{"_id":"689ce6960c61352f8201ba6c","slug":"do-not-leave-lalitpur-until-you-get-the-loan-lalitpur-news-c-131-ltp1020-140798-2025-08-14","type":"story","status":"publish","title_hn":"Lalitpur News: ललितपुर तब तक न छोड़ियो जब तक मिले उधार...","category":{"title":"City & states","title_hn":"शहर और राज्य","slug":"city-and-states"}}
Lalitpur News: ललितपुर तब तक न छोड़ियो जब तक मिले उधार...
विज्ञापन

विज्ञापन
पुलवारा (ललितपुर)। झांसी गले की फांसी, दतिया गले का हार, ललितपुर तब तक न छोड़ियो जब तक मिले उधार... इस संदेश के साथ वर्षों तक क्रांतिकारियों की मदद की जाती रही है। अंग्रेजों ने अपना मुख्यालय झांसी बनाया था, ऐसे में वहां क्रांतिकारियों को पकड़कर सजा दी जाती थी। वहीं, दतिया में क्रांतिकारी शरण लेते थे, साथ ही उनके खाने-पीने की व्यवस्था ललितपुर से की जाती थी। बानपुर के सरदार सिंह क्रांतिकारियों की मदद करते थे, उन्हें देखकर उनके पुत्र देवी सिंह स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े थे।
1910 में कस्बा बानपुर में जन्मे देवी सिंह परमार अपने पिता सरदार सिंह की क्रांतिकारियों की मदद को देख राष्ट्रप्रेम की भावना से भर गए। वह भी पिता के साथ आजादी के समर को और धार देने में जुट गए। उस समय अंग्रेजों द्वारा जनता पर किए जा रहे अत्याचार को देख उन्होंने अंतिम सांस तक गोरों से संघर्ष करने की जिद ठानी। क्रांतिकारियों के साथ गुप्त बैठकें कर लोगों में स्वतंत्रता की चिंगारी प्रज्वलित करने लगे। विदेशी वस्तुओं आदि का बहिष्कार और स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग के लिए लोगों को जागरूक करने लगे। गांधी के विचारों की पाती जनता में वितरित कर स्वतंत्रता आंदोलन के लिए जनसमूह तैयार किया।
1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान प्रदर्शन करते हुए महात्मा गांधी के साथ उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। 11 वर्ष छह माह की उन्हें सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई। इसके बाद देवी सिंह परमार ने 1944 में ललितपुर से बानपुर तक अपने कई साथियों के साथ तिरंगा यात्रा निकाली, जिसमें बृजनंदन किलेदार और अहमद खान पहलवान प्रमुख रूप से साथ रहे। स्वतंत्रता के बाद तत्कालीन जिला झांसी के जिला परिषद सदस्य रहकर उस समय की नेता सुशीला नैयर आदि नेताओं के साथ जनता की निस्वार्थ सेवा में लगे रहे। बेबाक व तेज तर्रार वक्ता के रूप में उनकी पहचान रही। अंतिम सांस तक जनता के हकों का प्रहरी रहते हुए 1979 में उनका देहावसान हो गया। (संवाद)

Trending Videos
1910 में कस्बा बानपुर में जन्मे देवी सिंह परमार अपने पिता सरदार सिंह की क्रांतिकारियों की मदद को देख राष्ट्रप्रेम की भावना से भर गए। वह भी पिता के साथ आजादी के समर को और धार देने में जुट गए। उस समय अंग्रेजों द्वारा जनता पर किए जा रहे अत्याचार को देख उन्होंने अंतिम सांस तक गोरों से संघर्ष करने की जिद ठानी। क्रांतिकारियों के साथ गुप्त बैठकें कर लोगों में स्वतंत्रता की चिंगारी प्रज्वलित करने लगे। विदेशी वस्तुओं आदि का बहिष्कार और स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग के लिए लोगों को जागरूक करने लगे। गांधी के विचारों की पाती जनता में वितरित कर स्वतंत्रता आंदोलन के लिए जनसमूह तैयार किया।
विज्ञापन
विज्ञापन
1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान प्रदर्शन करते हुए महात्मा गांधी के साथ उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। 11 वर्ष छह माह की उन्हें सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई। इसके बाद देवी सिंह परमार ने 1944 में ललितपुर से बानपुर तक अपने कई साथियों के साथ तिरंगा यात्रा निकाली, जिसमें बृजनंदन किलेदार और अहमद खान पहलवान प्रमुख रूप से साथ रहे। स्वतंत्रता के बाद तत्कालीन जिला झांसी के जिला परिषद सदस्य रहकर उस समय की नेता सुशीला नैयर आदि नेताओं के साथ जनता की निस्वार्थ सेवा में लगे रहे। बेबाक व तेज तर्रार वक्ता के रूप में उनकी पहचान रही। अंतिम सांस तक जनता के हकों का प्रहरी रहते हुए 1979 में उनका देहावसान हो गया। (संवाद)