{"_id":"693b87ff04dc75f56506b90d","slug":"video-the-play-khidde-rehan-gulab-was-staged-in-chandigarh-2025-12-12","type":"video","status":"publish","title_hn":"चंडीगढ़ में नाटक खिडदे रहण गुलाब का हुआ मंचन","category":{"title":"City & states","title_hn":"शहर और राज्य","slug":"city-and-states"}}
सेक्टर 16 के पंजाब कला भवन में वीरवार को नाटक खिड़दे रहण गुलाब (खिलते रहें गुलाब) का मंचन हुआ। यह नाटक 22वें गुरशरण सिंह नाट्य उत्सव के पांचवें और अंतिम दिन हुआ। सुचेतक रंगमंच मोहाली ने अनीता शब्दीश के निर्देशन में किया। एकल नाटक में अनीता शब्दीश ने अभिनय किया। यह नाटक गदर पार्टी की नायिका गुलाब कौर की जीवन कहानी है। जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। सौ वर्ष पहले उनका निधन हो गया था। शताब्दी वर्ष में वे लौटकर अपनी कहानी स्वयं सुना रही हैं।
गुलाब कौर अपने पति मान सिंह के साथ अमेरिका जाने के लिए मनीला गई थीं, लेकिन नई परिस्थितियों के कारण अमेरिका जाने की अनुमति मिलने में तीन साल लग गए। इसी दौरान अमेरिका में ग़दर पार्टी की स्थापना हुई और मनीला में भी उसकी एक शाखा बन गई। उसका अखबार गदर भी वहां प्रकाशित होने लगा। उस अखबार की जोशीली कविताओं से गुलाब कौर बहुत प्रभावित हुईं। जब गदर पार्टी ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह के लिए देश जाने का फैसला किया, तो मनीला के गदरियों ने भी गुरुघर में अपना नाम दर्ज कराया। गुलाब कौर और उनके पति मान सिंह का नाम भी इसमें शामिल था। जब अमेरिका से जहाज मनीला बंदरगाह पहुंचा, तो मान सिंह ने देश लौटने से इनकार कर दिया। इन परिस्थितियों में बीबी गुलाब कौर ने गदर पार्टी के नायकों के साथ आने का फैसला किया। देश आने के बाद उन्होंने पार्टी की गुप्त गतिविधियों में अग्रणी भूमिका निभाई।
यह नाटक जिसमें पति मान सिंह को छोड़ने के साहस और दर्द दोनों को दर्शाया गया है। अनीता शब्दिश द्वारा मंच पर प्रस्तुत किया जा रहा था और दर्शकों के दिलों और दिमागों को झकझोर रहा था। गुलाब कौर विमान में अकेली महिला थीं, जिन्होंने पुलिस को धोखा देने के लिए जीवन सिंह को अपना पति बताया था। देश के शहरों में पीछे रह गए लोगों को किराए पर घर नहीं मिल रहे थे। यहां भी गुलाब कौर ने अमृतसर और लाहौर में विभिन्न गदरों की पत्नियों का रूप धारण किया। जब गुप्त स्थानों पर बैठकें होती थीं, तो वह पुलिस जासूसों पर नजर रखने के लिए बाहर चरखा चलाती बैठ जाती थीं।
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