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SSVV: संस्कृत जैसी बोली जाती है वैसी लिखी भी जाती है, मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कही ये बात
अमर उजाला नेटवर्क, वाराणसी।
Published by: प्रगति चंद
Updated Thu, 09 Oct 2025 03:04 PM IST
सार
संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के 43वें दीक्षांत समारोह के दौरान केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि संस्कृत जैसी बोली जाती है वैसी लिखी भी जाती है।
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केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
संस्कृत मात्र एक भाषा नहीं, भारत के गौरवपूर्ण इतिहास को समेटने वाली अमूल्य निधि है जो समस्त भारतीयों के लिए ऊर्जा का स्रोत है। संस्कृत के ज्ञान के बिना भारत को जानना पूर्ण संभव नहीं है। संस्कृत विश्व की वैज्ञानिक भाषा है। इसकी खास बात यह है कि संस्कृत जैसी बोली जाती है वैसे ही लिखी भी जाती है। ये बातें केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहीं।
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वह बुधवार को संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के 43वें दीक्षांत समारोह को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे। केंद्रीय संस्कृति मंत्री ने विश्वविद्यालय के ऐतिहासिकता पर चर्चा करते हुए कहा कि इस विश्वविद्यालय में प्रारंभ काल से ही देश-विदेश के छात्र अध्ययन एवं अनुसंधान के लिए आते रहे हैं। आज भी कई विदेशी छात्र शोध कार्य में संलग्न हैं।
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भारत वर्ष में संस्कृत विधाओं के संरक्षण एवं प्रचार-प्रसार के लिए स्थापित यह प्राचीनतम शिक्षा का केंद्र है। यह विश्वविद्यालय ज्ञान का केंद्र ही नहीं, भारतीय संस्कृति का दर्पण, दर्शन, भाषा और परंपरा का संरक्षण एवं संवर्धन कर महान ध्येय लेकर अपने साथ चलने वाला एक ऐसा संस्थान है जहां ज्ञान-विज्ञान की परंपरा आज भी जीवित है। भारतीय मनीषियों के साथ-साथ पश्चिम के विद्वानों ने भी यहां सारस्वत साधना की है। इसमें टीएच ग्रिफिथ, जे एम वेलेंटाइन, वेनिस थिबो ने संस्कृत का अध्ययन किया।
विश्वविद्यालय के सरस्वती भवन में पांडुलिपियों के संरक्षण और छायांकन का कार्य गतिमान है। इस ज्ञान को डिजिटल के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाया जाएगा। टॉकिंग कंप्यूटर के लिए सबसे उपयुक्त भाषा देवभाषा संस्कृत ही है। भारत में संस्कृत सामान्य बोलचाल की भाषा थी और धीरे-धीरे कालांतर में कर्मकांड तक ही सीमित रह गई थी लेकिन वर्तमान में संस्कृत भाषा का पुनरुत्थान हो रहा है। छात्र व छात्राओं को बधाई देते हुए कहा कि यह व्यैक्तिक, शैक्षणिक उपलब्धियों का उत्सव नहीं बल्कि यह भारत की गौरवशाली बौद्धिक परंपरा को समर्पित महान संस्था की विरासत का भी उत्सव है।