए हैं, लेकिन ग्रामीण इलाकों में अभी स्थिति बेहतर नहीं हो सकी है। यहां उपभोग व्यय 3636 रुपये ही है। ऐसे में गोंडा की अर्थव्यवस्था दो हिस्सों में बंटी है। शहर मजबूत हुआ है, जबकि गांव अब भी दबाव में हैं। हालांकि गांवों का विकास हुआ है।
ग्रामीण परिवारों की बुनियादी जरूरतें (खाद्य, कपड़ा, ईंधन, शिक्षा, स्वास्थ्य) सीमित आय में पूरी हो रही हैं। इससे साफ है कि खेती, मजदूरी और सरकारी योजनाएं ग्रामीण अर्थव्यवस्था को संभाल रही हैं, लेकिन तेज आय वृद्धि नहीं हो पा रही है।
बदलाव का शुभ संकेत
अखिल भारतीय उद्योग व्यापार मंडल के जिलाध्यक्ष भूपेंद्र आर्य कहते हैं कि रिपोर्ट से साफ है कि शहरी इलाकों में विकास ने रफ्तार पकड़ी है। इससे शहरी बाजार को मजबूती मिलेगी। हाल के दिनों में बड़े शोरूम खुले हैं। सोने-चांदी के नये बाजार विकसित हुए हैं। आटोमोबाइल ने भी तरक्की की राह पकड़ी है। अब गोंडा के लोग गोंडा में ही खर्च कर रहे हैं। पहले यहां के लोग लखनऊ व दिल्ली में खर्च करते थे। यह बदलाव एक शुभ संकेत है।
अर्थव्यवस्था को मिलेगी मजबूती
लाल बहादुर शास्त्री महाविद्यालय के वाणिज्य विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. बीपी सिंह का कहना है कि यह सामान्यत: गोंडा के आसपास बड़ा शहर या मार्केट न होने का असर है। अब लोग अपना पैसा यहीं के बाजार में ही लगा रहे हैं। यहीं से आवश्यक वस्तुओें की खरीदारी कर रहे हैं। बड़े शहरों में मिलने वाला सामान उसी मूल्य पर यहां के बाजार में मिल रहा है। यह एक बेहतर संकेत है। इससे रोजगार भी सृजित होगा।
सुधारनी होगी गांव की व्यवस्था
भारतीय किसान यूनियन के जिलाध्यक्ष शिवराम उपाध्याय कहते हैं कि ग्रामीण इलाकों की व्यवस्था को बेहतर बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए। योजनाओं को धरातल पर लागू करने के लिए प्रयास होना चाहिए। कृषि आधारित अर्थव्यवस्था पर दबाव कम करने के लिए प्रयास किए जाएं तो अपने ग्रामीण क्षेत्र भी शहरी इलाकों से कदमताल करेंगे।
Trending Videos
गोंडा के शहरी इलाकों में रहने वाले लोग कमा रहे हैं, तो खुलकर खर्च भी कर रहे हैं। दिल्ली, लखनऊ नहीं...अपने गोंडा में ही उनकी जरूरतें पूरी हो रही हैं। इससे अपना पैसा अपने ही बाजार में खप और खर्च हो रहा है। ऐसे में शहरी क्षेत्रों ने मंडल मुख्यालय को मुस्कुराने का मौका दिया है।
सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय की घरेलू उपभोग व्यय रिपोर्ट के अनुसार अपने शहरी क्षेत्र में मासिक प्रति व्यक्ति भोजन, कपड़े, आवास, परिवहन व स्वास्थ्य पर औसतन 8,133 रुपये खर्च किए जा रहे हैं। शहरी इलाकों की बात करें तो हाल के दिनों में निकायों की संख्या बढ़ी है। पहले मात्र छह नगर निकाय थे, अब यह बढ़कर दस हो गए हैं। शहरीकरण की दिशा में विस्तार हो रहा है। नई-नई कॉलोनियां विकसित हो रही हैं। शहर से सटे गांव भी सिर्फ नाम के गांव हैं। वह सुविधाओं और खर्च के मामले में शहर को भी मात दे रहे हैं।
विज्ञापन
विज्ञापन
अब रिपोर्ट का दूसरा पहलू। शहरी क्षेत्र में हम भले बेहतर हुए हैं, लेकिन ग्रामीण इलाकों में अभी स्थिति बेहतर नहीं हो सकी है। यहां उपभोग व्यय 3636 रुपये ही है। ऐसे में गोंडा की अर्थव्यवस्था दो हिस्सों में बंटी है। शहर मजबूत हुआ है, जबकि गांव अब भी दबाव में हैं। हालांकि गांवों का विकास हुआ है।
ग्रामीण परिवारों की बुनियादी जरूरतें (खाद्य, कपड़ा, ईंधन, शिक्षा, स्वास्थ्य) सीमित आय में पूरी हो रही हैं। इससे साफ है कि खेती, मजदूरी और सरकारी योजनाएं ग्रामीण अर्थव्यवस्था को संभाल रही हैं, लेकिन तेज आय वृद्धि नहीं हो पा रही है।
बदलाव का शुभ संकेत
अखिल भारतीय उद्योग व्यापार मंडल के जिलाध्यक्ष भूपेंद्र आर्य कहते हैं कि रिपोर्ट से साफ है कि शहरी इलाकों में विकास ने रफ्तार पकड़ी है। इससे शहरी बाजार को मजबूती मिलेगी। हाल के दिनों में बड़े शोरूम खुले हैं। सोने-चांदी के नये बाजार विकसित हुए हैं। आटोमोबाइल ने भी तरक्की की राह पकड़ी है। अब गोंडा के लोग गोंडा में ही खर्च कर रहे हैं। पहले यहां के लोग लखनऊ व दिल्ली में खर्च करते थे। यह बदलाव एक शुभ संकेत है।
अर्थव्यवस्था को मिलेगी मजबूती
लाल बहादुर शास्त्री महाविद्यालय के वाणिज्य विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. बीपी सिंह का कहना है कि यह सामान्यत: गोंडा के आसपास बड़ा शहर या मार्केट न होने का असर है। अब लोग अपना पैसा यहीं के बाजार में ही लगा रहे हैं। यहीं से आवश्यक वस्तुओें की खरीदारी कर रहे हैं। बड़े शहरों में मिलने वाला सामान उसी मूल्य पर यहां के बाजार में मिल रहा है। यह एक बेहतर संकेत है। इससे रोजगार भी सृजित होगा।
सुधारनी होगी गांव की व्यवस्था
भारतीय किसान यूनियन के जिलाध्यक्ष शिवराम उपाध्याय कहते हैं कि ग्रामीण इलाकों की व्यवस्था को बेहतर बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए। योजनाओं को धरातल पर लागू करने के लिए प्रयास होना चाहिए। कृषि आधारित अर्थव्यवस्था पर दबाव कम करने के लिए प्रयास किए जाएं तो अपने ग्रामीण क्षेत्र भी शहरी इलाकों से कदमताल करेंगे।