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कम उम्र, गहरी सोच: युवाओं के भीतर की अनकही दुनिया से रूबरू करा रहीं मेरठ के युवा लेखक वंश सोम की किताबें

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, मेरठ Published by: डिंपल सिरोही Updated Wed, 19 Nov 2025 12:22 PM IST
सार

मेरठ निवासी वंश सोम की उम्र कम है, मगर सोच और अभिव्यक्ति की परिपक्वता प्रभावित करती है। वंश बचपन से लिखने और मोटिवेशनल स्पीकिंग की ओर झुके हुए थे, और यही रुचि उन्हें बहुत जल्द साहित्य की दुनिया तक ले आई।वंश ने अब तक दो पुस्तकें लिखी हैं, और दोनों ही विषय युवाओं की वास्तविक दुनिया से निकले हुए हैं  यानी वे मुद्दे, जिनके बारे में बात तो बहुत होती है, पर समझ कम होती है।

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Meerut:Young age, deep thinking-Books by young Meerut author Vansh Som introduce us to the untold inner world
युवा लेखक वंश सोम - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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मेरठ के युवा लेखक वंश सोम की दोनों किताबें युवाओं की मानसिक यात्रा, सामाजिक दबाव, ओवरथिंकिंग और आत्म-मंथन पर आधारित हैं। तेजी से बदलते समय में, जहां सोशल मीडिया आवाजों को तेज बनाता है लेकिन गहन नहीं, वहां 20 वर्षीय वंश सोम की लेखनी एक ठहराव का एहसास कराती है। मेरठ के गायत्री हाइट्स निवासी वंश, महावीर यूनिवर्सिटी में बी.एससी (कृषि) के छात्र हैं। उम्र कम है, लेकिन सोच में जल्दबाजी नहीं-यह उनकी सबसे पहली पहचान है।

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वंश की लिखावट में सिर्फ शौक नहीं, अनुभवों की जमी हुई परतें दिखाई देती हैं। वे उन चीजों को शब्दों में बदलते हैं, जिन पर अक्सर लोग बात तो करते हैं, पर महसूस कर पाने की हिम्मत कम ही जुटा पाते हैं।

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पहली पुस्तक: 'The Voice of Vansh'
यह पुस्तक केवल भावनाओं की अभिव्यक्ति नहीं है। यह एक पीढ़ी की साझा बेचैनी, सवालों और खोज का दस्तावेज है। यह किताब पहचान बनाने की मुश्किलों, परिवार और समाज की अपेक्षाओं से दबे सपनों, LGBTQ समुदाय की उस सच्चाई की बात करती है जिसे अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है। यह किताब बात करती है उस चुप्पी की जिसे अधिकतर युवा व्यक्त नहीं कर पाते हैं। युवा लेखक वंश सोम इस किताब में एक उम्र की सच्चाई और इससे गुजर रहे युवाओं के मन की बात समाज के सामने रखती है, सवांद करती है और सवाल खड़े करती है।  

 

दूसरी पुस्तक: Overthinking: The Real Truth 
ओवरथिंकिंग अब सिर्फ एक शब्द नहीं बल्कि यह आज की पूरी पीढ़ी का मन का शोर है। दूसरी किताब में वंश ने भावनाओं को मनोवैज्ञानिक आधार के साथ जोड़ने की कोशिश की है।
उनकी भाषा सरल है, लेकिन विषय की गंभीरता कहीं भी हल्की दिखाई नहीं पड़ती। व्यक्ति का दिमाग किस तरह विचारों के घेरे में फंसता है, दिल और दिमाग के बीच कैसे संघर्ष बढ़ता है, ओवरथिंकिंग क्या है और कैसे एक मामूली सोच खयाल नहीं बल्कि भार बन जाती है।

ये किताब पाठक को एहसास कराती है कि तुम अकेले ऐसे नहीं हो जो इस एहसास से गुजर रहे हो बल्कि हम सभी इससे गुजर रहे हैं। किताब संवेदनशीलता, सजगता और ईमानदारी से अपनी बात रखती है। युवा लेखक की बात करें तो वंश इस किताब के माध्यम  से ये एहसास कराते हैं कि अनुभव सिर्फ उम्र से नहीं बल्कि देखने, सुनने और समाज की समस्याओं, बदलावों को नजदीक से महसूस करने पर आते हैं। इस किताब के माध्यम से वह उन युवाओं की आवाज बनते हैं जिनके सपनों को गंभीरता से नहीं लिया जाता, जिनकी संवेदनाएं ड्रामा कहकर टाल दी जाती हैं। ये किताब एक संदेश देती है कि इंतजार मत करो कलम उठाओ और उन्हें लिख डालो।

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