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Sonam Wangchuk's wife Geetanjali moves Supreme Court over his arrest
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सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी पर सुप्रीम कोर्ट पहुंची पत्नी गीतांजलि
अमर उजाला डिजिटल डॉट कॉम Published by: आदर्श Updated Fri, 03 Oct 2025 11:28 AM IST
लद्दाख में पिछले दिनों जो कुछ हुआ, उसने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींच लिया है। अब मामला और गंभीर हो गया है क्योंकि जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक की पत्नी गीतांजलि अंगमो सीधे सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई हैं। उन्होंने लद्दाख प्रशासन पर सवाल उठाते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) के तहत अपने पति की गिरफ्तारी को चुनौती दी है।
दो अक्तूबर को गीतांजलि अंगमो ने अनुच्छेद 32 के तहत याचिका दायर की। इसमें उन्होंने कहा है कि सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी न केवल गैरकानूनी है, बल्कि मौलिक अधिकारों का उल्लंघन भी है। उनका कहना है कि गिरफ्तारी के आदेश की प्रति तक उन्हें नहीं दी गई, जो स्पष्ट रूप से प्रक्रिया के खिलाफ है। याचिका में यह भी कहा गया कि अब तक उनका वांगचुक से कोई संपर्क नहीं हो पाया है और उन्हें राजस्थान की जोधपुर जेल में रखा गया है।
24 सितंबर को लेह में अचानक हालात बिगड़ गए। लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करने और राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच टकराव हो गया। देखते ही देखते पथराव, आगजनी और तोड़फोड़ की घटनाएं हुईं। स्थानीय भाजपा कार्यालय को भी निशाना बनाया गया। इसी के बाद प्रशासन ने सोनम वांगचुक को हिरासत में लिया और NSA के तहत कार्रवाई कर दी।
लेकिन बड़ा सवाल यही है कि वांगचुक उस समय मौके पर मौजूद भी नहीं थे। वे शांतिपूर्वक भूख हड़ताल पर बैठे थे। ऐसे में क्या उन्हें बलि का बकरा बनाया गया? यही सवाल अब सुप्रीम कोर्ट के सामने है।
गीतांजलि अंगमो ने खुलकर पुलिस और प्रशासन पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि यह पूरा मामला एक सोची-समझी साज़िश है। उनका आरोप है कि डीजीपी के बयान झूठे हैं और घटनाओं को तोड़-मरोड़कर वांगचुक पर आरोप लगाया जा रहा है। उन्होंने सवाल किया कि आखिर सुरक्षा बलों को गोली चलाने का आदेश किसने दिया? लद्दाख जैसे शांत इलाके में अचानक हिंसा क्यों भड़क उठी?
गीतांजलि का कहना है कि वांगचुक लंबे समय से शांतिपूर्ण ढंग से आंदोलन कर रहे थे और यह असंभव है कि उन्होंने किसी को हिंसा के लिए उकसाया हो।
इस पूरे घटनाक्रम की जड़ 2019 में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम है। अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर को विधानसभा वाला केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया, जबकि लद्दाख को बिना विधानसभा के सीधे केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया।
तभी से लद्दाख में आवाज उठ रही है कि उसे भी विशेष दर्जा और राजनीतिक अधिकार दिए जाएं। छठी अनुसूची में शामिल करने और पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग लगातार होती रही है।
इसी मांग को लेकर सोनम वांगचुक और लद्दाख एपेक्स बॉडी (LAB) ने आंदोलन शुरू किया। 10 सितंबर से वे और 15 कार्यकर्ता भूख हड़ताल पर थे। जैसे-जैसे कार्यकर्ताओं की हालत बिगड़ी, आंदोलन और उग्र होता गया। 24 सितंबर को जब बंद का एलान हुआ, तब हजारों युवा सड़कों पर उतर आए और फिर हिंसा भड़क गई।
लद्दाख के लोग लगातार कह रहे हैं कि उन्हें नज़रअंदाज़ किया जा रहा है। विकास, शिक्षा और पर्यावरण संरक्षण से जुड़े मुद्दों को लेकर वांगचुक लंबे समय से आवाज उठा रहे हैं। लेकिन अब मामला केवल सामाजिक या पर्यावरणीय नहीं रहा, बल्कि सीधे राजनीतिक अधिकारों से जुड़ गया है।
सरकार का कहना है कि वांगचुक जैसे बड़े नाम वाले कार्यकर्ता अगर हिंसा में शामिल भी नहीं हैं, तो भी उनकी मौजूदगी प्रदर्शनकारियों को उकसाने का काम करती है। यही वजह है कि उन पर NSA लगाया गया। लेकिन उनकी पत्नी का दावा है कि यह “झूठ और डराने की राजनीति” है।
सुप्रीम कोर्ट में यह मामला अब अहम मोड़ पर पहुंच गया है। अगर कोर्ट गिरफ्तारी को गैरकानूनी मानता है तो न केवल वांगचुक की रिहाई होगी, बल्कि लद्दाख प्रशासन पर भी सवाल खड़े हो जाएंगे। दूसरी ओर, अगर कोर्ट प्रशासन की कार्रवाई को सही ठहराता है तो आंदोलन को बड़ा झटका लग सकता है।
फिलहाल, पूरे लद्दाख की नज़र सुप्रीम कोर्ट पर है। लोग यह देखना चाहते हैं कि क्या उनकी आवाज़ को सुना जाएगा या आंदोलनकारी नेता पर लगे गंभीर आरोप ही भारी पड़ेंगे।
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