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नाटी इमली का भरत मिलाप: 480 वर्षों से यदुकुल के कंधे पर हो रहा रघुकुल का मिलन, 5 टन वजनी होता है पुष्पक विमान
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, वाराणसी
Published by: उत्पल कांत
Updated Sun, 22 Oct 2023 03:14 PM IST
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सार
काशी के लक्खा मेलों में शुमार नाटी इमली के भरत मिलाप की कहानी 480 साल पहले मेघा और तुलसी के अनुष्ठान से आरंभ हुई। अस्ताचलगामी भगवान भास्कर भी इस दृश्य को निहारने के लिए अपने रथ के पहियों को थाम लेते हैं। श्र

नाटी इमली का भरत मिलाप।
- फोटो : फाइल

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विस्तार
संस्कृति और परंपराओं के शहर बनारस ने अपनी थाती को संजो कर रखा है। यही कारण है कि सात वार में नौ त्योहार मनाए जाते हैं। विजयादशमी के दूसरे दिन काशी ही नहीं पूरा देश राम और भरत के मिलन का साक्षी बनता है। काशी में 480 सालों से अनवरत भरत मिलाप की परंपरा चली आ रही है।
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काशी और काशी की जनता यदुकुल के कंधे पर रघुकुल के मिलन की साक्षी पिछले 480 सालों से बन रही है। नाटी इमली के भरत मिलाप की कहानी 480 साल पहले मेघा और तुलसी के अनुष्ठान से आरंभ हुई। पांच टन का वजनी पुष्पक विमान अपने माथे पर धरकर जब यादव बंधु प्रस्थान करते हैं तो पल भर के लिए वक्त ठहर सा जाता है।
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मैदान में तिल रखने को जगह नहीं होती
अस्ताचलगामी भगवान भास्कर भी इस दृश्य को निहारने के लिए अपने रथ के पहियों को थाम लेते हैं। श्रद्धा और आस्था के महामिलन का साक्षी बनने के लिए श्रद्धालुओं का ज्वार ऐसा उमड़ता है कि तिल रखने को जगह नहीं होती। चित्रकूट रामलीला समिति के व्यवस्थापक पं. मुकुंद उपाध्याय ने बताया कि मान्यता है कि 479 साल पहले रामभक्त मेघा भगत को प्रभु के सपने में हुए थे।
सपने में प्रभु के दर्शन के बाद ही रामलीला और भरत मिलाप का आयोजन किया जाने लगा। आज भी ऐसी मान्यता है कि कुछ पल के लिए प्रभु श्रीराम के दर्शन होते हैं। यही वजह है कि महज कुछ मिनट के भरत मिलाप को देखने के लिए हजारों की भीड़ यहां हर साल जुटती है।
यादव समाज निभाता है जिम्मेदारी

नाटी इमली का भरत मिलाप।
- फोटो : अमर उजाला
आदिलाटभैरव रामलीला समिति के विकास यादव ने बताया कि सफेद बनियार और धोती बांध सिर पर गमछे का मुरेठा कसकर यादव समाज के लोग पुष्पक विमान उठाते हैं। यादव बंधु जब रथ उठाने जाते हैं तो वे साफा पानी दे, आंखें में काजल लगाकर, घुटनों तक धोती पहन, जांघ तक खलीतेदार बंडी पहने हुए इसका हिस्सा बनते हैं।
तुलसीदास से जुड़ा है यादव बंधु का इतिहास

नाटी इमली का भरत मिलाप।
- फोटो : नाटी इमली का भरत मिलाप।
बनारस के यादव बंधुओं का इतिहास तुलसीदास के काल से जुड़ा हुआ है। तुलसीदास ने बनारस के गंगा घाट किनारे रह कर रामचरितमानस तो लिख दी, लेकिन उस दौर में श्रीरामचरितमानस जन-जन के बीच तक कैसे पहुंचे ये बड़ा सवाल था। लिहाजा प्रचार प्रसार करने का बीड़ा तुलसी के समकालीन गुरु भाई मेघाभगत ने उठाया। जाति के अहीर मेघाभगत विशेश्वरगंज स्थित फुटे हनुमान मंदिर के रहने वाले थे। सर्वप्रथम उन्होंने ही काशी में रामलीला मंचन की शुरुआत की। लाटभैरव और चित्रकूट की रामलीला तुलसी के दौर से ही चली आ रही है।
227 वर्षों से काशी राज परिवार भी है साक्षी

विश्व प्रसिद्ध नाटी इमली का भरत मिलाप
- फोटो : अमर उजाला
काशी राज परिवार भी इस भरत मिलाप का साक्षी बनता है। पिछले 227 सालों से काशी नरेश शाही अंदाज में इस लीला में शामिल होते रहे। पूर्व काशी नरेश महाराज उदित नारायण सिंह ने इसकी शुरुआत की थी। 1796 में वह पहली बार इस लीला में शामिल हुए थे। तब से उनकी पांच पीढ़ियां इस परंपरा का निर्वहन करती चली आ रही हैं।