काशी पहुंचे बाबा रामदेव: मोरारी बापू को किया प्रणाम, बोले- आप महान कथावाचक हैं; सुनी कथा
कथा में मोरारी बापू ने कहा कि अगर कोई बुद्ध पुरुष हमें अपनाता है, स्वीकार करता है, तो वह हमारा सिंदूर है। सिंदूर का ऐसा उपहार पाकर हम भी कबीरजी की तरह नित्य नूतनता का अनुभव कर सकते हैं। मैं नित्य प्रसन्न हूं, क्योंकि मेरे बुद्ध पुरुष ने मेरी मांग भरी है। योग गुरु रामदेव ने रविवार को मोरारी बापू से मुलाकात की।

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Morari Bapu in Varanasi: कथा वाचक मोरारी बापू ने कहा कि योग आवश्यक है लेकिन परमात्मा के प्रति प्रेम और परस्पर प्रेम उससे भी अधिक आवश्यक है। यदि प्रेम नहीं है तो योग-वियोग, ज्ञान-अज्ञान कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं है। हिंदू सनातन धर्म सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि यह सबका सम्मान करता है, सबका स्वीकार करता है। यह आकाश के समान विशाल है। उक्त बातें कथावाचक मोरारी बापू ने कथा में कहीं।

मोरारी बापू से मिलने के लिए रविवार योगगुरु बाबा रामदेव भी पहुंचे थे। बापू के चरणों में झुककर रामदेव ने उनसे आशीर्वाद लिया। रामदेव ने बापू को महान कथावाचक बताया। उन्होंने कहा कि बापू की आलोचना का मतलब नहीं समझ आया। कहा कि मैं काशी में किसी का उत्तर देने के लिए नहीं आया हूं। बस बापू से मिलना था, उनका हाल जानना चाहता था।
रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में मानस सिंदूर के आरंभ में मोरारी बापू ने विश्व योग दिवस पर विश्व को बधाई दी। कहा कि हर घर में एक योगी हो, प्रभु प्रेम का वियोगी हो, दूसरों के लिए सहयोगी हो और घर में कोई रोगी न हो। सिंदूर दर्शन में आगे बढ़ते हुए बापू ने कहा कि वनस्पति में भी सिंदूर का वृक्ष होता है।
दुल्हन की मांग में सिंदूर भरने की क्रिया आधिभौतिक होती है। सिंदूर बलिदान-समर्पण का प्रतीक है। जीवन भर किसी का हो जाना ही समर्पण है। शहीद होना भी एक सिंदूर है, शहादत अर्थात सिंदूर का केसरिया रंग। सिंदूर का एक और प्रकार है आधि दैविक।
शिव और पार्वती के बीच किया गया सिंदूर दान आधि दैविक है। तीसरे प्रकार का सिंदूर है आध्यात्मिक। भगवान राम माता जानकी की मांग में सिंदूर दान करते हैं, वह पुरुष द्वारा प्रकृति को दिया गया आध्यात्मिक सिंदूर है। सिंदूर नारी का शृंगार है, लेकिन पुरुषों को भी इसे सीखना होगा।
मोरारी बापू धर्म मर्यादा का पालन करें : शंकराचार्य
ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य ने शनिवार को कथावाचक मोरारी बापू के लिए धर्मदंड घोषित किया। उन्होंने कहा कि जब तक वे शास्त्र मर्यादा में स्थित नहीं हो जाते हैं, तब उनका चेहरा नहीं देखेंगे। उन्हें धर्म के मामले में अप्रमाण घोषित करते हुए सनातनी जनता को सूचित करते हैं कि उनके किसी भी आचरण और उपदेशों को प्रमाण न मानें और उसकी उपेक्षा करें।
भजन करना, कथा सुनना धर्म है, यह जिस शास्त्र ने बताया गया, वही शास्त्र सूतक में इसे न करने को कहता है। तो शास्त्र की आधी बात मानना और आधी बात न मानना अनुचित है। सवाल करने न करने का नहीं,सवाल शास्त्र आज्ञा को मानने का ही होता है। इसलिए सूतक में धर्मकार्य न करना ही धर्म है।