झांसी को पहले मराठा सूबेदार नारू शंकर ने संवारने का काम किया था। अपने पंद्रह सालों के अल्प कार्यकाल में उन्होंने झांसी नगर का नियोजन तो किया ही था, साथ ही राज्य की सीमा का विस्तार भी किया था। यही वजह है कि नारू शंकर को झांसी राज्य का शिल्पी कहा जाता है।
झांसी की बंगरा नामक पहाड़ी पर सन 1613 ओरछा के बुंदेला राजा वीर सिंह जूदेव ने किले का निर्माण कराया था। शुरुआत के पच्चीस सालों तक किला बुंदेलाओं के आधिपत्य में रहा। इसके बाद सौ सालों तक मुगलों का कब्जा रहा। 1729-30 में ये मराठाओं के पास आया। इसके साथ ही मराठा शासन की शुरुआत हुई। झांसी राज्य के पहले मराठा सूबेदार नारू शंकर बनाए गए। नारू शंकर ने अपने कार्यकाल की शुरुआत में किले का विकास कराया। इसके बाद उन्होंने 7.3 किलोमीटर की परिधि में झांसी नगर की स्थापना की। उन्होंने नगर में मराठा बस्तियों का निर्माण तो किया ही, साथ ही गुसाइयों को भी भूमि दान दी।
इतना ही नहीं, नारू शंकर के नाम झांसी राज्य के विस्तार का श्रेय भी जाता है। उन्होंने दतिया राज्य से दबोह परगना छीनकर झांसी में शामिल किया। पंद्रह सालों के शासनकाल में नारू शंकर ने झांसी को सुदृढ़ शक्ति संपन्न राज्य बनाया। इसके बाद उन्हें वापस महाराष्ट्र बुला लिया गया, लेकिन 1761 में एक बार पुन: उन्हें झांसी भेजा गया। नारू शंकर की मृत्यु के बाद उनके भाई विश्वास राव लक्ष्मण को झांसी का सूबेदार बनाया गया था। उन्होंने 1766 से 1769 तक प्रशासन किया। उनके बाद रघुनाथ राव (द्वितीय) नेवालकर सूबेदार नियुक्त हुए। यहां से रानी लक्ष्मीबाई के पति गंगाधर राव के कुल की शुरुआत हुई।