उत्तरकाशी के धराली में पांच अगस्त को खेरा गाड यानी खीरगंगा के ढाई लाख टन मलबे ने तबाही मचाई थी। हर्षिल अब भी खतरे में है। आईटी सचिव नितेश झा के निर्देश पर गठित वैज्ञानिक समिति ने इस आपदा की पहली रिपोर्ट सौंप दी है। विभिन्न वैज्ञानिक संस्थानों ने एकमत होकर बताया है कि ऊपर तेज बारिश से भूस्खलन बांध के टूटने के कारण यह आपदा आई।
धराली आपदा को लेकर बीते दिनों यूकॉस्ट के महानिदेशक की अध्यक्षता में एक वैज्ञानिक समिति गठित हुई थी। इसमें IIRS, वाडिया के वैज्ञानिक भी शामिल थे। समिति ने लिडार सर्वे, NDRF-SDRF के ड्रोन सर्वे, स्थानीय लोगों से बातचीत, सेटेलाइट अध्ययन के बाद एक रिपोर्ट तैयार की है, जो कि इस आपदा की पहली वैज्ञानिक रिपोर्ट है।
समिति ने बताया है कि ऊंचाई वाले क्षेत्रों में अत्यधिक वर्षा के कारण ये तबाही हुई। यह आपदा जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ती भारी वर्षा का परिणाम है, जिसने मुरैनी और भूस्खलन से उत्पन्न मलबे के साथ पानी को लेकर तेज बाढ़ का रूप दिया। खेरा गाड में आए मलबे के कारण न केवल भूस्खलन हुआ बल्कि कई स्थानों पर छोटे पैमाने पर लैंडस्लाइड डेम आउटबर्स्ट फ्लड भी उत्पन्न हुए।
समिति के अनुसार, उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों में 4000 मीटर से ऊपर वर्षा के कारण मिट्टी की ताकत में कमी आई। जिससे भूस्खलन और मलबे का बहाव शुरू हो गया। पानी के दबाव से भी पहाड़ियों की संरचना में असंतुलन पैदा हुआ। इससे कई जगहों पर भूस्खलन और मलबे के प्रवाह में इजाफा हुआ। समिति ने SDRF, NIM, सेना की तिरंगा टीम के सहयोग से ऊंचाई वाले स्थानों का निरीक्षण किया। धराली क्षेत्र में लिडार से किए गए सर्वे में यह पाया गया कि अब फैन का क्षेत्रफल 0.151 वर्ग किलोमीटर हो गया है। पहले यह क्षेत्रफल 0.74 वर्ग किलोमीटर था। इस मलबे में ढाई लाख टन मलबा डंप हुआ था।
अध्ययन में ये पाया गया कि खेरा गाड के ऊपर 5000 मीटर की ऊंचाई पर भू-स्खलन सक्रिय था। मौसम विभाग के मुताबिक तो हर्षिल क्षेत्र में पांच अगस्त को आठ मिमी और पूरे उत्तरकाशी में 27 मिमी बारिश रिकॉर्ड हुई थी। लेकिन धराली आपदा के बाद भागीरथी नदी में आया उफान पानी की कहानी बयां कर रहा है। ये भी पाया गया कि यह तबाही 5000 मीटर की ऊंचाई सी नीचे धराली में 2570 मीटर तक पूरे वेग से आई। ताजे मलबे और खड़ी ढलानों के कारण मलबे के प्रवाह में इजाफा हुआ।