जगदीप धनखड़ द्वारा उपराष्ट्रपति पद से दिए गए इस्तीफे ने सत्ता पक्ष के साथ-साथ विपक्ष को भी चौंका दिया है। इस इस्तीफे से एक तरफ तो सरकार की किरकिरी हुई है, वहीं विपक्ष को सरकार को घेरने के लिए चालू सत्र के दौरान एक नया हथियार मिल गया है। विपक्ष की आलोचना के बीच सरकार को इस सवाल से भी जूझना पड़ रहा है कि अब वह इस अति महत्त्वपूर्ण पद की जिम्मेदारी किसे सौंपे। राज्यसभा में सत्ता पक्ष के सांसदों की संख्या कम होने के कारण महत्त्वपूर्ण विधेयकों को पास कराने में उपराष्ट्रपति, जो राज्यसभा के पदेन सभापति भी होते हैं, की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है।
भाजपा इस समय अपने नए अध्यक्ष के चुनाव को लेकर फंसी हुई है। जेपी नड्डा का कार्यकाल पूरा हो चुका है और वे सेवाकाल के विस्तार पर चल रहे हैं। कई अटकलों के बाद भी आज तक पार्टी का नया अध्यक्ष नहीं चुना जा सका है। इसके साथ-साथ यूपी, दिल्ली सहित कई राज्यों के अध्यक्षों का चुनाव भी अभी लंबित सूची में है। केंद्र सरकार और यूपी सरकार के मंत्रिमंडल के विस्तार की भी चर्चा हो रही है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात से इस बात की अटकलें तेज हुई हैं कि यूपी में भी बड़े बदलाव की बात चल रही है। योगी ने भाजपा के वर्तमान अध्यक्ष जेपी नड्डा से भी मुलाकात की है। इसके पहले यूपी के उपमुख्यमंत्री भी शीर्ष केंद्रीय नेतृत्व से मुलाकात कर चुके हैं। यूपी के शीर्ष नेताओं की केंद्रीय नेतृत्व से इस मुलाकात के बाद यही माना जा रहा है कि 2027 के यूपी विधानसभा चुनाव के पहले यूपी में बड़े बदलाव की संभावनाएं टटोली जा रही हैं।
पार्टी को इन बदलावों में कई संतुलन बनाने की आवश्यकता होगी। भाजपा दक्षिण में अपना विस्तार करने की रणनीति पर काम कर रही है। कई बार पार्टी का अध्यक्ष दक्षिण से लाकर पार्टी का दक्षिण में विस्तार करने की बात की जाती रही है। हालांकि, इस बात की भी चर्चा चलती रही है कि भाजपा दक्षिण विस्तार की कोशिश में उत्तर भारत में अपने जमे जमाए पांव को कमजोर नहीं करना चाहेगी। अटकलें हैं कि पार्टी का अध्यक्ष तो उत्तर भारत से ही बनाया जाएगा, जबकि दक्षिण को संतुलित करने के लिए अन्य पदों का उपयोग किया जा सकता है। अब पार्टी के पास उपराष्ट्रपति पद के रूप में दक्षिण को संतुलित करने का अवसर मिल गया है।