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Halal Certificate Controversy: CM Yogi's action on Halal Certificate, what is its connection with Bihar?
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Halal Certificate Controversy: हलाल सर्टिफिकेट पर सीएम योगी का एक्शन, क्या है बिहार से कनेक्शन?
वीडियो डेस्क अमर उजाला Published by: मृत्युंजय त्रिवेदी Updated Wed, 29 Oct 2025 08:18 PM IST
बिहार में विधानसभा चुनाव के बीच हलाल सर्टिफिकेशन को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दावा किया है कि हलाल सर्टिफिकेशन के नाम पर देश में 25 हजार करोड़ रुपये का कारोबार चल रहा है और यह पैसा आतंकी व धर्मांतरण गतिविधियों में इस्तेमाल हो रहा है।
सबसे पहले जानें हलाल होता क्या है?
हलाल एक अरबी शब्द है। इसका अर्थ वैध या यूं कहें कि पवित्र होता है। इस शब्द का उपयोग उस भोजन, पदार्थ या प्रक्रिया के लिए होता है जो शरिया के मुताबिक सही माना जाता है। आमतौर पर इसका उपयोग मांस के संदर्भ में किया जाता है, जिसमें जानवर को इस तरह से काटा जाता है कि उसका पूरा खून निकल जाए। हालांकि, अब इसका उपयोग खाने-पीने, सौंदर्य प्रसाधन और दवाओं जैसी विभिन्न वस्तुओं के लिए भी हो रहा है। यहां तक की सीमेंट, सरिया जैसी निर्माण सामाग्रियों तक में हलाल प्रमाणपत्र जारी किए जा रहे हैं। दावा किया जाता है कि हलाल प्रमाणन यह गारंटी देता है कि उत्पाद इस्लामी नियमों के अनुसार बनाया गया है। इस प्रमाणन के लिए कुछ तय संस्थाएं हैं। जो ये प्रमाण पत्र देती हैं।
ये प्रमाण पत्र कौन जारी करता है?
भारत में हलाल प्रमाणन के लिए कोई सरकारी व्यवस्था नहीं। यानी, केंद्र या राज्य सरकारों से जुड़े संस्थान इस तरह का कोई प्रमाण पत्र नहीं देते हैं। देश में हलाल प्रमाण पत्र कई निजी संगठनों द्वारा जारी किए जाते हैं। इनमें इनमें जमीयत उलमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट, हलाल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड जैसे संगठन शामिल हैं।
कंपनियां प्रमाण पत्र क्यों लेती हैं?
इसकी सबसे बड़ी वजह है बाजार, वो बाजार जो इस्लामिक देशों में है। वो बाजार जहां मुस्लिम आबादी रहती है। दरअसल, मुस्लिम उपभोक्ता समुदायों के लिए यह एक तरह से धार्मिक अनिवार्यता या प्राथमिकता का प्रमाण है। वे ऐसे उत्पाद चुनते हैं जिन पर मान्य हलाल निशान हो। कुछ आयातक देशों के लिए हलाल प्रमाण पत्र मांग का कारण बन सकता है, इसलिए निर्यातकर्ता इसे अपनाते हैं।
अब सवाल आता है कि इसमें विवाद कहां है?
जब तक ये बात मांस से जुड़े उत्पादों तक थी तब तक तो ठीक था। लेकिन, गैर-मांस उत्पादों पर भी इस सर्टिफिकेशन की वजह से विवाद होता है। गैर-मांस उत्पादों, जैसे खाद्य तेल, साबुन, शैम्पू, और यहां तक कि सीमेंट और लोहे की छड़ों तक के हलाल सर्टिफिकेशन को पैसे की उगाही के नजरिए से देखा जाता है। ये सवाल उठाया जाता है कि इन उत्पादों को धार्मिक सर्टिफिकेशन की क्या आवश्यकता है। कहा जाता है कि हलाल सर्टिफिकेशन के नाम पर अरबों की कमाई की जा रही है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसी को लेकर कहा है कि इस पैसे का इस्तेमाल आतंकी और जिहादी गतविधियों में होता है। इससे जुड़ा एक विवाद धार्मिक मान्यताओं को लेकर भी है। हलाल वध के तरीके की आलोचना करने वाले कहते हैं कि जानवरों को बिना बेहोश किए मारना क्रूरता है।
जब इतना विवाद है तो क्या इस पर कोई कार्रवाई भी हुई है?
