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Pithoragarh News: औषधीय पौधों की खेती से लहलहाएगी चौदास घाटी
संवाद न्यूज एजेंसी, पिथौरागढ़
Updated Sat, 06 Dec 2025 10:48 PM IST
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धारचूला के चौदास घाटी में किसानों के साथ वैज्ञानिक। स्रोत: ग्रामीण
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पिथौरागढ़ । सीमांत क्षेत्र धारचूला की चौदास घाटी शीघ्र ही विभिन्न औषधीय पौधों की खेती से लहलाएगी। इसके लिए गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान कोसी कटारमल अल्मोड़ा के जैव विविधता संरक्षण एवं प्रबंधन केंद्र की ओर से क्षेत्र के किसानों के लिए दो दिनी कार्यशाला का आयोजन किया गया।
डाॅ. अमित बहुखंडी ने किसानों को विगत वर्षों में क्षेत्र में की गई विभिन्न औषधीय पादपों वन हल्दी, सम्यो, कूट, जम्बू आदि के कृषिकरण की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि संस्थान निदेशक डाॅ. आईडी भट्ट के निर्देशन में वर्ष 2018 से ही चौदास घाटी के कृषकों को औषधीय पादपों के कृषिकरण के लिए जोड़ा गया है। साथ ही जैविक कृषि को बढ़ावा देने एवं बाजारीकरण के लिए क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया में सम्यो, वन हल्दी का पंजीकरण कराया गया है। उन्होंने बताया कि वर्तमान में अदिति ऑर्गेनिक प्राइवेट लिमिटेड बेंगलुरु के वरिष्ठ निरीक्षक नयन ज्योति बोराह घाटी में सम्यो पौधों को उगा रहे हैं।
जैविक प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए उनके उत्पादों का निरीक्षण और दस्तावेजीकरण भी किया गया। डाॅ. बसंत सिंह ने कहा कि औषधीय पादपों की मांग देश-विदेश लगातार बढ़ रही है। इसकी खपत पूरी करने के लिए कृषि एक मुख्य विकल्प के रूप में उभर रहा है। मुकेश सिंह मेर ने बताया कि नारायण आश्रम में स्थापित नर्सरी में विभिन्न पौधों को तैयार किया जा रहा है। कार्यशाला में वरदान सेवा समिति के प्रतिनिधि लक्ष्मण मर्तोलिया, उमेद प्रसाद वर्मा, सोसा की प्रधान सुरेखा देवी, सुरेंद्र सिंह, बहादुर सिंह, ममता, भागीरथी दीवान सिंह समेत 80 किसानों ने प्रतिभाग किया।
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गांवों से पलायन पर लगेगा अंकुश
हिमालयी पर्यावरण संस्थान कोसी कटारमल के वरिष्ठ वैज्ञानिक डाॅ. केएस कनवाल ने बताया कि डीबीटी, आईसीएआर नई दिल्ली की ओर से पोषित परियोजनाओं को चौदास, दारमा, व्यास और बागेश्वर के विभिन्न गांवों में संचालित किया जा रहा है। बताया कि बंजर भूमि में जम्बू, कुटकी, वन हल्दी, कूट, रोजमेरी आदि का वृहद कृषिकरण किया जाना है। इसके लिए स्थानीय समुदाय की भागीदारी सुनिश्चित की जा रही है। संस्थान किसानों को बीज और तकनीकी ज्ञान दे रहा है। इससे भविष्य में किसानों की आर्थिकी में सुधार होगा। साथ ही गांवों से होने वाले पलायन पर भी अंकुश लगेगा।
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डाॅ. अमित बहुखंडी ने किसानों को विगत वर्षों में क्षेत्र में की गई विभिन्न औषधीय पादपों वन हल्दी, सम्यो, कूट, जम्बू आदि के कृषिकरण की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि संस्थान निदेशक डाॅ. आईडी भट्ट के निर्देशन में वर्ष 2018 से ही चौदास घाटी के कृषकों को औषधीय पादपों के कृषिकरण के लिए जोड़ा गया है। साथ ही जैविक कृषि को बढ़ावा देने एवं बाजारीकरण के लिए क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया में सम्यो, वन हल्दी का पंजीकरण कराया गया है। उन्होंने बताया कि वर्तमान में अदिति ऑर्गेनिक प्राइवेट लिमिटेड बेंगलुरु के वरिष्ठ निरीक्षक नयन ज्योति बोराह घाटी में सम्यो पौधों को उगा रहे हैं।
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जैविक प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए उनके उत्पादों का निरीक्षण और दस्तावेजीकरण भी किया गया। डाॅ. बसंत सिंह ने कहा कि औषधीय पादपों की मांग देश-विदेश लगातार बढ़ रही है। इसकी खपत पूरी करने के लिए कृषि एक मुख्य विकल्प के रूप में उभर रहा है। मुकेश सिंह मेर ने बताया कि नारायण आश्रम में स्थापित नर्सरी में विभिन्न पौधों को तैयार किया जा रहा है। कार्यशाला में वरदान सेवा समिति के प्रतिनिधि लक्ष्मण मर्तोलिया, उमेद प्रसाद वर्मा, सोसा की प्रधान सुरेखा देवी, सुरेंद्र सिंह, बहादुर सिंह, ममता, भागीरथी दीवान सिंह समेत 80 किसानों ने प्रतिभाग किया।
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गांवों से पलायन पर लगेगा अंकुश
हिमालयी पर्यावरण संस्थान कोसी कटारमल के वरिष्ठ वैज्ञानिक डाॅ. केएस कनवाल ने बताया कि डीबीटी, आईसीएआर नई दिल्ली की ओर से पोषित परियोजनाओं को चौदास, दारमा, व्यास और बागेश्वर के विभिन्न गांवों में संचालित किया जा रहा है। बताया कि बंजर भूमि में जम्बू, कुटकी, वन हल्दी, कूट, रोजमेरी आदि का वृहद कृषिकरण किया जाना है। इसके लिए स्थानीय समुदाय की भागीदारी सुनिश्चित की जा रही है। संस्थान किसानों को बीज और तकनीकी ज्ञान दे रहा है। इससे भविष्य में किसानों की आर्थिकी में सुधार होगा। साथ ही गांवों से होने वाले पलायन पर भी अंकुश लगेगा।

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