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Lalitpur News: किलेदार परिवार की तीन पीढ़ियों ने जगाई थी आंदोलन की अलख
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ललितपुर। भारत छोड़ो आंदोलन में किलेदार परिवार का विशेष योगदान रहा है। इस परिवार की तीन पीढ़ियों ने अपने आप को स्वतंत्रता के आंदोलन में झोंक दिया। गांधी के आह्वान पर अंग्रेजी कपड़ों की होली भी जलाई थी।
शहर के मोहल्ला महावीरपुरा निवासी किलेदार परिवार के पिता व पुत्र की भारत छोड़ो आंदोलन में अहम भूमिका रही है। नंदकिशोर किलेदार व उनके पुत्र बृजनंदन किलेदार ने महात्मा गांधी के आह्वान पर घंटाघर में क्रांतिकारियों के साथ आंदोलन किया था। पुलिस ने लाठी चार्ज किया, जिसमें बृजनंदन किलेदार के हाथ में गहरी चोट आई। हाथ की अंगुली में इतना गहरा घाव हुआ कि बाद में उसे काटकर अलग करना पड़ा। उन्हें पुलिस ने जेल में बंद कर दिया। इसी बीच बृजनंदन किलेदार की पुत्री की शादी थी, अंग्रेज अफसरों ने पेरोल की सिफारिश की, लेकिन उन्होंने अंग्रेजी सरकार की मेहरबानी लेने से इन्कार कर दिया। इसके बाद रिश्तेदारों व शहरवासियों ने उनकी पुत्री की शादी धूमधाम से की।
इस परिवार का योगदान आजादी की लड़ाई में 1857 से प्रारंभ होकर 1947 तक रहा। 1857 में राजा मर्दन सिंह के साथ जवाहर जू किलेदार ने अंग्रेजों के दांत खट्टे किए थे। इसके बाद अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें गिरफ्तार कर उम्रकैद की सजा सुनाई थी। उनके पौत्र नंदकिशोर किलेदार व प्रपौत्र बृजनंदन किलेदार ने इस लड़ाई को आगे बढ़ाया। 1875 में जन्मे नंद किशोर किलेदार ने 1905 में कांग्रेस की स्थापना की, साथ ही उन्होंने अपने घर से कार्यालय का संचालन किया। उन्होंने 1920 में महात्मा गांधी के नेतृत्व में चले असहयोग आंदोलन में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। उन्हें 1930 में एक वर्ष, 1932 में छह माह के लिए अंग्रेजी हुकूमत ने जेल भेजा। 30 जनवरी 1975 में करीब 100 वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ।
नंदकिशोर किलेदार के यहां 1901 में जन्मे बृजनंदन किलेदार 1929 से आजादी के आंदोलन में कूद गए थे। 1930 में उन्हें सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने पर गिरफ्तार किया गया। इसके बाद उन्हें माफी मांगने पर छोड़ने का प्रस्ताव मजिस्ट्रेट ने रखा, लेकिन उन्होंने करारा जवाब दिया। 1932 में तिरंगा झंडा फहराने व 1942 में उन्हें भारत छोड़ो आंदोलन में जेल भेजा गया।
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घर के बाहर ही जलाई थी अंग्रेजी वस्त्रों की होली
घर के बाहर ही उन्होंने अंग्रेजी वस्त्रों की होली जलाई थी। उन्होंने सभी महंगे वस्त्र जला दिए थे, जिसमें कई राजाशाही वस्त्र भी शामिल थे।
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शहर के मोहल्ला महावीरपुरा निवासी किलेदार परिवार के पिता व पुत्र की भारत छोड़ो आंदोलन में अहम भूमिका रही है। नंदकिशोर किलेदार व उनके पुत्र बृजनंदन किलेदार ने महात्मा गांधी के आह्वान पर घंटाघर में क्रांतिकारियों के साथ आंदोलन किया था। पुलिस ने लाठी चार्ज किया, जिसमें बृजनंदन किलेदार के हाथ में गहरी चोट आई। हाथ की अंगुली में इतना गहरा घाव हुआ कि बाद में उसे काटकर अलग करना पड़ा। उन्हें पुलिस ने जेल में बंद कर दिया। इसी बीच बृजनंदन किलेदार की पुत्री की शादी थी, अंग्रेज अफसरों ने पेरोल की सिफारिश की, लेकिन उन्होंने अंग्रेजी सरकार की मेहरबानी लेने से इन्कार कर दिया। इसके बाद रिश्तेदारों व शहरवासियों ने उनकी पुत्री की शादी धूमधाम से की।
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इस परिवार का योगदान आजादी की लड़ाई में 1857 से प्रारंभ होकर 1947 तक रहा। 1857 में राजा मर्दन सिंह के साथ जवाहर जू किलेदार ने अंग्रेजों के दांत खट्टे किए थे। इसके बाद अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें गिरफ्तार कर उम्रकैद की सजा सुनाई थी। उनके पौत्र नंदकिशोर किलेदार व प्रपौत्र बृजनंदन किलेदार ने इस लड़ाई को आगे बढ़ाया। 1875 में जन्मे नंद किशोर किलेदार ने 1905 में कांग्रेस की स्थापना की, साथ ही उन्होंने अपने घर से कार्यालय का संचालन किया। उन्होंने 1920 में महात्मा गांधी के नेतृत्व में चले असहयोग आंदोलन में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। उन्हें 1930 में एक वर्ष, 1932 में छह माह के लिए अंग्रेजी हुकूमत ने जेल भेजा। 30 जनवरी 1975 में करीब 100 वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ।
नंदकिशोर किलेदार के यहां 1901 में जन्मे बृजनंदन किलेदार 1929 से आजादी के आंदोलन में कूद गए थे। 1930 में उन्हें सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने पर गिरफ्तार किया गया। इसके बाद उन्हें माफी मांगने पर छोड़ने का प्रस्ताव मजिस्ट्रेट ने रखा, लेकिन उन्होंने करारा जवाब दिया। 1932 में तिरंगा झंडा फहराने व 1942 में उन्हें भारत छोड़ो आंदोलन में जेल भेजा गया।
घर के बाहर ही जलाई थी अंग्रेजी वस्त्रों की होली
घर के बाहर ही उन्होंने अंग्रेजी वस्त्रों की होली जलाई थी। उन्होंने सभी महंगे वस्त्र जला दिए थे, जिसमें कई राजाशाही वस्त्र भी शामिल थे।