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रानी लक्ष्मीबाई की विरासत को सहेजे हैं ये इमारतें
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प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की अमर दीपशिखा वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई के जीवन से जुड़े कई स्थल हैं, जो आज की पीढ़ी के लिए अनमोल विरासत है। ये वे इमारत हैं, जिन्हें लाखों लोग देखने के लिए आते हैं और अपने साथ रानी की यादें भी ले जाते हैं।
गणेश मंदिर: जहां मनु बनी थीं लक्ष्मीबाई
झांसी में जगह-जगह महारानी लक्ष्मीबाई से जुड़ीं इमारत मौजूद हैं। इनमें महाराष्ट्र गणेश मंदिर भी महत्वपूर्ण है। ये वो स्थान है, जहां बिठूर की कन्या मनु का विवाह झांसी के राजा गंगाधर राव के साथ हुआ था। शादी के बाद यहां उन्हें नया नाम लक्ष्मीबाई दिया गया था। इसी नाम से वे पूरे विश्व में पहचानी जाती हैं। ये नाम नारी अस्मिता का प्रतीक बना हुआ है। पानी वाली धर्मशाला के समीप मौजूद प्राचीन गणेश मंदिर का निर्माण 17 वीं शताब्दी में हुआ था। मंदिर में महाराष्ट्र समाज के आराध्य देव भगवान गणेश क ो साक्षी मान महाराजा गंगाधर राव और मोरोपंत तांबे की पुत्री मणिकर्णिका विवाह बंधन में बंधे थे। महाराष्ट्रीय समाज की वैवाहिक रस्में मंदिर परिसर में धूमधाम से आयोजित र्हुइं थीं, जिसमें बुंदेलखंड के कई रियासतों के राजा, सामंत और महानगर के वासी शामिल हुए थे। वर्तमान में यह मंदिर आज पर्यटकों और स्थानीय श्रद्धालुओं के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र है। इस मंदिर के प्रति रानी लक्ष्मीबाई की खासी श्रद्धा थी। वह समय - समय पर गर्भगृह में विराजमान भगवान गणेश, ऋद्धि सिद्धि के दर्शन के लिए आती थीं।
रानी लक्ष्मीबाई के विवाह स्थल गणेश मंदिर में राजा गंगाधर राव का तिलक हुआ था। कई रस्में हुई थीं। इसी मंदिर में मनु दुल्हन बनी थीं।
गजानन खानवलकर, सचिव गणेश मंदिर कमेटी झांसी
महालक्ष्मी मंदिर का स्वयं प्रबंधन संभालती थीं रानी
महानगर के पूर्व दिशा में सुख और समृद्धि की देवी मां महालक्ष्मी का विशाल मंदिर है। इस मंदिर का रानी स्वयं प्रबंधन करती थीं। अंग्रेजों ने जब इस मंदिर की राजस्व संपत्ति का अधिग्रहण किया, तब रानी लक्ष्मीबाई सहित झांसी की समूची जनता रुष्ट हो उठी। जो बाद में 1857 की क्रांति की एक बड़ी वजह मानी जाती है।
लक्ष्मी तालाब के तट पर स्थित इस मंदिर का निर्माण सूबेदार रघुनाथ राव नेवालकर द्वितीय ने 17 वीं सदी में कराया था। राजा गंगाधर राव ने इस मंदिर के प्रबंध के लिए दो गोव देवी को अर्पित किए थे। राजा गंगाधर राव की मृत्यु के बाद इस मंदिर का प्रबंधन रानी लक्ष्मीबाई ने खुद संभाल लिया और वह अपने परिवार की इष्ट देवी के नियमित दर्शन के लिए आती जाती रहीं। कभी इस मंदिर के चारों ओर कमल के फूल खिलते थे। वहीं, ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा मंदिर प्रबंध के लिए लगे गांवों के अधिग्रहण करने पर झांसी की जनता और रानी लक्ष्मीबाई आक्रोशित हो गईं। इसके बाद रानी स्वयं अपने धन से मंदिर का प्रबंधन करने लगीं। वर्तमान में यह मंदिर राज्य पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित है।
