मध्यप्रदेश के खरगोन जिले के महेश्वर में देवी अहिल्या बाई होल्कर का 300वां जन्म जयंती उत्सव मनाया जा रहा है। इसी बीच प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के निर्णय अनुसार शुक्रवार को मध्यप्रदेश शासन की कैबिनेट की महत्वपूर्ण बैठक देवी अहिल्या बाई होल्कर की पावन नगरी महेश्वर में होने जा रही है।
बता दें कि अपने शासनकाल में देवी अहिल्या बाई होल्कर ने सुशासन की अद्भुत मिसाल प्रस्तुत की थी। उन्होंने अपने राज्य में सुशासन के साथ ही न्याय, शिक्षा, समाज कल्याण, धर्म कल्याण, जल संरक्षण और संवर्धन आदि जनहित से जुड़े विषयों पर अद्भुत कार्य कर एक आदर्श स्थापित किया। प्रदेश में डॉ. मोहन यादव ने देवी मां अहिल्या बाई होल्कर के कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए अनेक योजनाएं, कार्यक्रमों और गतिविधियों का क्रियान्वयन प्रारंभ किया है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में समूचा मंत्रिमंडल शुक्रवार को पुण्य श्लोका देवी अहिल्या बाई को नमन करने महेश्वर पहुंच रहा है। बता दें कि देवी अहिल्या बाई होलकर भारतीय इतिहास की एक महान शासिका और कुशल नेतृत्वकर्ता के रूप में जानी जाती हैं। उनका जीवन संघर्ष, साहस और सशक्त नेतृत्व का प्रतीक रहा।
देवी अहिल्या का था सशक्त नेतृत्व और प्रशासन
बताया जाता है कि देवी अहिल्याबाई ने इंदौर राज्य की बागडोर संभालते हुए अपने शाही परिवार की संपत्ति और शक्ति को बढ़ाया। उन्होंने न्याय, धर्म और शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण सुधार किए। उनका शासन एक समृद्ध और उन्नत समाज की दिशा में था। वे एक कुशल प्रशासक के रूप में प्रसिद्ध हुईं। उनके समय में इंदौर राज्य में सुरक्षा व्यवस्था मजबूत हुई, व्यापार बढ़ा और समाज में सांस्कृतिक और धार्मिक समरसता आई। उनकी न्यायप्रियता और दयालुता एक विशेष पहचान रही है। उन्होंने अपने राज्य में अपराधियों को सजा देने में कठोरता का उपयोग किया, तो वहीं दूसरी ओर उन्होंने गरीबों, असहाय और अन्य जरूरतमंदो की मदद में भी कोई कोर-कसर नहीं रखी।
सामाजिक कार्य और धार्मिक दृष्टिकोण
देवी अहिल्याबाई ने महिलाओं और समाज के कमजोर वर्गों के कल्याण के लिए कई कार्य किए। उन्होंने मंदिरों का निर्माण कराया और धर्म के प्रचार-प्रसार में योगदान दिया। विशेष रूप से उन्होंने मंदिरों के निर्माण और पुनर्निर्माण के अनेक कार्य किए। इसके अलावा उन्होंने भारतीय संस्कृति और परंपराओं को बढ़ावा देने के लिए कई पहल की। उन्होंने जल संरक्षण और संवर्धन के लिए कुओं और बावड़ियों का निर्माण किया। भूखों के लिए अन्न क्षेत्र खोले, प्यासों के लिए प्याऊ का निर्माण करवाया। अनेक घाट बनवाए।
देवी अहिल्याबाई की सैन्य शक्ति और रणनीति
बता दें कि, देवी अहिल्याबाई होलकर का जन्म सन 1725 में महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव चोंडी में हुआ था। अहिल्याबाई की शादी मल्हार राव होल्कर के बेटे खंडेराव होल्कर से हुई थी। साल 1754 में खंडेराव के निधन के बाद देवी अहिल्या बाई ने होल्कर राज्य की गद्दी संभाली, और शासिका के रूप में एक नई दिशा दी। देवी अहिल्याबाई केवल एक शासिका नहीं बल्कि एक सशक्त सैन्य नेता भी थीं। उनका सैन्य बल बहुत मजबूत था और उन्होंने कई युद्धों में अपनी सेना का नेतृत्व किया। उनका युद्ध कौशल और रणनीतिक दृष्टिकोण बहुत सराहा गया। देवी अहिल्याबाई ने कई बार बाहरी आक्रमणों का डटकर मुकाबला किया और अपने राज्य की सुरक्षा सुनिश्चित की।
