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भारत या चीन, Trump के वीजा से कैसे होगा ज्यादा नुक्सान?
अमर उजाला डिजिटल डॉट कॉम Published by: आदर्श Updated Tue, 23 Sep 2025 03:23 PM IST
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने H-1B वीज़ा पर सालाना एक लाख डॉलर (करीब 88 लाख रुपये) की भारी-भरकम फीस लगाकर नया विवाद खड़ा कर दिया है। इस फैसले का सीधा असर भारतीय पेशेवरों पर पड़ेगा, जो इस वीजा प्रोग्राम का सबसे ज्यादा इस्तेमाल करते हैं। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि इस नीति से चीन को बड़ा फायदा मिल सकता है और लंबे समय में यह कदम अमेरिकी अर्थव्यवस्था और कंपनियों को भी कमजोर करेगा।
H-1B वीजा पर ट्रंप का रुख लगातार बदलता रहा है। कभी उन्होंने कहा था कि वह स्किल्ड लोगों के अमेरिका आने के समर्थक हैं, लेकिन अब उन्होंने शुल्क इतना बढ़ा दिया कि अमेरिकी कंपनियों के लिए विदेशी टैलेंट को लाना बेहद महंगा हो गया। दिलचस्प बात यह है कि ट्रंप के समर्थक भी इस मुद्दे पर बंटे हुए हैं। एलॉन मस्क, जिन्होंने खुद कभी H-1B वीजा का इस्तेमाल किया था, इस प्रोग्राम के पक्षधर रहे हैं।
ट्रंप के फैसले से अमेरिकी टेक कंपनियों से लेकर यूनिवर्सिटीज तक में चिंता फैल गई है। IT सेक्टर, मेडिकल इंडस्ट्री और रिसर्च सेंटर इस वीजा पर निर्भर रहते हैं। खासकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और उभरती टेक्नोलॉजी में वैश्विक प्रतिस्पर्धा कमजोर हो सकती है। US चैंबर ऑफ कॉमर्स ने साफ कहा है कि यह कदम भर्ती और नवाचार दोनों पर असर डाल सकता है।
अमेरिका और चीन के बीच पहले ही टेक्नोलॉजी वॉर चल रही है। ऐसे में विदेशी टैलेंट पर रोक लगाना अमेरिका की रणनीति को कमजोर करेगा। विशेषज्ञों का कहना है कि जहां अमेरिका दरवाजे बंद कर रहा है, वहीं चीन जैसे देश इन स्किल्ड वर्कर्स को अपने यहां आकर्षित कर सकते हैं। इससे अमेरिकी कंपनियों की बढ़त घटेगी और चीन की स्थिति और मजबूत होगी।
H-1B वीजा का सबसे ज्यादा इस्तेमाल भारतीय करते हैं। नई फीस इतनी भारी है कि कई भारतीय पेशेवरों की वार्षिक सैलरी से भी ज्यादा हो जाएगी। ऐसे में कंपनियों की दिलचस्पी इस रास्ते से हायरिंग करने में घट सकती है और यह मौका केवल हाई स्किल्ड और टॉप लेवल प्रोफेशनल्स तक सीमित रह जाएगा।
स्टार्टअप्स के लिए यह फैसला और बड़ा झटका है। जहां बड़ी कंपनियां भारी फीस दे सकती हैं, वहीं छोटे और मिड-लेवल स्टार्टअप्स के लिए यह मुश्किल साबित होगा।
विशेषज्ञ मानते हैं कि कंपनियां अब L-1 वीज़ा का सहारा लेंगी, जिसका इस्तेमाल एक देश से दूसरे देश में कर्मचारी ट्रांसफर करने के लिए होता है। इस वीजा पर कोई सख्त सीमा नहीं है, लेकिन ट्रंप प्रशासन की नजर अब इस पर भी है।
भारत के लिए यह स्थिति दोहरी है। एक ओर लाखों भारतीय पेशेवरों की राह कठिन हो जाएगी, दूसरी ओर बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियां अब भारत में अपने ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर (GCCs) में ज्यादा निवेश कर सकती हैं। इससे घरेलू स्तर पर रोजगार के अवसर बढ़ सकते हैं।
भारत के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल अमेरिका दौरे पर हैं। उम्मीद है कि व्यापार समझौते की बातचीत के साथ वह H-1B वीजा मुद्दा भी उठाएंगे। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह विवाद जितनी जल्दी सुलझे, उतना ही दोनों देशों और वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए बेहतर होगा।
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