रानी लक्ष्मीबाई क ा इस मंदिर के प्रति खासा लगाव था। इसकी वजह मंदिर में विराजमान देवी उनके परिवार की कुलदेवी थीं। वह स्वयं मंदिर का प्रबंधन करती थीं।
डॉ. एसके दुबे, पुरातत्व अधिकारी झांसी
रानी महल में आम जनता से रूबरू होती थीं
रानी लक्ष्मीबाई के जीवन में रानी महल का अहम स्थान है। झांसी के कंपनी राज्य में विलय हो जाने के बाद रानी को दुर्ग स्थित महल का परित्याग करना पड़ा, तब उन्होंने अपना आवास इस महल को बनाया। यहां वह आम जनता से मिलती थीं। उनकी समस्याएं भी सुलझाती थीं। उनके द्वारा लिए गए कई फैसलों का गवाह है यह महल। इस महल का निर्माण सूबेदार रघुनाथ राव द्वितीय ने कराया था। इस महल में चूने के मसाले से विभिन्न पशु पक्षियों की मूर्तियां हैं। दूसरी मंजिल के दरबार हॉल में चित्र बने हुए हैं, जिनमें लताएं, पुष्प, मयूर आदि हैं। हालांकि इनमें से अधिकांश चित्र मिटने की कगार पर हैं। दूसरी मंजिल के दरबार हॉल में आज भी वह खंबा मौजूद है, जिस पर रानी की तलवार का प्रहार है। वर्तमान में इस महल का संरक्षण केंद्रीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा किया जा रहा है।
महाराजा गंगाधर राव के बाद रानी लक्ष्मीबाई रानी महल से जनता क ी समस्याएं हल करने लगी थीं। इस महल से किला और महालक्ष्मी मंदिर जाने के लिए कभी रास्ता था, जिसका वह उपयोग करती थीं।
मुकुंद महरोत्रा अध्यक्ष पुलिंद कला दीर्घा
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गणेश मंदिर: जहां मनु बनी थीं लक्ष्मीबाई
झांसी में जगह-जगह महारानी लक्ष्मीबाई से जुड़ीं इमारत मौजूद हैं। इनमें महाराष्ट्र गणेश मंदिर भी महत्वपूर्ण है। ये वो स्थान है, जहां बिठूर की कन्या मनु का विवाह झांसी के राजा गंगाधर राव के साथ हुआ था। शादी के बाद यहां उन्हें नया नाम लक्ष्मीबाई दिया गया था। इसी नाम से वे पूरे विश्व में पहचानी जाती हैं। ये नाम नारी अस्मिता का प्रतीक बना हुआ है। पानी वाली धर्मशाला के समीप मौजूद प्राचीन गणेश मंदिर का निर्माण 17 वीं शताब्दी में हुआ था। मंदिर में महाराष्ट्र समाज के आराध्य देव भगवान गणेश क ो साक्षी मान महाराजा गंगाधर राव और मोरोपंत तांबे की पुत्री मणिकर्णिका विवाह बंधन में बंधे थे। महाराष्ट्रीय समाज की वैवाहिक रस्में मंदिर परिसर में धूमधाम से आयोजित र्हुइं थीं, जिसमें बुंदेलखंड के कई रियासतों के राजा, सामंत और महानगर के वासी शामिल हुए थे। वर्तमान में यह मंदिर आज पर्यटकों और स्थानीय श्रद्धालुओं के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र है। इस मंदिर के प्रति रानी लक्ष्मीबाई की खासी श्रद्धा थी। वह समय - समय पर गर्भगृह में विराजमान भगवान गणेश, ऋद्धि सिद्धि के दर्शन के लिए आती थीं।
