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Pilibhit News: जांच और प्रस्तावों में ही उलझा गोमती का पुनरुद्धार
संवाद न्यूज एजेंसी, पीलीभीत
Updated Sun, 21 Dec 2025 12:10 AM IST
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पीलीभीत। अपने उद्गम जिले में ही अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही आदि गंगा गोमती नदी का पुनरुद्धार बीते कई महीनों से जांच, सर्वे और प्रस्तावों तक ही सीमित रह गया है। प्रशासनिक दावों और सर्वे टीमों की आवाजाही के बावजूद नदी की बदहाली दूर नहीं हो सकी है। कई स्थानों पर गोमती में जलकुंभी और कचरे का अंबार है, जबकि अनेक हिस्सों में नाममात्र का ही पानी शेष रह गया है।
जनपद के माधोटांडा में ऐतिहासिक गोमती नदी का उद्गम स्थल स्थित है। कभी पूरे वेग से बहने वाली यह नदी लगभग 960 किलोमीटर का सफर तय कर गाजीपुर के पास गंगा में मिलती थी और राजधानी लखनऊ की पहचान बनी रही। चार दशक पहले तक गोमती अपने पूरे प्रवाह में थी, लेकिन समय के साथ इसका अस्तित्व लगातार सिमटता चला गया।
उद्गम स्थल पर स्थित तीन झीलों में 15 से अधिक प्राकृतिक जल स्रोत हैं, इनमें से वर्तमान में केवल दो-तीन ही सक्रिय हैं। इनसे भी बेहद कम पानी निकल रहा है, इससे नदी लगभग सूख चुकी है। जल स्रोतों के बंद होने और ठोस संरक्षण प्रयासों के अभाव में गोमती जनपद ही नहीं, बल्कि आसपास के जिलों में भी केवल कागजों तक सिमटती जा रही है।
पिछले कुछ महीनों में गोमती के पुनरुद्धार के लिए कई टीमों ने सर्वे और जांच की। लखनऊ समेत अन्य स्थानों से वैज्ञानिकों की टीमों ने नमूने भी एकत्र किए, लेकिन किसी ठोस निष्कर्ष तक नहीं पहुंचा जा सका। जिला प्रशासन ने प्रस्ताव बनाकर भेजने और सीडीओ स्तर से फाइल आगे बढ़ाने के दावे जरूर किए, मगर धरातल पर स्थिति जस की तस बनी हुई है।
गोमती के मार्ग में कब्जों की भरमार भी बड़ी समस्या है। जिले के 33 गांवों से होकर गुजरने वाली नदी कई स्थानों पर सिमटकर नाले जैसी रह गई है। कई गांवों की खतौनी में गोमती नदी का नाम तक दर्ज नहीं है। पूर्व में एसडीएम स्तर की जांच में फुलहर, नवदिया टोडरपुर, देवीपुर जैसे गांवों में नदी का राजस्व रिकॉर्ड न मिलने की पुष्टि हुई थी, लेकिन सुधार की प्रक्रिया अधूरी रह गई।
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जनपद के माधोटांडा में ऐतिहासिक गोमती नदी का उद्गम स्थल स्थित है। कभी पूरे वेग से बहने वाली यह नदी लगभग 960 किलोमीटर का सफर तय कर गाजीपुर के पास गंगा में मिलती थी और राजधानी लखनऊ की पहचान बनी रही। चार दशक पहले तक गोमती अपने पूरे प्रवाह में थी, लेकिन समय के साथ इसका अस्तित्व लगातार सिमटता चला गया।
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उद्गम स्थल पर स्थित तीन झीलों में 15 से अधिक प्राकृतिक जल स्रोत हैं, इनमें से वर्तमान में केवल दो-तीन ही सक्रिय हैं। इनसे भी बेहद कम पानी निकल रहा है, इससे नदी लगभग सूख चुकी है। जल स्रोतों के बंद होने और ठोस संरक्षण प्रयासों के अभाव में गोमती जनपद ही नहीं, बल्कि आसपास के जिलों में भी केवल कागजों तक सिमटती जा रही है।
पिछले कुछ महीनों में गोमती के पुनरुद्धार के लिए कई टीमों ने सर्वे और जांच की। लखनऊ समेत अन्य स्थानों से वैज्ञानिकों की टीमों ने नमूने भी एकत्र किए, लेकिन किसी ठोस निष्कर्ष तक नहीं पहुंचा जा सका। जिला प्रशासन ने प्रस्ताव बनाकर भेजने और सीडीओ स्तर से फाइल आगे बढ़ाने के दावे जरूर किए, मगर धरातल पर स्थिति जस की तस बनी हुई है।
गोमती के मार्ग में कब्जों की भरमार भी बड़ी समस्या है। जिले के 33 गांवों से होकर गुजरने वाली नदी कई स्थानों पर सिमटकर नाले जैसी रह गई है। कई गांवों की खतौनी में गोमती नदी का नाम तक दर्ज नहीं है। पूर्व में एसडीएम स्तर की जांच में फुलहर, नवदिया टोडरपुर, देवीपुर जैसे गांवों में नदी का राजस्व रिकॉर्ड न मिलने की पुष्टि हुई थी, लेकिन सुधार की प्रक्रिया अधूरी रह गई।
