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Navratri 2025: This is how Bengal's special Durga Puja is celebrated with the beats of the dhak and the Dhunuc
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Navratri 2025 :ढाक की थाप के साथधुनुचि नृत्य के साथ ऐसे होती है बंगाल की विशेष दुर्गा पूजा!
वीडियो डेस्क, अमर उजाला डॉट कॉम Published by: भास्कर तिवारी Updated Thu, 02 Oct 2025 02:33 AM IST
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पश्चिम बंगाल की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत में ढाक की गगनभेदी थाप और धुनुची नृत्य का एक अटूट संबंध है, जो विशेष रूप से दुर्गा पूजा के उत्सव के दौरान जीवंत हो उठता है। यह एक ऐसा दृश्य है जहाँ भक्ति, ऊर्जा और परंपरा एक साथ मिलकर एक मनमोहक और आध्यात्मिक वातावरण का निर्माण करते हैं। धुनुची नृत्य केवल एक कला का प्रदर्शन नहीं, बल्कि देवी दुर्गा के प्रति गहरी श्रद्धा और समर्पण का प्रतीक है।
"धुनुची" मिट्टी का एक विशेष प्रकार का पात्र होता है, जिसके नीचे एक स्टैंड और ऊपर एक चौड़ा मुंह होता है। इसमें जलते हुए नारियल के छिलके, कपूर और 'धुनो' (एक प्रकार का राल) रखा जाता है, जिससे एक सुगंधित और पवित्र धुआं निकलता है। माना जाता है कि यह धुआं वातावरण को शुद्ध करता है, नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है और देवी का आह्वान करता है।
ढाक एक बड़ा, बैरल के आकार का ढोल है जिसे गले में लटकाकर दो पतली डंडियों से बजाया जाता है। इसकी शक्तिशाली और लयबद्ध ध्वनि दुर्गा पूजा का पर्याय है। ढाक वादकों, जिन्हें 'ढाकी' कहा जाता है, की लयबद्ध थाप पूजा के हर चरण में एक अनोखा उत्साह और ऊर्जा भर देती है। ढाक की ध्वनि को उत्सव की आत्मा माना जाता है, जो भक्तों को एक साथ लाती है और उन्हें भक्ति के सागर में डुबो देती है।
जैसे ही शाम को ढाकी अपनी विशेष लय बजाना शुरू करते हैं, भक्त, पुरुष और महिलाएं दोनों, जलती हुई धुनुची को अपने हाथों में लेकर नृत्य करना शुरू कर देते हैं। कई कुशल नर्तक एक साथ दो या तीन धुनुची लेकर भी नृत्य करते हैं, जिसमें से एक को वे अपने दांतों के बीच दबाकर संतुलन साधते हैं।
ढाक की तेज और बदलती थाप के साथ, नर्तकों की गति भी बदलती रहती है। यह नृत्य धीमी, ध्यानमग्न मुद्राओं से शुरू होकर धीरे-धीरे एक ऊर्जावान और उन्मुक्त प्रदर्शन में बदल जाता है। नर्तक घूमते हैं, झुकते हैं और लय के साथ अपने शरीर को लहराते हैं, जबकि धुनुची से निकलता धुआं एक रहस्यमयी और दिव्य माहौल बनाता है। यह दृश्य शक्ति और भक्ति का एक अनूठा संगम प्रस्तुत करता है।
धुनुची नृत्य का गहरा सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व है। यह देवी दुर्गा की महिषासुर पर विजय का उत्सव है। नृत्य की ऊर्जा और धुनुची से निकलने वाली अग्नि को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। यह नृत्य भक्तों के लिए देवी के प्रति अपनी कृतज्ञता और आनंद व्यक्त करने का एक माध्यम है।
परंपरागत रूप से, यह नृत्य दुर्गा पूजा के अंतिम दिनों, विशेष रूप से अष्टमी और नवमी की संध्या आरती के दौरान किया जाता है। यह एक ऐसा समय होता है जब पूजा पंडालों में भक्ति और उत्सव का माहौल अपने चरम पर होता है। ढाक की गूंज और धुनुची नृत्य का अद्भुत दृश्य हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करता है और उन्हें इस दिव्य उत्सव का हिस्सा बनने के लिए प्रेरित करता है।
संक्षेप में, ढाक की थाप के साथ धुनुची नृत्य बंगाल की सांस्कृतिक पहचान का एक अभिन्न अंग है। यह केवल एक नृत्य नहीं, बल्कि एक जीवंत परंपरा है जो पीढ़ियों से चली आ रही है और आज भी उसी उत्साह और भक्ति के साथ मनाई जाती है। यह कला, संस्कृति और आध्यात्मिकता का एक ऐसा संगम है जो दर्शकों के दिलों पर एक अमिट छाप छोड़ता है।
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