इन विवादों के चलते नवंबर 2023 में, उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य में निर्यात के लिए बनाए गए उत्पादों को छोड़कर, हलाल-प्रमाणित खाद्य उत्पादों के उत्पादन, भंडारण, वितरण और बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया था। इस प्रतिबंध को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, और यह मामला अभी भी कानूनी प्रक्रिया में है। हाल ही में योगी आदित्यनाथ ने फिर से बयान दिया कि उत्तर प्रदेश में हलाल सर्टिफिकेशन पर पूरी तरह से रोक है। उत्तर प्रदेश में अब कोई भी संस्था हलाल सर्टिफिकेट लगाकर अपने प्रोडक्ट नहीं बेच सकती। सीएम योगी ने कहा कि हमने जब कार्रवाई शुरू की तो पता चाल कि 25 हजार करोड़ रुपये की कमाई देश के अंदर हलाल सर्टिफिकेशन से होती है। भारत सरकार या राज्य सरकार की किसी भी एजेंसी ने उन्हें मान्यता नहीं दी है। ये सारा का सारा पैसा आतंकवाद के लिए, लव जिहाद के लिए और धर्मांतरण में दुरुपयोग होता है। समान खरीदते समय यह देखिए कि हलाल सर्टिफिकेशन के नाम पर एक फूटी कौड़ी भी नहीं देनी है। क्योंकि जितना पैसा भी जाएगा, यह सारा पैसा आपके खिलाफ षडयंत्र में इस्तेमाल होगा। यह षड्यंत्र बड़े स्तर पर हो रहा है। इस दौरान योगी ने इस पूरे मामले को छागुर से जुड़े धर्मांतरण प्रकरण से भी जोड़ा।
...तो क्या सच में सर्टिफिकेशन के नाम पर हजारों करोड़ का व्यापार हो रहा है?
भारत में करीब 400 एफएमसीजी कंपनियों ने हलाल सर्टिफिकेट लिया है। लगभग 3200 उत्पादों का यह सर्टिफिकेशन हुआ है। ग्लोबल मार्केट इंटेलिजेंस और कंसल्टेंसी फर्म केन रिसर्च की रिपोर्ट, 'India Halal Food Market Outlook to 2030' के मुताबिक देश में हलाल फूड बाजार 19 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया है। भारत में हलाल फूड की मांग सबसे ज्यादा हैदराबाद, लखनऊ और मुंबई में है। भारतीय हलाल फूड का निर्यात भी बढ़ रहा है, खासकर खाड़ी सहयोग परिषद और दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में इसमें काफी इजाफा हुआ है।
कंपनियां अधिक कमाई और ज्यादा उपभोक्ताओं तक अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए इस तरह के सर्टिफिकेट लेती हैं। इसके प्रभाव का असर ऐसे समझा जा सकता है कि वर्ष 2020 में योग गुरु रामदेव की कंपनी पतंजलि को भी हलाल सर्टिफिकेट लेना पड़ा था। दरअसल आर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन के तहत आने वाले 57 देशों में उत्पाद बेचने के लिए यह सर्टिफिकेट जरूरी है। आचार्य बालकृष्ण को सफाई देनी पड़ी थी कि आयुर्वेदिक दवाओं के लिए हलाल सर्टिफिकेट लिया है, जिनकी अरब देशों में काफी मांग है।
हलाल सर्टिफिकेट के एवज में कंपनियों को बड़ी रकम का भुगतान करना पड़ता है। पहली बार की फीस 26 हजार से 60 हजार रुपये तक होती है। प्रत्येक उत्पाद के लिए 1,500 रुपये तक अलग से देने पड़ते हैं। सालाना नवीनीकरण फीस 40 हजार रुपये तक है। इसके अलावा कन्साइनमेंट सर्टिफिकेशन व ऑडिट फीस अलग से है। इसमें जीएसटी अलग से शामिल है। यानी एक कंपनी को एक बार में लगभग दो लाख रुपये देने पड़ते हैं। इसके बाद सालाना नवीनीकरण अलग से है। हलाल उत्पादों के कारोबार में केवल मांस ही नहीं, खाने की सारी चीजें, पेय पदार्थ और दवाएं भी शामिल हैं। ऐसे में कंपनियों को लगता है कि हलाल की बढ़ती मांग को नजरअंदाज करने से बड़ा नुकसान होगा।
दुनिया में कितना बड़ा है हलाल का बाजार?
दुनिया की बात करें तो साल 2024 तक के आंकड़ों बताते हैं कि दुनिया में हलाल उत्पादों का बाजार करीब 2,714.40 अरब डॉलर का था। IMARC Group का अनुमान है कि यह बाजार वर्ष 2033 तक USD 5,911.95 अरब तक पहुंच जाएगा। वर्तमान में एशिया-प्रशांत क्षेत्र में यह बाजार सबसे बड़ा है, जिसकी हिस्सेदारी पूरी दुनिया में 48.5% से अधिक है।
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