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रायगढ़ में कैलाश खेर बोले-संगीत भारत के रग-रग में बसा, यहां भीक्षा मांगने वाला भी गाता है गाना
छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिला मुख्यालय में आयोजित 40वें चक्रधर समारोह के समापन समारोह में रायगढ़ पहुंचे पद्मश्री कैलाश खेर ने आज दोपहर होटल ट्रीनिटी में आयोजित प्रेस वार्ता में पत्रकारों से रूबरू हुए। उन्होंने कहा कि जो जगता है वहीं जगाता है और जुडता है वहीं जोडता है। आप अगर प्रकाशित हो जाएं तो आप अन्यों को प्रकाशित करें। कल का शो बहुतf प्यारा रहा, यहां चक्रधर समारोह में आना ही बहुत गजब रहा।शास्त्रीय संगीत के योगदान के बारे में उन्होंने कहा कि शास्त्रीय संगीत से पहले गांवों, गली मोहल्लों में लोक संगीत होता है, जो हमारी असली पहचान है। वहीं से शास्त्रीय संगीत भी निकला है। पढ़े लिखे लोगों को शास्त्रीय संगीत पसंद आता है और कम पढ़े लिखे लोगों को फोक संगीत ही पसंद आता है। संगीत भारत के रग रग में बसा है। यहां तो भीक्षा मांगने वाला भी गाना गाकर भीक्षा मांगता है।चक्रधर समारोह जैसे बड़े आयोजन सरकारों को लगातार करते रहना चाहिए जिसके कारण कलाकारों को आगे बढ़ने के लिये मंच मिले सके, इस सवाल पर उन्होंने कहा कि सरकार बहुत कुछ कर रही है, सरकार बड़े काम कर रही है लेकिन सरोकार जिन्हें जनता कहा जाता है, अब उनको भी खड़ा होना पड़ेगा। सरकार और सरोकार साथ में अगर जुड़ जायें फिर देखो चमत्कार। ये समय है हम सब को जो जहां है, वहीं से सभी को अपने कर्तव्य को पूर्ण करने का लक्ष्य लेकर सोंचे मुझे भी अपने देश को संवारना है। हमारी संस्कृति को बचाने के लिये परंपराओं का निर्वहन करते रहना चाहिए। हमारे त्यौहारों को बचाना, हमारी परंपराओं को बचाना, बड़ो का आदर करने की, जिस तरह हम त्यौहार मनाते हैं, बड़ो का पैर छुते हैं, बड़ो की पूजा करते हैं। ये सब को जीवित रखना हमारा कर्तव्य है। सरकार अपना काम कर रही है लेकिन जब तक सरोकार साथ नही जुडेगी सरकार अकेली कुछ नही कर पायेगी। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि नई जनरेशन को हम ही कान्वेंट की तरफ ढकेलते हैं, भले ही हम कम पढ़े लिखें हों लेकिन हम नई पीढ़ी को कान्वेंट में ढकेल रहे। वो अंगे्रजी के कई शब्द सीख रहे है जिसमें बडो का पैर नही छूना भी शामिल है। ऐसे में बड़ो बुजुर्गो को भी सम्हलने की जरूरत है। नवजवानों को हमारे बुजुर्ग ही बिगाड रहे। भारत में तो पहले कान्वेंट थे ही नही, इससे पहले अपनी ही परंपरा, अपना ही गुरूकुल, पैर छुने की प्रथाएं, बड़ो का सम्मान, माता-पिता को अपने पास नही रखना वृद्धाआश्रम भेजना, जबकि पहले हमारे यहां वृद्धाआश्रम थे ही नही आश्रम हुआ करते थे। रियलटी शो में जाने वाले कलाकारों के गायब हो जाने सवाल पर उन्होंने कहा कि किसी भी कलाकारों को पकड़कर कोई नही ले जाता। खुद जाते हैं रियलटी शो में लाइन में लगकर, सब का अपना भविष्य है। कलाकारों को मंच मिलने के बाद आगे का सफर उन्हें खुद अपनी मेहनत के दम पर करनी पडती है। टीवी देखने वालों का लगता है कि ये शख्स यहां तक आ गया तो इसे टाप पर भी जाना चाहिए जबकि और भी बहुत लोग इसमें रहते हैं। कम उम्र में घर छोड़ने और खट्ठा, मीठा, ठंडा पीना छोडने के सवाल पर उन्होंने कहा कि मैने ये सब छोड दिया है। उन्होंने घर छोडते समय अपनी मां के द्वारा कही बात बताते हुए कहा कि मां ने कहा कि तुझे तो गाजर का हलवा बहुत पसंद है, कलाकंद पसंद है, बहुत शौक से ये सब खाता था अब कहां से ये सब मिलेगा, तब उन्होंने अपनी मां से कहा था आज के बाद मै मीठा ही नही खाउंगा। खट्ठा खाना हमारी तासीर ही नही है शरीर के लिये, और ठंडा हम बचपन से ही नही लेते। यही कारण है कि आज हम फूर्तिले हैं। रायगढ़ आने से पहले मै कनाडा, अमेरिका, कलकत्ता में शो करके मुंबई पहुंचा, उसके बाद झारसुगड़ा के बाद रायगढ़ पहुंचा हंू। ऐसा ही शरीर इतना सफर झेल सकता है जो खट्ठा ना खाये, ठंडा ना पीये और मीठा ना खाये। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि हम पिछले दस साल से वह कर रहे जो अब तक नही हुआ। कभी गायक ने गायक लाॅच नही किया भारत में, हम अपने जन्मदिवस पर पिछले दस साल से नये गायको का हाथ थामकर उन्हें मंच देते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि सफलता की पहली सीढी ही असफलता होती है। कोई भी मनुष्य पैदा होते ही सफल नही होता, आपको एक प्रक्रिया से होकर गुजना पड़ता है।
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