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रानी लक्ष्मीबाई के विवाह स्थल गणेश मंदिर में राजा गंगाधर राव का तिलक हुआ था। कई रस्में हुई थीं। इसी मंदिर में मनु दुल्हन बनी थीं।
गजानन खानवलकर, सचिव गणेश मंदिर कमेटी झांसी
महालक्ष्मी मंदिर का स्वयं प्रबंधन संभालती थीं रानी
महानगर के पूर्व दिशा में सुख और समृद्धि की देवी मां महालक्ष्मी का विशाल मंदिर है। इस मंदिर का रानी स्वयं प्रबंधन करती थीं। अंग्रेजों ने जब इस मंदिर की राजस्व संपत्ति का अधिग्रहण किया, तब रानी लक्ष्मीबाई सहित झांसी की समूची जनता रुष्ट हो उठी। जो बाद में 1857 की क्रांति की एक बड़ी वजह मानी जाती है।
लक्ष्मी तालाब के तट पर स्थित इस मंदिर का निर्माण सूबेदार रघुनाथ राव नेवालकर द्वितीय ने 17 वीं सदी में कराया था। राजा गंगाधर राव ने इस मंदिर के प्रबंध के लिए दो गोव देवी को अर्पित किए थे। राजा गंगाधर राव की मृत्यु के बाद इस मंदिर का प्रबंधन रानी लक्ष्मीबाई ने खुद संभाल लिया और वह अपने परिवार की इष्ट देवी के नियमित दर्शन के लिए आती जाती रहीं। कभी इस मंदिर के चारों ओर कमल के फूल खिलते थे। वहीं, ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा मंदिर प्रबंध के लिए लगे गांवों के अधिग्रहण करने पर झांसी की जनता और रानी लक्ष्मीबाई आक्रोशित हो गईं। इसके बाद रानी स्वयं अपने धन से मंदिर का प्रबंधन करने लगीं। वर्तमान में यह मंदिर राज्य पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित है।
रानी लक्ष्मीबाई क ा इस मंदिर के प्रति खासा लगाव था। इसकी वजह मंदिर में विराजमान देवी उनके परिवार की कुलदेवी थीं। वह स्वयं मंदिर का प्रबंधन करती थीं।
डॉ. एसके दुबे, पुरातत्व अधिकारी झांसी
रानी महल में आम जनता से रूबरू होती थीं
रानी लक्ष्मीबाई के जीवन में रानी महल का अहम स्थान है। झांसी के कंपनी राज्य में विलय हो जाने के बाद रानी को दुर्ग स्थित महल का परित्याग करना पड़ा, तब उन्होंने अपना आवास इस महल को बनाया। यहां वह आम जनता से मिलती थीं। उनकी समस्याएं भी सुलझाती थीं। उनके द्वारा लिए गए कई फैसलों का गवाह है यह महल। इस महल का निर्माण सूबेदार रघुनाथ राव द्वितीय ने कराया था। इस महल में चूने के मसाले से विभिन्न पशु पक्षियों की मूर्तियां हैं। दूसरी मंजिल के दरबार हॉल में चित्र बने हुए हैं, जिनमें लताएं, पुष्प, मयूर आदि हैं। हालांकि इनमें से अधिकांश चित्र मिटने की कगार पर हैं। दूसरी मंजिल के दरबार हॉल में आज भी वह खंबा मौजूद है, जिस पर रानी की तलवार का प्रहार है। वर्तमान में इस महल का संरक्षण केंद्रीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा किया जा रहा है।
महाराजा गंगाधर राव के बाद रानी लक्ष्मीबाई रानी महल से जनता क ी समस्याएं हल करने लगी थीं। इस महल से किला और महालक्ष्मी मंदिर जाने के लिए कभी रास्ता था, जिसका वह उपयोग करती थीं।
मुकुंद महरोत्रा अध्यक्ष पुलिंद कला दीर्घा