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Uttarakhand: राज कौर को बना दिया अलाउद्दीन, 1988 की मतदाता सूची में की हेराफेरी; सीएम के निर्देश पर जांच शुरू

दीप बेलवाल Published by: हीरा मेहरा Updated Fri, 28 Nov 2025 12:25 PM IST
सार

ऊधमसिंह नगर जिले में सरकारी दस्तावेजों में छेड़छाड़ करके एक विशेष समुदाय के लोगों के फर्जी जाति प्रमाण पत्र बनाने का एक बड़ा रैकेट पकड़ा गया है। इसके तहत मूल नाम को बदलकर नया नाम डाल दिया गया और उसके आधार पर जाति प्रमाण पत्र जारी कर दिए गए।

 

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Raj Kaur was made Alauddin in rudrapur
सांकेतिक तस्वीर।
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विस्तार
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ऊधमसिंह नगर जिले में सरकारी दस्तावेज में नाम बदलवाकर विशेष समुदाय के लोगों के फर्जी जाति प्रमाणपत्र बनाने के रैकेट का खुलासा हुआ है। गदरपुर में वर्ष 1988 की वोटर लिस्ट में बाकायदा छेड़छाड़ कर राजकौर को अलाउद्दीन बना दिया गया। फिर उसी बदली हुई सूची के आधार पर जाति प्रमाणपत्र भी जारी कर दिया गया। इसी तरह जाति प्रमाणपत्र मे हेरफेर के चार और मामले जांच के दायरे में हैं।

यूएस नगर जिले के अलग-अलग हिस्सों में बाहरी राज्यों से आए विशेष समुदाय के कई लोगों ने इसी तरह फर्जी दस्तावेज बनवाकर अपनी पहचान बदल डाली है। अब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देश पर जिले में पिछले पांच साल में बने सभी स्थायी व जाति प्रमाणपत्रों की व्यापक जांच शुरू हुई है। जिले के सातों ब्लॉकों में एसडीएम स्तर पर दस्तावेजों का भौतिक सत्यापन चल रहा है। इस बीच गदरपुर में नया खुलासा हुआ है। वर्ष 1988 की वोटर लिस्ट में नाम काटकर नया नाम डाल दिया गया था। अधिकारी स्तर पर इसका सत्यापन नहीं हुआ। ऐसे सभी मामलों की जांच कराने का प्रशासन दावा कर रहा है।

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क्या हैं जाति प्रमाणपत्र बनाने के मानक
नियम साफ कहते हैं कि उत्तराखंड में जाति प्रमाणपत्र उन्हीं का बन सकता है जो राज्य गठन से पंद्रह साल पहले यहां निवास कर रहा हो। यानी 1985 के दस्तावेज को ही आधार माना जाता है। गदरपुर में 1988 की छेड़छाड़ वाली लिस्ट को आधार बनाकर प्रमाणपत्र जारी कर दिए गए। इससे साफ है कि नोटिस से लेकर जांच तक की प्रक्रिया में भारी अनियमितता हुई है।

पटवारी से लेकर तहसीलदार तक की भूमिका संदिग्ध
पटवारी से लेकर तहसीलदार तक पूरे सिस्टम की भूमिका अब संदेह के दायरे में है। जाति प्रमाणपत्र पर अंतिम मुहर तहसीलदार की होती है। उससे पहले पटवारी जांच करता है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि फिर राजकौर का नाम अलाउद्दीन बन जाने पर किसी की नजर कैसे नहीं गई। यह उस समय की लापरवाह कार्यशैली का खुला सबूत है जब आज जैसी सीएससी सेंटरों की भरमार नहीं थी।

सरकारी योजनाओं का लिया लाभ
फर्जी प्रमाणपत्र बनवाने वालों ने जिले की सरकारी योजनाओं का भी खुलकर लाभ उठाया है। जांच की परतें खुलते ही सामने आया कि कई लोग पीएम आवास जैसी सुविधाएं भी ले चुके हैं। इससे न सिर्फ सरकारी राजस्व का नुकसान हुआ, बल्कि वास्तविक पात्र लोग लाभ से वंचित रहे।

पांच साल में बने 19620 स्थायी व 8400 जाति प्रमाणपत्र
गदरपुर तहसील में पिछले पांच साल में 19,620 स्थायी निवासी प्रमाणपत्र और 8,400 जाति प्रमाणपत्र जारी हुए। इनमें से 400 दस्तावेज जांचे जा चुके हैं, जिनमें नौ स्थायी और चार जाति प्रमाणपत्र संदिग्ध मिले। इन सभी को जिला स्क्रूटिनी कमेटी के पास निरस्तीकरण की संस्तुति भेज दी गई है।

 

गदरपुर तहसील में पिछले पांच साल में बने जाति व स्थाई प्रमाणपत्रों की जांच शुरू हो गई है। जांच में कुछ मामले संदिग्ध मिले हैं। इन्हें निरस्त करने के लिए स्क्रूटिनी कमेटी को संस्तुति कर दी गई है। दस्तावेजों की जांच आगे भी जारी रहेगी।
-ऋचा सिंह, एसडीएम गदरपुर

डीएम की अध्यक्षता में बृहस्पतिवार को भी फर्जी दस्तावेजों की जांच के लिए बैठक हुई है। उन्होंने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि हर हफ्ते तहसीलों से जांच रिपोर्ट आए। कुटरचित तरीकों से बने दस्तावेजों को निरस्त कर अभियुक्तों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाए। जांच में गड़बड़ी सामने आने लगी है। -पंकज उपाध्याय, एडीएम

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