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सीपी राधाकृष्णन आज लेंगे उपराष्ट्रपति पद की शपथ
वीडियो डेस्क अमर उजाला डॉट कॉम Published by: आदर्श Updated Fri, 12 Sep 2025 08:57 AM IST
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देश शुक्रवार को एक ऐतिहासिक क्षण का साक्षी बनने जा रहा है। सुबह 10 बजे राष्ट्रपति भवन के दरबार हॉल में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू 67 वर्षीय सीपी राधाकृष्णन को देश के 17वें उपराष्ट्रपति के रूप में शपथ दिलाएंगी। भाजपा और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के वरिष्ठ नेता राधाकृष्णन ने हाल ही में हुए उपराष्ट्रपति चुनाव में इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार, पूर्व जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी को 152 मतों के अंतर से हराया था।
यह चुनाव ऐसे वक्त में हुआ जब मौजूदा उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अचानक स्वास्थ्य कारणों का हवाला देकर इस्तीफा दे दिया था। उनका कार्यकाल अभी दो साल बाकी था, लेकिन इस्तीफे के चलते 9 सितंबर को मध्यावधि चुनाव कराना पड़ा। इस चुनाव ने न केवल सत्ता पक्ष बल्कि विपक्ष की ताकत और रणनीति की भी परीक्षा ली। अंततः राजग उम्मीदवार राधाकृष्णन भारी मतों से विजयी रहे।
उपराष्ट्रपति चुने जाने के बाद राधाकृष्णन ने महाराष्ट्र के राज्यपाल पद से इस्तीफा दे दिया। गुरुवार को राष्ट्रपति भवन की ओर से जारी बयान में यह पुष्टि की गई। राष्ट्रपति मुर्मू ने गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत को महाराष्ट्र का अतिरिक्त प्रभार सौंपा है। अब देवव्रत दोनों राज्यों की जिम्मेदारी संभालेंगे।
सीपी राधाकृष्णन का राजनीतिक सफर साधारण से असाधारण बनने की मिसाल है। उनकी यात्रा की शुरुआत छात्र आंदोलनों से हुई थी। बाद में वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े और सक्रिय राजनीति में कदम रखा। धीरे-धीरे वे भाजपा के संगठन में एक मजबूत स्तंभ बनकर उभरे। 2004 से 2007 तक वे तमिलनाडु भाजपा के अध्यक्ष रहे। इसी दौरान उन्होंने 93 दिनों में 19,000 किलोमीटर लंबी रथ यात्रा की। इस यात्रा का उद्देश्य था – देश की नदियों को जोड़ना, आतंकवाद उन्मूलन, समान नागरिक संहिता लागू करना, अस्पृश्यता निवारण और मादक पदार्थों के खतरों से निपटना।
उनकी छवि एक विनम्र और सुलभ नेता की रही है। यही वजह है कि समर्थक उन्हें प्यार से “तमिलनाडु का मोदी” कहकर पुकारते हैं।
राधाकृष्णन संगठन और प्रशासन दोनों में मजबूत पकड़ रखने वाले नेता माने जाते हैं। 2020 से 2022 तक वे केरल भाजपा के प्रभारी रहे। उन्हें दक्षिण भारत में भाजपा की पकड़ मजबूत करने का श्रेय भी दिया जाता है। उपराष्ट्रपति पद पर पहुंचने से पहले वे महाराष्ट्र और झारखंड के राज्यपाल रह चुके हैं। झारखंड के राज्यपाल रहते उन्होंने तेलंगाना और पुडुचेरी का अतिरिक्त कार्यभार भी संभाला।
राधाकृष्णन ओबीसी समुदाय के कोंगु वेल्लार (गाउंडर) से आते हैं। उनकी शादी सुमति से हुई है और उनके एक बेटा व एक बेटी हैं। यह सामाजिक पृष्ठभूमि उन्हें जमीनी स्तर से जोड़ती है और यही कारण है कि उन्हें जननेता की छवि मिली।
राधाकृष्णन ने दो बार लोकसभा का चुनाव जीता। 1998 और 1999 में कोयंबटूर से वे सांसद बने। हालांकि, 2004, 2014 और 2019 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। सांसद रहते हुए वे संसदीय स्थायी समिति (कपड़ा मंत्रालय) के अध्यक्ष रहे। साथ ही वे स्टॉक एक्सचेंज घोटाले की जांच करने वाली विशेष संसदीय समिति के भी सदस्य रहे।
2004 में उन्होंने संसदीय प्रतिनिधिमंडल के हिस्से के रूप में संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित किया। यही नहीं, वे ताइवान जाने वाले पहले भारतीय संसदीय प्रतिनिधिमंडल के सदस्य भी रहे। 2016 में उन्हें कोच्चि स्थित कॉयर बोर्ड का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। उनके नेतृत्व में भारत से नारियल रेशे का निर्यात रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गया।
राधाकृष्णन का पूरा राजनीतिक जीवन दक्षिण भारत, खासकर तमिलनाडु से जुड़ा रहा है। 1974 में वे भारतीय जनसंघ की राज्य कार्यकारिणी समिति के सदस्य बने और 1996 में भाजपा के सचिव नियुक्त हुए। धीरे-धीरे वे भाजपा की राष्ट्रीय राजनीति में अपनी छाप छोड़ते गए।
उनकी सक्रियता, संगठन क्षमता और प्रशासनिक अनुभव ने उन्हें उपराष्ट्रपति पद तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई। आज जब वे शपथ लेंगे, तो यह केवल एक व्यक्ति की सफलता नहीं बल्कि उस यात्रा की कहानी होगी जो छात्र आंदोलनों से शुरू होकर संयुक्त राष्ट्र महासभा तक और अब उपराष्ट्रपति भवन तक पहुंची है।
उपराष्ट्रपति पद न केवल देश की दूसरी सर्वोच्च संवैधानिक जिम्मेदारी है बल्कि राज्यसभा के सभापति का भी पद है। ऐसे में राधाकृष्णन के सामने आने वाली चुनौतियां आसान नहीं होंगी। संसद में विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच तालमेल बनाना, बहसों को सुसंगत दिशा देना और विधायी कार्यों को सुचारु रूप से आगे बढ़ाना उनकी प्रमुख जिम्मेदारियों में शामिल होगा।
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