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जरा हटके होती है बंगीय समाज की पूजा: दिवाली पर पूरी रात पूजी गईं मां कालरात्रि, कोहड़े की दी गई बलि
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, वाराणसी
Published by: किरन रौतेला
Updated Tue, 14 Nov 2023 01:44 PM IST
सार
दिवाली पर बंगीय समाज में काली पूजा विशेष होती है। इनके घरों के अलावा पूजा पंडालों में भी विधिवत पूजा होती है। बंगीय समाज के पूजा पंडालों में मां की प्रतिमाएं स्थापित कर रात तक मंत्रों की गूंज होती है। मां को विविध नैवेद्य के साथ कोहड़े की बलि दी गई। आकर्षक सजावट की गई थी।
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दक्षिणेश्वरी काली मां का हुआ श्रृंगार
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
दिवाली पर घरों में मां लक्ष्मी और श्री गणेश जी की पूजा हुई तो वहीं मां काली की कालरात्रि स्वरूप में पूरी रात पूजा हुई। बंगीय समाज के पूजा पंडालों में मां की प्रतिमाएं स्थापित कर रात तक मंत्रों की गूंज होती है। मां को विविध नैवेद्य के साथ कोहड़े की बलि दी गई। आकर्षक सजावट की गई थी।
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दिवाली पर बंगीय समाज में काली पूजा विशेष होती है। इनके घरों के अलावा पूजा पंडालों में भी विधिवत पूजा होती है। बंगाली टोला में वाराणसी दुर्गोत्सव सम्मिलनी, काशी दुर्गोत्सव समिति, नवसंघ, वाणी संघ, कुंज विहार, सिद्धि माता कालीबाड़ी, शारदोत्सव संघ, मित्रो बाड़ी चौखंभा, दारानगर, डीएलडब्ल्यू के श्यामा नगर, लंका, रामकृष्ण मिशन, विशुद्धानंद आश्रम लहुराबीर, कमच्छा, खोजवां, रथयात्रा, चौकीघाट आदि स्थानों पर पूजा सजी पूजा पंड़ालों में श्री शव शिवा काली मंदिर, तारा मंदिर, पांडेयपुर काली मंदिर में भी विधिवत पूजा हुई। लोग देर रात तक दर्शन पूजन के लिए जुटे रहे। शहर में 60 से अधिक स्थानों पर मूर्ति स्थापित कर पूजा हुई। श्यामा प्रसाद भट्टाचार्या ने बताया कि मां की रात पूजा शाम सात बजे से ही शुरू हो जाती है। मगर विशेष पूजा नौ बजे से भोर तक चलेगा। मां को गंगाजल, नारियल जल, घी सहित सात तरह के नैवेद्य से स्नान कराकर पूजा हुई। फल, मिठाई, मछली व पकवान बनाकर मां की पूजा की गई।
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बंगाल के पुरोहितों ने कराई पूजा
देवनाथपुरा में स्थित रानी भवानी तारा मंदिर एवं श्री शवशिवा काली मंदिर में दो साल पहले से पूजा होती है। 1752 में स्थापित रानी भवानी तारा मंदिर में बंगाल से पुरोहित पूजा करवाए। मंदिर के प्रबंधक श्यामा प्रसाद कुंडू ने बताया कि इस मंदिर में मां काली के साथ छह और विग्रह मां दुर्गा, विशालाक्षी, राधा कृष्ण, ललिता, शिव जी एवं तारा की पूजा हुई है। 1789 में स्थापित अष्टधातु की शिव शिवा काली जी की विधिवत पूजा हुई।