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कलियुग में हरिनाम संकीर्तन से मोक्ष है: आचार्य धरणीधर
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संतकबीरनगर। मेंहदावल उत्तर पट्टी कस्बे में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के विश्राम दिवस कथा प्रवक्ता आचार्य धरणीधर ने परीक्षित मोक्ष का प्रसंग सुनाया। उन्होंने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण की उपासना से धर्मनीति को संबल मिलता है और मानव जीवन को सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा प्राप्त होती है।
आचार्य धरणीधर ने कहा कि जब व्यक्ति धर्म के प्रति सच्चे अनुराग से जुड़ता है, तो वह विपरीत मार्ग की पीड़ा से बचता है। उन्होंने परीक्षित मोक्ष प्रसंग का उल्लेख करते हुए कहा कि मनुष्य को यह समझना चाहिए कि सृष्टि में केवल भगवान ही जीव के मोक्ष दाता हैं। इस प्रसंग से यह सीख मिलती है कि संसार में धन, वैभव और ऐश्वर्य का अहंकार नहीं करना चाहिए। सच्चा सुख वही व्यक्ति प्राप्त करता है जो निश्छल भाव से परमात्मा का अनुसरण करता है। कथाव्यास ने आगे कहा कि भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण नीति और धर्मपालन के शाश्वत प्रेरक हैं। कलियुग में हरिनाम संकीर्तन और भगवान की कथा का सत्संग ही जीवन को कष्ट मुक्त बना सकता है। उन्होंने श्रीमद्भागवत कथा को जीवन में सुचरित्रता और परोपकार की भावना से जीने की प्रेरणा देने वाला आदर्श ग्रंथ बताया। सुदामा की अनन्य मित्रता की कथा सुनाई, जिसने श्रोताओं को भावविभोर कर दिया।
आचार्य धरणीधर ने वर्तमान समय की मित्रता पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि आज मित्रता स्वार्थ तक सीमित हो गई है। उन्होंने कृष्ण-सुदामा की मित्रता को आदर्श बताते हुए कहा कि सच्चा मित्र वह है जो बिना कहे मित्र की परेशानी समझे और मदद करें। इस अवसर पर लालजी जायसवाल, आचार्य पं. कमलापति मिश्र, जय सिंह, गौरीशंकर सोनी, सुरेन्द्र गुप्त आदि मौजूद रहे।
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आचार्य धरणीधर ने कहा कि जब व्यक्ति धर्म के प्रति सच्चे अनुराग से जुड़ता है, तो वह विपरीत मार्ग की पीड़ा से बचता है। उन्होंने परीक्षित मोक्ष प्रसंग का उल्लेख करते हुए कहा कि मनुष्य को यह समझना चाहिए कि सृष्टि में केवल भगवान ही जीव के मोक्ष दाता हैं। इस प्रसंग से यह सीख मिलती है कि संसार में धन, वैभव और ऐश्वर्य का अहंकार नहीं करना चाहिए। सच्चा सुख वही व्यक्ति प्राप्त करता है जो निश्छल भाव से परमात्मा का अनुसरण करता है। कथाव्यास ने आगे कहा कि भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण नीति और धर्मपालन के शाश्वत प्रेरक हैं। कलियुग में हरिनाम संकीर्तन और भगवान की कथा का सत्संग ही जीवन को कष्ट मुक्त बना सकता है। उन्होंने श्रीमद्भागवत कथा को जीवन में सुचरित्रता और परोपकार की भावना से जीने की प्रेरणा देने वाला आदर्श ग्रंथ बताया। सुदामा की अनन्य मित्रता की कथा सुनाई, जिसने श्रोताओं को भावविभोर कर दिया।
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आचार्य धरणीधर ने वर्तमान समय की मित्रता पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि आज मित्रता स्वार्थ तक सीमित हो गई है। उन्होंने कृष्ण-सुदामा की मित्रता को आदर्श बताते हुए कहा कि सच्चा मित्र वह है जो बिना कहे मित्र की परेशानी समझे और मदद करें। इस अवसर पर लालजी जायसवाल, आचार्य पं. कमलापति मिश्र, जय सिंह, गौरीशंकर सोनी, सुरेन्द्र गुप्त आदि मौजूद रहे।