देवी अहिल्याबाई का शासन और प्रशासन
देवी अहिल्याबाई भारतीय इतिहास की एक महान और सम्मानित शासिका थीं, जिनका योगदान न केवल मराठा साम्राज्य में बल्कि मध्य प्रदेश के इतिहास में भी अत्यधिक महत्वपूर्ण रहा। 18वीं सदी में अपनी शासन शैली और दूरदृष्टि के लिए प्रसिद्ध देवी अहिल्याबाई का शासनकाल मध्य प्रदेश में विकास और सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक बना। देवी अहिल्याबाई होलकर ने 1767 से 1795 तक होलकर वंश के शाही परिवार की सत्ता संभाली और मध्य प्रदेश के महेश्वर से अपना शासन चलाया। उनका शासन दूरदृष्टि और न्यायप्रियता के लिए जाना जाता है। उन्होंने अपने राज्य के लोगों की भलाई के लिए कई सुधार किए और उनका प्रशासन निष्पक्ष, कर्मठ और प्रभावी था। उनके शासन में किसानों का कल्याण, व्यापार को बढ़ावा देना और बुनियादी सुविधाओं जैसे सड़कों, जल आपूर्ति और शिक्षा पर ध्यान दिया गया। उन्होंने महेश्वर के किले, मंदिरों और अन्य बुनियादी ढांचे का निर्माण कराया, जिससे राज्य में एक नया जीवन आया।
मध्य प्रदेश में अहिल्याबाई की धरोहर
देवी अहिल्याबाई होलकर का शासनकाल मध्य प्रदेश के इतिहास में स्वर्णिम युग माना जाता है। आज भी महेश्वर, जो कि उनका राजधानी स्थल था, मध्य प्रदेश का एक प्रमुख ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थल है। महेश्वर के किलों, घाटों और मंदिरों को देखकर देवी अहिल्याबाई की दूरदृष्टि और उनके योगदान का अहसास होता है। उनकी धरोहर मध्य प्रदेश के लोगों के लिए गर्व का विषय है और उनके योगदान को न केवल उनके समय में, बल्कि आज भी याद किया जाता है।
देवी अहिल्या बाई का निधन और धरोहर
देवी अहिल्या बाई का विवाह 1745 में इंदौर के होलकर परिवार के खंडेराव होलकर से हुआ था। उनका जीवन एक सामान्य गृहिणी के रूप में शुरू हुआ, लेकिन जब उनके पति की असमय मृत्यु हो गई, तब अहिल्याबाई ने न केवल अपने परिवार की जिम्मेदारियों को संभाला, बल्कि एक प्रभावशाली शासिका के रूप में भी अपनी पहचान बनाई। देवी अहिल्याबाई का निधन 13 अगस्त 1795 को हुआ। उनकी मृत्यु के बाद भी उनके द्वारा किए गए कार्यों और योगदान को हमेशा याद किया जाता है। उन्होंने न केवल इंदौर राज्य बल्कि पूरे भारत को एक मजबूत महिला नेतृत्व का उदाहरण प्रस्तुत किया। वे एक अद्वितीय शासिका थीं, जिन्होंने अपनी जनहितेषी और कल्याणकारी नीतियों, दृष्टिकोण और सुशासन के माध्यम से मध्य प्रदेश और भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान हासिल किया। उनका योगदान न केवल राजनीतिक और प्रशासनिक था, बल्कि सांस्कृतिक, सामाजिक और धार्मिक दृष्टिकोण से भी अनमोल था। उनका जीवन और कार्य आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं और उनके योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता।