भारत की पवित्र नदियों में माँ नर्मदा का स्थान सर्वोच्च माना जाता है। कहा जाता है कि नर्मदा के दर्शन, स्पर्श या स्मरण मात्र से पापों का नाश होता है। उसकी परिक्रमा को हिंदू धर्म में सर्वोच्च तप और पुण्य के कार्यों में गिना गया है। लाखों श्रद्धालु हर वर्ष नर्मदा परिक्रमा के लिए निकलते हैं कोई पैदल चलता है, कोई दंडवत परिक्रमा करता है, तो कोई कठिन पर्वतीय मार्गों से होकर यह यात्रा पूरी करता है। लेकिन डिंडोरी जिले में एक ऐसे संत हैं, जिनकी नर्मदा परिक्रमा का तरीका हर किसी को आश्चर्यचकित कर रहा है।
ये हैं धर्मपुरी महाराज, जिन्होंने हाथों के बल चलते हैं। हाथों के सहारे मां नर्मदा की परिक्रमा करने का संकल्प लिया है। अमरकंटक से प्रारंभ हुई यह अनोखी यात्रा न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि गहन तप और अटूट विश्वास की मिसाल भी है।
धर्मपुरी महाराज हर दिन कुछ दूरी हाथों के बल चलते हुए तय करते हैं। इस कठिन साधना के दौरान उनका शरीर मिट्टी से लथपथ हो जाता है, लेकिन उनके चेहरे पर अटूट श्रद्धा झलकती रहती है। वे कहते हैं यह नर्मदा माँ का आशीर्वाद है, तभी यह संभव हो पा रहा है। यह परिक्रमा सिर्फ शरीर की नहीं, आत्मा की यात्रा है।
महाराज का विश्वास है कि करीब 3500 किलोमीटर लंबी नर्मदा परिक्रमा को वे तीन साल, तेरह महीने और तेरह दिन में पूरा करेंगे। यह यात्रा अमरकंटक से शुरू होकर नर्मदा के दोनों तटों उत्तर और दक्षिण से होती हुई पुनः अमरकंटक में ही समाप्त होती है। सामान्यतः भक्त इस यात्रा को पैदल या दंडवत पूरी करते हैं, लेकिन धर्मपुरी महाराज का यह सिर के बल चलना एक ऐसी साधना है, जो विरले ही देखी जाती है।
स्थानीय लोगों के अनुसार, जब से धर्मपुरी महाराज डिंडोरी जिले में पहुंचे हैं, हर गांव में श्रद्धालुओं की भीड़ उन्हें देखने और आशीर्वाद लेने के लिए उमड़ रही है। लोग उन्हें नर्मदा माँ का सच्चा उपासक मानते हैं। वे जहां भी रुकते हैं, वहां लोग भजन-कीर्तन और नर्मदा आरती का आयोजन करते हैं।
महाराज किसी धार्मिक संस्था या प्रचार से जुड़े नहीं हैं। वे साधारण कपड़ों में, सिर पर हल्का वस्त्र और हाथों में लकड़ी की सहायता लेकर अपनी यात्रा जारी रखते हैं। उनके साथ कुछ शिष्य भी हैं, जो उनकी सेवा और आवश्यक वस्तुओं की देखभाल करते हैं।
धर्मपुरी महाराज का कहना है कि यह परिक्रमा केवल पूजा-पाठ का माध्यम नहीं, बल्कि मानवता और आत्मसंयम का संदेश है। वे बताते हैं कि जब मन और आस्था दृढ़ होती है, तो शरीर की सीमाएं छोटी पड़ जाती हैं। उनका मानना है यह मार्ग सिर्फ नर्मदा के किनारों तक नहीं जाता, बल्कि आत्मा के शिखर तक ले जाता है।
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ग्रामीण भी उनकी यात्रा में सहयोग कर रहे हैं। रास्ते में लोग उन्हें भोजन, पानी और विश्राम की सुविधा प्रदान कर रहे हैं। जहां भी वे पहुंचते हैं, वहां वातावरण भक्तिमय हो उठता है। धर्मपुरी महाराज की इस अद्भुत साधना ने हर किसी को प्रभावित किया है। उनका जीवन यह संदेश दे रहा है कि जब आस्था अडिग हो, तो असंभव भी संभव हो जाता है। माँ नर्मदा की परिक्रमा उनके लिए केवल एक यात्रा नहीं, बल्कि एक दिव्य साधना है जो श्रद्धा, समर्पण और संकल्प की अनूठी मिसाल बन चुकी है।